भू्रण के अंदर भ्रूण पाए जाने वाली बच्ची का वजन लगभग ढाई किलो है और अब चिकित्सक इस बच्ची के वजन के चार किलो के आसपास होने के बाद ऑपरेशन के जरिये उसके पेट में मौजूद भ्रूण को निकालने का काम करेंगे। इसके लिए करीब 4 महीने का इंतजार करना पड़ेगा।
Read more: नाबालिग बेटी का इलाज कराने पहुंचे थे अस्पताल, जब डॉक्टरों ने बताया प्रेंग्नेंट है लड़की तो माता-पिता के उड़ गए होश… पेट में था सूजनराजनांदगांव के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिमेष गांधी के पास यह मामला आया था। जिले के ग्रामीण अंचल के एक दंपत्ति अपनी छह दिन की बेटी को लेकर उनके पास पहुंचे थे। बच्ची के पेट में सूजन था और दर्द से वह लगातार रो रही थी। प्रारंभिक जांच के बाद बच्ची की सोनोग्राफी के लिए डॉ. गांधी ने कहा। सोनोग्राफी में यह पूरा मामला सामने आया।
राजनांदगांव के विधि डायग्नोस्टिक एवं रिसर्च सेंटर में रेडियोलाजिस्ट डॉ. अमित मोदी ने बच्ची की सोनोग्राफी की। उन्होंने पाया कि छह दिन की बच्ची के पेट में एक और भू्रण मौजूद है। इस भू्रण का पैर, हाथ व सिर का हिस्सा हल्का सा विकसित हो चुका है जबकि अभी दिल और अन्य अंग विकसित नहीं हुए हैं। इस प्रकार की जांच के लिए गहन अध्ययन और अनुभव की जरूरत पड़ती है। डॉ. मोदी ने बारीकी से जांच कर इस स्थिति का पता लगाया।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. गांधी ने बताया कि सोनोग्राफी से यह पता चला है कि नवजात बच्ची के पेट में मिला भू्रण पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है। सिर्फ हाथ, पैर व सिर के हिस्से बने है। ऐसे में ऑपरेशन कर इस गोलाकार भू्रण को निकाला जाएगा। उन्होंने कहा कि फिलहाल बच्ची का वजन कम है। उसके वजन के चार से पांच किलो होने के बाद ऑपरेशन किया जाएगा।
इस वजह से होता है इस तरह का मामला
डॉ. मोदी के मुताबिक जब एक प्रसूता जुड़वा बच्चों से गर्भवती होती है और एक बच्चा पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता तो वह दूसरे बच्चे के उदर में स्थान ले लेता है। प्रसव के बाद उस नवजात के पेट में यह भू्रण मिलता है। डॉ. गांधी ने बताया कि पिता के शुक्राणु और माता के अंडाणु से कई बार जुड़वा बच्चे विकसित होते हैं। कई बार ये जुड़वा बच्चे आपस में जुड़े हुए पैदा होते हैं। दुर्लभ स्थिति में इनमें से एक भू्रण दूसरे बच्चे के पेट में आ जाता है।
डॉ. गांधी और डॉ. मोदी के मुताबिक भ्रूण के अंदर भू्रण (फेट्स इन फेटू) का मामला बेहद दुर्लभ होता है और यह पांच लाख जीवित बच्चों में से एक में होता है। चिकित्सकों के अनुसार पूरे विश्व में अब तक लगभग दो सौ मामले सामने आए हैं। भारत में अब तक इस तरह के लगभग 9 से 10 मामले ही सामने आए हैं। इस तरह का पहला मामला 18वीं शताब्दी में दर्ज किया गया था।