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राजगढ़

अस्पताल के गेट पर तड़पता रहा घायल, न स्ट्रेचर ना मदद…

डायल-100 और साथ आए अन्य युवक ने अंदर पहुंचाया…

राजगढ़Jul 11, 2018 / 10:54 am

Satish More

hospital

Wounded at the hospital gate

ब्यावरा. आम जनता का विश्वास खो चुकी सरकारी व्यवस्थाओं में लापरवाही थमने का नाम नहीं ले रही। ऐसी ही बड़ी लापरवाही ब्यावरा सिविल अस्पताल में सामने आई।

यहां हादसे में घायल होकर आया एक वाहन चालक घंटेभर गेट पर ही तड़पता रहा, करीब एक घंटे तक कोई नहीं आया तो गार्ड स्ट्रेचर लाया लेकिन फिर भी मरीज को अंदर ले जाना वाला कोई नहीं आया। डायल-100 के स्टॉफ और घायल के साथ आए युवक ने उसे अस्पताल में पहुंचाया। खास बात यह है कि अस्पताल में घायल की किसी ने भी जवाबदारी नहीं ली। इमरजेंसी कक्ष में ले जाने का बाद भी किसी डॉक्टर ने मरीज को नहीं देखा।
करीब डेढ़ घंटे बाद देहात पुलिस को डॉक्टर ने सूचना दी इसके बाद वे आए और इलाज शुरू हो पाया। इश्तकार पिता कय्यूम खां (40) अलहेड़ी (साहरनपुर, यूपी) हादसे में घायल हो गया था। उसे डायल-100 के राजेंद्रसिंह और चालक बृजकिशोर लेकर पहुंचे थे, लेकिन उपचार नहीं मिल पाया।

इस तरह से लापरवाही बरतना गलत बात है, मैं संबंधित डॉक्टर्स से बात करता हूं। किसी भी मरीज के साथऐसी स्थिति निर्मित होना ठीक बात नहीं, मैं दिखवाता हूं।
– कर्मवीर शर्मा, कलेक्टर, राजगढ़

वहां डॉक्टर्स की दिक्कत है तो हमने हाथोंहाथ तीन डॉक्टर्स की ड्यूटी लगाई है। इस तरह से मरीज के साथ व्यवहार गलत है। मैं संबंधित से बात करूंगा और व्यवस्थाएं सुधरवाएंगे।
– डॉ. आर.सी बंशीवाल, सीएमएचओ, राजगढ़

इधर, भोपाल से पहुंची टीम ने खंगाले एसएनसीयू के दस्तावेज
वहीं दूसरी ओर राजगढ़ में जहांबच्चों में कमजोरी या पैदा होने के साथ विभिन्न बीमारियों के संक्रमण से बचाव के लिए नवजात बच्चों को जिला चिकित्सालय के अंदर ही बने एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया जाता है। लेकिन यहां भर्ती होने वाले अधिकांश बच्चों की जांच बाहर कराई जा रही है। ऐसे किसी बच्चे के परिजनों के आरोप नहीं है। लेकिन यह साक्ष्य अस्पताल के अंदर ही मिले है।
ऐसे में यह बात समझ से परे है कि आखिर जिला चिकित्सालय में लैब है तो महंगी जांचें बाहर कराने का औचित्य क्या है। जिला चिकित्सालय में बने एसएनसीयू वार्ड में सोमवार को भोपाल से आई टीम ने जब वहां जाकर वार्ड का निरीक्षण किया तो वहां कुछ लोग बाहर की जांच लेकर खड़े हुए थे। जब उनसे पूछा गया कि निजी पैथालॉजी से जांचें क्यों कराई गई तो उन्होंने बताया कि यहंी से बताया गया कि सरकारी अस्पताल में होने वाली जांच में फर्क आता है। ऐसे में बाहर से जांच कराकर लाए है। इसके बाद जब अंदर जाकर देखा तो अधिकांश बच्चों की फाइलों में बाहर की ही जांच रिपोर्ट लगी थी और यह जांच 100 या 200 नहीं बल्कि एक हजार से दो हजार तक की थी।

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