इस बीमारी से स्वयं को बचाए रखना है, तो इसके लिए न सिर्फ आम लोगों को जागरूक करना है बल्कि ऐसे निजी और सरकारी कार्यालय जिनका जुड़ाव सीधे आमजन से हो सकता है। उन कार्यालयों में भी सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखना जरूरी है। ताकि संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हुए न बढ़े। इसके लिए जरूरी है कि हर कार्यालय में एक तिहाई लोग ही काम करें और अन्य कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम करें। यह व्यवस्था न सिर्फ निजी कार्यालय में बल्कि सरकारी कार्यालयों में भी होनी जरूरी है।
बेहतर काम हो सकता है अधिकांश अधिकारी-कर्मचारी घर में तमाम दिक्कतों के बाद भी वर्क फ्रॉम होम व्यवस्था को उचित मानते हैं। हालांकि इसके लिए वे स्वयं निर्णय नहीं ले सकते। इसके लिए शासन स्तर से दिशा-निर्देश पर ही काम हो सकता है। इस तरह की व्यवस्था हो जाने से कम संसाधन के साथ बेहतर काम भी हो सकता।
बदलाव करना चाहिए स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक कर्मचारी विजय शर्मा की माने तो उनके जीवन काल में उन्होंने कोविड-19 जैसे घातक संक्रमण नहीं देखा है। इतिहास में पहली बार इस तरह की मुसीबत आई है। इस कारण शासन-प्रशासन को भी इससे सीख लेते हुए व्यवस्था में बदलाव करना चाहिए। उनका मानना है कि जिला प्रशासन में कई ऐसे विभाग हैं, जहां वर्क फ्राम होम कारगर साबित हो सकता है। कम संसाधन के बाद भी बेहतर काम किया जा सकता है। इससे बेमतलब दौडऩे वाली गाडिय़ों की संख्या में कमी आएगी। पेट्रोल-डीजल व समय की बचत होगी। इससे पर्यावरण को भी लाभ होगा।
खर्चों में आएगी कमी यदि कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम करते हैं, तो सरकारी भवनों का अन्य कार्य में उपयोग किया जा सकता है। वहीं बिजली व कार्यालयीन व्यवस्थाओं में प्रतिमाह होने वाले खर्च को भी बचाया जा सकता है।