पूर्व सांसद अशोक शर्मा ने ‘पत्रिका’ से चर्चा करते हुए बताया कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताया और लोकसभा चुनाव में टिकट दी। उस समय राज्य और केंद्र में भाजपा की कहीं भी सरकार नहीं थी, ऐसे में खैरागढ़ के राजा शिवेंद्र बहादुर को हराना बड़ी बात थी।
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लोकसभा क्षेत्र का अस्तित्व बनने के बाद अब तक हुए 16 चुनावों में 10 बार संसदीय मुख्यालय राजनांदगांव से सांसद चुने गए। इसके बाद तीन बार कवर्धा को मौका मिला है, जबकि तीन बार बाहरी प्रत्याशी सांसद चुने गए। यहां खैरागढ़ से छह बार सांसद चुनकर दिल्ली तक पहुंचे है। वर्ष सांसद निवासी 2019 संतोष पांडेय कवर्धा 2014 अभिषेक सिंह कवर्धा 2007 देवव्रत सिंह खैरागढ़ 2009 मधुसूदन यादव राजनांदगांव 2004 प्रदीप गांधी डोंगरगांव 1999 डॉ. रमन सिंह कवर्धा
1998 मोतीलाल वोरा दुर्ग 1996 अशोक शर्मा राजनांदगांव 1992 शिवेंद्र बहादुर खैरागढ़ 1989 धरमपाल गुप्ता दुर्ग 1984 शिवेंद्र बहादुर खैरागढ़ 1980 शिवेंद्र बहादुर खैरागढ़ 1977 मदन तिवारी डोंगरगांव
1971 रामसहाय पांडेय मुंबई 1967 पद्मावती देवी खैरागढ़ 1962 वीरेंद्र बहादुर खैरागढ़ पूर्व सांसद शर्मा ने बताया कि तब और अब के चुनाव में बहुत अंतर आ गया है। पहले सीमित संसाधन हुआ करते थे। वे बताते हैं कि भले ही वे दो साल ही सांसद रहे, लेकिन पूरी पारदर्शिता के साथ जनता की सेवा किया। इसका जनता और पार्टी पर अमिट छाप रही।
राजनांदगांव जिला पहले दुर्ग जिले का हिस्सा हुआ करता था। 26 जनवरी 1973 को अलग होकर राजनांदगांव जिला अस्तित्व में आया था। 2009 से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। इस बार भाजपा की नजर जीत का चौका लगाने पर है। 1957 में इस सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ। तब से लेकर 1971 तक यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी के उम्मीदवार ने यहां से जीत दर्ज की। इसके बाद कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा की जीत होती रही।
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