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राजगढ़

कुपोषण के आगे हार गई आशा ,भोपाल के एम्स अस्पताल में तोड़ा दम

खुली विभागीय व्यवस्थाओं की पोल…

राजगढ़May 22, 2019 / 12:49 pm

Amit Mishra

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कुपोषण के आगे हार गई आशा ,भोपाल के एम्स अस्पताल में तोड़ा दम

राजगढ़। ब्यावरा के नादनपुर गांव में रहने वाली तीन माह की आशा नाम की बालिका को अति कुपोषित होने के बाद जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था । बच्ची की हालत बहुत ही नाजुक थी लेकिन उसका इलाज जिला चिकित्सालय में चल रहा था मामले को जब पत्रिका ने प्रमुखता से उठाते हुए प्रशासन का ध्यान आकर्षित कराया तो न सिर्फ राजगढ़ बल्कि भोपाल तक कि अधिकारियों ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए बच्ची के स्वास्थ्य पर चिंता जाहिर की। और उचित उपचार मिले इसके लिए प्रशासन ने रविवार की दोपहर बालिका को राजगढ़ से रेफर करते हुए भोपाल के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया था।

सुपरवाइजर और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को भेजा था भोपाल…
भोपाल के एम्स अस्पताल में आशा का बेहतर इलाज चला फिर भी पूर्व में बरती गई लापरवाही के चलते आखिरकार कुपोषण के आगे आशा नाम की इस बच्ची की जिंदगी से आशा टूट गई । 21 मई को बच्ची ने इलाज के दौरान भोपाल में दम तोड़ दिया। यहां बच्ची की मौत की जानकारी आने वाले विभाग ने खेद व्यक्त किया साथ ही बच्ची की मौत के बाद उसे राजगढ़ लाने के प्रबंध किए। उल्लेखनीय है कि रविवार को बच्ची के परिवार के साथ ही क्षेत्र की सुपरवाइजर और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को भी विभाग ने भोपाल भेजा था।

 

 

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ये है मामला…
कुपोषण की शिकार बच्ची को कुछ दिन पहले जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था। कुपोषण बच्ची ने विभागीय व्यवस्थाओं की पोल खोल कर रख दी थी। जहां न सिर्फ बच्ची बल्कि उसकी मां की हालत भी कमजोर नजर आई। ब्यावरा के लाडनपुर गांव में रहने वाली एक महिला ने अपनी तीसरी बेटी को जन्म दिया तीन माह बीत जाने के बाद भी बेटी की तरफ शायद किसी ने ध्यान नहीं दिया था।


अभियान के बाद भी नहीं सुधरी स्थिति…
यही कारण है कि अब आशा नाम की उस बिटिया की हालत बहुत ही नाजुक बनी हुई थी। जिला चिकित्सालय के चिल्ड्रन वार्ड में उसका इलाज चल रहा है। वहीं 21 दिन तक उसे एनआरसी में भी रखने की डॉक्टर ने सलाह दी है, लेकिन उस बालिका की हालत ऐसे कैसे हुई और इसका जिम्मेदार कौन है। इन मामलों पर कोई चर्चा नहीं होती। यही कारण है कि आज भी संजीवनी जैसे अभियान चलाए जाने के बाद भी जिले में कुपोषण बना हुआ है।


खाली पड़े रहते हैं एनआरसी भवन…
कुपोषण को कम करने के लिए जिले के कई अस्पतालों में एनआरसी भवन चल रहे हैं, लेकिन कई गांव में कुपोषित बच्चों के होने के बावजूद आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या फिर एएनएम आदि इस तरफ कोई ध्यान नहीं देती, जिसके कारण कई बार बीमारी के बीच बच्चों की जान तक चली जाती है, लेकिन तमाम अभियानों और जागरुकता कार्यक्रमों के बाद भी ब’चों को एनआरसी भवन नहीं भेजा जाता है।

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