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राजगढ़

जिलेभर में 12 गौ शालाएं, फिर भी सड़कों पर भटक रहीं हजारों गाय!

जिले में करीब दो लाख हैक्टेयर शासकीय चरनोई भूमि होने के बावजूद गौ वंश संकट में

राजगढ़Jul 26, 2018 / 10:00 am

Ram kailash napit

NEWS

In this way the roads are seated, the Gau Dynasty

ब्यावरा. देश के प्रधानमंत्री भले ही विदेशों में दो सौ गाय भेंट कर रहे हों, लेकिन अपने ही देश में इनके बुरे हाल हैं। बात शहरों की हो या गांवों की हर जगह माता कही जाने वाली गाय सड़कों पर भटक रही है। इसे लेकर न प्रशासन गंभीर है न किसान इन्हें पालकर अपनी जवाबदारी समझना चाहते।
दरअसल, शास्त्रों में ही माता तक सीमित रह गई गाय अब इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। मशीनी युग में न गायों का उपयोग बचा न ही बैलों का। इसका असर हुआ कि जितना भी गौ वंश देशभर में है या तो वह सड़कों पर है या शहर की गली-मोहल्लों में। जिले में सर्वाधिक दिक्कत इसकी बनी हुई है।
यह गंभीर समस्या जिले के लिए चुनौती बनी हुई है, जिस पर न समाजसेवी संस्थाएं काम कर पा रही हैं न ही जिला प्रशासन। तमाम प्लॉन कागजों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। चुनिंदा गौ शालाओं के अलावा तमाम गौ वंश इधर-उधर भटक रहा है।


किसानों की दिक्कत, बर्बाद कर देती हैं फसलें
बारिश के समय सड़कों पर आ जाने वाली गायों को लेकर किसानों की अपनी दिक्कत है। गायों का झुंड पूरे खेत की फसल चपेट कर देती है। इसके लिए किसान रात-रातभर जागकर तक सुरक्षा करते हैं। गांवों से शहरी क्षेत्र में गौ वंश के आ जाने से न सिर्फ सड़क मार्ग प्रभावित होता है बल्कि हर गली मोहल्ले में मवेशियों का जमावड़ा हो जाता है। गौ वंश की दशा सुधारने प्रशासनिक स्तर पर प्रयास किए जा सकते हैं।

इसमें गायों के लिए शासकीय जमीन अलॉट की जा सकती है। साथ ही गौ शालाओं में क्षमता अनुसार गायों को पहुंचाया जा सकता है। कृषि विभाग चाहे तो प्रति किसान एक गाय पालने की सख्ती कर सकता है। इसके अलावा हर कृषि मंडी में प्रति क्विंटल एक रुपए की अनुदान राशि दी जा सकती है, इससे शासन को तो लाभ होगा ही गायों के लिए भी मदद हो जाएगी।

बैलों की उपयोगिता खत्म, इसलिए सड़कों पर गाय
बुरे दौर से गुजर रही गौ वंश के पीछे एक प्रमुख कारण मशीनकरण भी है, हालांकि इसे बदला नहीं जा सकता, लेकिन यह सच भी है। जो किसान बैलों के बिना जुताई नहीं कर पाते थे उनका काम अब आसानी से मशीनों से होने लगा है। गायों की उपयोगिता लगभग खत्म सी हो गई है। इसीलिए किसान अब उसे पालना नहीं चाहते।

सीमित मात्रा में दूध देने वाली गाय को किसान पालकर रखना नहीं चाहते। साथ ही इनसे पैदा होने वाले बछड़े, गाय इत्यादि की उपोगिता भी न के बराबर हो जाने से किसान इनसे दूर भाग रहे हैं। हालांकि गाय पालने में बहुत ज्यादा खर्च नहीं है। भैंस के एक तिहाई खर्च में गाय का काम चल जाता है।


फैक्ट-फाइल
-6.50 लाख हैक्टेयर कुल जमीन जिले में।
-4.25 लाख हैक्टेयर जमीन कृषि योग्य।
-27, 200 हैक्टेयर में वन भूमि।
-1.25 लाख हैक्टेयर शासकीय जमीन।
-1.97 लाख हैक्टेयर चरनोई और शासकीय भूमि।
-2, 52, 713 कुल किसान जिले में।
-12 से अधिक गौ शाला जिलेभर में।
-हजारों की संख्या में गाय रोड पर।
(आंकड़े जिला प्रशासन से मिली जानकारी अनुसार)

विहिप कार्यकर्ता अपने स्तर पर गौ संरक्षण में लगे रहते हैं, लेकिन संरक्षण के लिए हर मंडी में आने वाली उपज पर प्रति क्विंटल एक रुपए की राशि तय कर देने से भी काफी समस्या का हल हो जाएगा। एक रुपए प्रति क्विंटल देने में कोई किसान हिचकिचाएगा भी नहीं और शासन को अतिरिक्त लाभ गायों के लिए हो जाएगा, बशर्ते इसका सही मैनेजमेंट हो।
-डॉ. अशोक अग्रवाल, विभाग सेवा प्रमुख, विहिप, ब्यावरा
शासकीय चरनोई भूमि में गायों के लिए विकल्प खोजा जाएगा। इसमें आम जनता, समाजसेवियों से भी सुझाव लिए जाएंगे। प्लॉनिंग के जरिए गायों के संरक्षण की योजना तैयार की जाएगी। इसमें गौ शाला में क्षमता अनुसार गायों की की संख्या का भी निर्धारण करेंगे। शासन स्तर पर हम प्लॉन तैयार करेंगे।
-कर्मवीर शर्मा, कलेक्टर, राजगढ़

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