दरअसल, मंगलवार को ब्यावरा से लगे जेलपा, जेपली, धान्याखेड़ी, तलावली सहित अन्य किसानों ने हंगामा किया और खेतों में से अपनी खराब उपज निकालकर प्रशासन को खूब कोसा। उन्होंने आरोप लगाया कि कृषि विभाग के जिमेदार अधिकारियों की लापरवाही के कारण ऐसे हालात निर्मित हो रहे हैं, हमारी उपज खराब होने की कगार पर है।
हंगामा कर रहे किसान दिलीपसिंह गुर्जर, कृपाल गुर्जर, कमलसिंह सौंधिया, दर्यावसिंह, जगदीश, मुकेश, दिनेश सहित अन्य ने बताया कि हमने जिस हिसाब से हर बार कीटनाशक छिड़कते हैं उसी हिसाब से इस बार भी छिड़काव किया लेकिन न ईल्ली का प्रकोप खत्म हुआन ही पौधों में वृद्धि हुई, उल्टा सोयाबीन की ग्रोथ रुक गई। सोयाबीन में अफलन की स्थिति निॢमत हो रही है जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा। ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि उचित समाधान करवाएं और लापरवाही बरतने वाले कृषि विभाग के विस्तार अधिकारियों सहित अन्य पर कड़ी कार्रवाईकी जाए।
कृषि अधिकारियों पर कीटनाशक दुकानों से सेटिंग का आरोप
किसानों नेआरोप लगाया कि ब्यावरा, मलावर, सुठालिया सहित अन्य क्षेत्रों में कृषि विभाग के अधिकारी जांच नहीं करते।कागजी खानापूर्ति कर एक या दो दिन जाकर आ जाते हैं।कृषि विस्तार अधिकारी आर. डी. सिलावट भी फिल्ड में नहीं जाते।
किसानों नेआरोप लगाया कि ब्यावरा, मलावर, सुठालिया सहित अन्य क्षेत्रों में कृषि विभाग के अधिकारी जांच नहीं करते।कागजी खानापूर्ति कर एक या दो दिन जाकर आ जाते हैं।कृषि विस्तार अधिकारी आर. डी. सिलावट भी फिल्ड में नहीं जाते।
किसानों नेऐसे अधिकारियों पर कीटनाशक की दुकान वालों से सेटिंग का आरोप लगाया है। ये अधिकारी कुछ लेन-देन कर घटिया क्वालिटी की अमानक दवाइयों को स्वीकृत कर देतेहैं और किसी प्रकार की कोई जांच ही नहीं करते। अधिक कीटनाशक बेचने के फेर में क्वालिटी से समझौता कर कीटनाशक बेची गई जिस पर कोईअंकुश नहीं लगाया गया।
किसानों की दिक्कत से अधिकारी नहीं गंभीर
मामले को लेकर जब पत्रिका ने कृषि विभाग के उप-संचालक हरिश कुमार मालवीय से बात करना चाही तो उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया न ही ब्यावरा के कृषि विस्तार अधिकारी आर. डी. सिलावट ने। किसानों के इतने अहम मुद्दे परभी उन्होंने बात करना ठीक नहीं समझा। यह गैरजिम्मेदाराना रैवाया कृषि विभाग में लंबे समय से काबिज है। कई तो ऐसे प्लॉन योजनाएं ब्लॉकस्तर पर आती हैं जो कागजों से बाहर ही नहीं निकल पाती है और जिम्मेदार इसका पूरा लाभ किसानों के नाम पर ले लेते हैं।