ऐसे में एक या दो नहीं बल्कि 400 से अधिक नवजात बेटियों से लेकर कई वृद्ध महिलाएं तक इस प्रथा की शिकार है। पहले समाज ने अपने स्तर पर इसे खत्म करने का प्रयास किया। लेकिन बात नहीं बनी तो अब उन्होंने एसपी सिमालाप्रसाद से लेकर महिला सशक्तिकरण अधिकारी श्यामबाबू के सामने अपनी बात रखी। जहां इस परंपरा को सुनते ही एसपी ने खुद उनके गांव आकर समाज की बैठक कर कुप्रथा में सुधार का आश्वासन दिया।
शाजापुर जिले के तीन गांव जिनमें कड़वाला, ऊचोद और लाडख़ेड़ा व राजगढ़ जिले के नौ गांव जिनमें मकराना, पड़ाना, करनवास, अमलार, संडावता, भीलवाडिय़ा, कोडिय़ाजरगर, पीपल्यारसोड़ा सहित भ्याना शामिल है। इन गांवों में करीब 12 हजार लोग पाटीदार खड़क समाज के लोग निवास करते है। बताया जाता है कि इनमें से 300 परिवारों की महिलाओं, बच्चियों और बहुओं को डायन के रूप में देखा जाता है। ऐसे में उनके साथ अन्य परिवार के लोग ही नहीं बल्कि घर की अन्य महिलाएं और पति, भाई-बहिन सहित परिवार के सभी सदस्य उनके द्वारा बनाया गया खाना नहीं खाते। जहां लंबे समय से महिलाएं इस दंश को झेल रही थी। वहीं अब पढ़-लिख चुकी कई बहु, बेटियां इस प्रथा के विरोध में उतर गई और उनका कहना है कि हमें इस डायन के नाम से हटाया जाए और हमें भी समाज की अन्य महिलाओं की तरह देखा जाए।
समाज अध्यक्ष करा चुके भंडारा इस कुप्रथा में सुधार हो। इसके लिए समाज के प्रदेशाध्यक्ष महेन्द्रनारायण पाटीदार द्वारा एक भंडारा करा चुके है। ताकि समाज की सभी महिलाएं उसमें शामिल हो और इस डायन कुप्रथा को खत्म किया जाए। लेकिन समाज के ही कुछ प्रबुद्ध लोग जो आर्थिक रूप से सम्पन्न है और समाज में भी दखल करते है। वे इस आयोजन में शामिल होने नहीं पहुंचे। जो कि खुद भी राजनैतिक पदों पर आसीन है। लेकिन वे इस कुप्रथा को खत्म करना नहीं चाहते।
एसपी कार्यालय पहुंचकर रखी बात शुक्रवार को समाज की सभी महिलाएं एसपी कार्यालय पहुंची। जहां उन्होंने अपने नाम के साथ डायन शब्द को हटाया जाए और उनसे भी अन्य महिलाओं की तरह बात हो। इसके लिए एसपी से मदद मांगी।
वर्सन-यह परंपरा काफी पुरानी है। लेकिन उसका दंश अभी भी बहु-बेटियां ही नहीं बल्कि उनकी कोख से जन्म लेने वाली नवजात बेटी भी डायन हो जाती है।
वर्सन-यह परंपरा काफी पुरानी है। लेकिन उसका दंश अभी भी बहु-बेटियां ही नहीं बल्कि उनकी कोख से जन्म लेने वाली नवजात बेटी भी डायन हो जाती है।
इस दंश से छुटकारा चाहिए। लेकिन हमारे ही समाज के कुछ प्रबुद्धजन यह सब नहीं होने देना चाहते। जिसके कारण कभी कोई बहु-बेटी आत्महत्या तक कर सकती है। क्योंकि बहुओं से खाना नहीं बनवाया जाता और उन्हें सिर्फ बच्चे पैदा करने तक ही सीमित रखा जाता है।
– विष्णु पाटीदार, समाज के वरिष्ठ
– विष्णु पाटीदार, समाज के वरिष्ठ
मुझे जानकारी लगी तो मैं खुद गांव जा रही हूं। पहले पूरे मामले को समझती हूं कि आखिर क्या प्रथा है। उसमें सुधार हो इसके लिए जागरूक करेंगे और खत्म करने के लिए हर प्रयास किया जाएगा।
– सिमालाप्रसाद, एसपी राजगढ़
– सिमालाप्रसाद, एसपी राजगढ़