इस इलाके में दो दर्जन से ज्यादा तालाब हैं। एक दशक पहले तक गांव के लोगों और मवेशी की पानी संबंधी जरूरतें इन तालाबों के साथ कुएं और बावड़ी से ही पूरी होती थीं। फिर गांवों में हैंडपंप और नलजल योजनाएं प्रारंभ होती गईं और पानी के पारंपरिक जल स्रोतों की उपेक्षा होने लगी। अब हालत यह है कि ज्यादातर तालाबों में केवल बारिश के दिनों में ही पानी दिखाई देता है।
जल स्तर रखते हैं ठीक
एनके नेमा, ओमप्रकाश तिवारी और दिनेश बबेले का कहना है कि तालाब प्राचीन समय से ही भू-जल स्तर ठीक रखने का काम करते रहे हैं। ये वास्तव में वाटर रिचार्जिंग का काम करते हैं, लेकिन पारंपरिक जल स्रोतों की अनदेखी के कारण ही गांवों में भी पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है। पारंपरिक जल स्रोतों पर ध्यान देकर ही जल संकट पर काबू पाया जा सकता है। वहीं मनोज राय मानते हैं कि अंचल के नदी, नालों, तालाबों, बावडिय़ों और कुओं का सर्वे करके इनके जीर्णोंद्धार की विस्तृत योजना बननी चाहिए।
अपना अस्तित्व खोते जा रहे तालाब
महेश्वर के प्रीतम सिंह बताते हैं कि उनके गांव का तालाब अतिक्रमण की चपेट में है और ग्राम पंचायत इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। सिमरोद के मंगल सिंह को यह बात अजीब लगती है कि देखते ही देखते उनके गांव का तालाब बर्बाद होता जा रहा है। वहीं इसी तरह भगदेई के श्यामलाल को शिकायत है कि उनके गांव में दो तालाब हैं। मगर पंचायत इनकी मरम्मत की रकम कहां खर्च कर रही है ये समझ से परे है।
क्योंकि ये जलस्रोत बदहाल और सूखे हैं। वहीं उंटिया के मनोहर भी तालाब की दुर्दशा पर नाराजगी जताते हैं। इसी तरह जामगढ़ के शिवदयाल कहते हैं कि पंचायत द्वारा तालाब के नाम पर किए गए खर्च की जांच होनी चाहिए। छींद के मकरंदसिंह बताते हैं कि उनके गांव का तालाब हजारों दर्शनार्थियों के काम आता था। परंतु अब यह अनुपयोगी होता जा रहा है। अन्य गांवों के लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने भी तालाबों की बदहाली और पंचायतों द्वारा इस नाम पर हड़पी गई रकम की बात कही।
तालाब सहित गांव के जलस्रोतों की जानकारी मूलरूप से ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के पास होती है। इनके रखरखाव और मरम्मत के लिए आवंटित राशि के बारे में भी यहीं से ब्यौरा मिल सकता है। हम तालाबों की स्थिति के बारे में जानकारी जुटाएंगे और आवश्यक निर्देश देंगे।
– निकिता तिवारी, तहसीलदार, बरेली।