दरअसल, किसानों ने समय से पहले बोवनी कर दी, जिसे बारिश की लंबी खेंच (अंतराल) का सामना करना पड़ा। बाद में लगातार बारिश के कारण फसलें ग्रोथ नहीं कर पाईं। इसमें प्रमुख कारण जरूरत से ज्यादा मात्रा में उपज का बोना भी सामने आया है। किसान अधिक मात्रा में सोयाबीन सहित अन्य उपज की बोवनी कर देते हैं, उसके लिए प्रुयक्त होने वाले सीडिल (बोवनी करने वाला ट्रैक्टर का उपकरण) भी अप्रुव (नियमानुसार) नहीं लेते।
कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा बार-बार अह्वान करने के बावजूद इस पर जोर नहीं देते इसीलिए वर्तमान में ऐसे हालात बन रहे हैं। बांझपन सामने आने के कारण सोयाबीन की ग्रोथ नहीं हो पा रही है। स्थिति यह है कि जिलेभ में करीब 20 प्रतिशत से अधिक सोयाबीन इसकी चपेट में आई है और जो सोयाबीन बांझ रह गई उसमें आगे और वृद्धि की उम्मीद बेहद कम है।
फैक्ट-फाइल
-06 लाख हैक्टेयर कुल खेती की जमीन जिले में।
-3 लाख 40 हजार हैक्टेयर में सोयाबीन।
-20 प्रतिशत सोयाबीन में बांझपन की शिकायत।
-100 प्रतिशत से अधिक बारिश हुई।
(नोट : कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार)
150 की जगह 45 लीटर पानी ही मिलाते हैं कीटनशासक में
खरपतवार (एड़ा, घास) को नष्ट करने के लिए किसान जरूरत से ज्यादा कीटनाशक का उपयोग करते हैं। जानकारों के अनुसार प्रति बीघा में एक लीटर दवाई में करीब 150 लीटर पानी का उपयोग करना चाहिए, जिससे इसका प्रतिकूल प्रभाव सोयाबीन या अन्य उपज पर पड़ रहा है। किसान जल्दी परिणाम देखने के फेर में कम पानी (महज 45 लीटर) में अत्यधिक दवाई डाल देते हैं। इसी कारण घास के साथ सोयाबीन या अन्य उपज का पौधा भी विकसित नहीं हो पाता।
जरूरत एक लाख की बो दिए साढ़े तीन लाख पौधे
कृषि विज्ञान केंद्र की टीम द्वारा किए गए औसत निरीक्षण में सामने आया कि किसान अधिक उत्पादन के प्रलोभन में उपज के साथ खिलवाड़ करता है। जहां महज एक लाख पौधे एक बीघा में होने चाहिए उसी खेत में करीब साढ़े तीन लाख तक पौधे होते हैं। जिससे सोयाबीन का पौधा जरूरत के हिसाब से वृद्धि नहीं कर पाता। लगातार बारिश के कारण उन्हें पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती, साथ ही खेंच नहीं मिल पाती तो पौधे वृद्धि नहीं कर पाते। इसीलिए सोयाबीन के न बीच बन पा रहे हैं और न ही फूल, इसीलिए वह बांझ हो गई।
एक्सपर्ट कमेंट्स
जहां पानी जमा उसे बाहर निकालें
वैसे बांझपन का अब कोई समाधान नहीं है, किसानों को हर बार हम सलाह देते हैं लेकिन वे मानते नहीं। इसी का परिणाम है कि ऐसी स्थितियां निर्मित हुईं। अब एहतियात के तौर पर किसान भाई उस क्षेत्र का पानी बाहर निकालें और जहां खेतों में पानी जमा है।
-डॉ. अखिलेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, राजगढ़