जिस जगह ग्रामीणों को विस्थापित करते हुए कालोनी बनाई गई। वहां शासन ने हर सुविधा उपलब्ध कराई है, लेकिन यहां पर कुछ नहीं है और हो भी कैसे। क्योंकि यह गांव अभी शासन के रिकार्ड में नहीं है। पहले यहां विस्थापित कर कालोनी बनाने का प्रावधान था, लेकिन बाद में यह सब बदलते हुए जमीन पर कब्जा करा दिया गया और ग्रामीणों से काटी जाने वाली राशि न लेते हुए पूरा भुगतान उनके खातों में डाल दिया गया। ऐसे में अब यहां न कालोनी है और न ही कोई स्कूल या आंगनबाड़ी और तो और जिसका जहां मन आया। वहां मकान बना लिया।
तत्कालीन एसडीएम ममता खेड़े ने गांव के लिए कालोनी बनाने की बात कही थी, लेकिन उनके स्थानांतरण की सूचना के साथ ही जमीनी स्तर पर काम करने वाले मोहनपुरा डेम के इंजीनियर और राजस्व के पटवारी गांव में सक्रिय हो गए और कुछ गांव के ही लोगों से मिलकर सरकारी जमीन पर कब्जा कराना शुरू कर दिया। सूत्र बताते है कि यह सब मुफ्त में नहीं हुआ है। बल्कि इसके लिए पूरे गांव ने चंदा एकत्रित करके मोटी रकम राजस्व और मोहनपुरा सिंचाई परियोजना तक पहुंचाई है। यही कारण है कि मकान का पूरा पैसा देने के बावजूद वहां आज तक इस कब्जे को रोकने या हटाने का प्रयास नहीं किया गया।
विजेन्द्र रावत, एसडीएम राजगढ़