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राजनांदगांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल की कोरोना से मौत, दो दिन पहले हुए थे एम्स में भर्ती

वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल का मंगलवार सुबह 8 बजे कोरोना संक्रमण से एम्स रायपुर में निधन हो गया। दो दिन पहले कोरोना संक्रमण होने पर उन्हें रायपुर एम्स में भर्ती किया गया था।

राजनंदगांवSep 22, 2020 / 12:53 pm

Dakshi Sahu

राजनांदगांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल की कोरोना से मौत, दो दिन पहले हुए थे एम्स में भर्ती

राजनांदगांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल की कोरोना से मौत, दो दिन पहले हुए थे एम्स में भर्ती

राजनांदगांव. वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल का मंगलवार सुबह 8 बजे कोरोना संक्रमण से एम्स रायपुर में निधन हो गया। दो दिन पहले कोरोना संक्रमण होने पर उन्हें रायपुर एम्स में भर्ती किया गया था। 101 साल के अग्रवाल का जन्मशती पर्व पिछले साल 20 अगस्त 2019 को राजनांदगांव में समारोह पूर्वक मनाया गया था।
राजनांदगांव के भारतमाता चौक के पास निवास करने वाले अग्रवाल सौ वर्ष की आयु पार करने वाले राज्य के संभवत: अकेले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। स्व. अग्रवाल के पुत्र शरद अग्रवाल ने पत्रिका को बताया कि घर में ही संयमित रहने वाले बाबूजी की तबीयत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जांच में उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव निकली। मंगलवार सुबह उनकी मृत्यु हो गई।
15 अगस्त 2018 को पत्रिका के सीनियर रिपोर्टर अतुल श्रीवास्तव ने वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का इंटरव्यू लिया था। जिसका अंश ये है…

वयोवृद्ध स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल देश की मौजूदा परिस्थितियों से दुखी हैं। वे कहते हैं कि अंग्रेजों के समय में इतना भ्रष्टाचार नहीं था, जितना आज के दौर में है। उन्होंने कहा कि हम सेनानियों को भी अपने वाजिब काम के लिए भटकना पड़ता है, तब दुख होता है। वे कहते हैं कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को समारोह में बुलाकर सम्मान करने की औपचारिकता निभा दी जाती है और फिर बाकी दिन बिसरा दिए जाते हैं।
कई बार हो गए भावुक
इस 20 अगस्त को 99 वर्ष की आयु के हो जाने वाले राजनांदगांव निवासी सेनानी अग्रवाल से पत्रिका ने खास बातचीत की। बातचीत के दौरान अग्रवाल कई बार भावुक हुए और कई बार वे पूरे जोश में दिखे। हालांकि उन्होंने कहा कि अब राजनांदगांव जिले में हम तीन ही सेनानी बचे हैं और अब उम्र हो चली है। उन्होंने कहा कि अपना दैनिक काम वे खुद कर लेते हैं लेकिन उम्र के साथ अब कमजोरी आने लगी है। उम्र के इस पड़ाव पर भी अग्रवाल की याददाश्त गजब की है और वे आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के किस्से को पूरे उत्साह के साथ बताते हैं।
सेनानियों के सम्मान को हासिल करने जैन को खूब मशक्कत करनी पड़ी। अग्रवाल बताते हैं कि जैन दिल्ली में डेरा डालकर हर मंत्री, हर सांसद से मिलते रहे। गोरखपुर के एक सांसद रहे सिब्बल लाल ने दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद काफी प्रयासों के बाद सेनानियों को चिन्हांकित करने के लिए एक कमेटी बनाई गई। कमेटी में सरकारी कर्मचारियों को रखा गया। आवेदन का प्रोफार्मा तैयार किया गया। यह प्रोफार्मा काफी अपमानित करने वाला था।
पेंशन शब्द पर की थी आपत्ति
मसलन, उसमें सेनानियों से लिखवाया जा रहा था कि उनकी आर्थिक स्थिति काफी दयनीय है, उनकी मदद की जाए। सेनानियों से प्राप्त आवेदनों के बाद उनके लिए पेंशन शुरू किया गया। स्वतंत्रत्रा की लड़ाई में योगदान देने वाले सेनानियों को मिलने वाली राशि को पेंशन कहे जाने पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने गलत कहा। सेनानी अग्रवाल ने बताया कि ज्ञानी जैल सिंह की आपत्ति के बाद पेंशन शब्द हटाकर सम्मान निधि कहा जाने लगा।
उन्होंने बताया कि दो श्रेणियों में सम्मान निधि दी जाने लगी। छह महीने से कम सजा और छह महीने से ज्यादा सजा के आधार पर सम्मान निधि तय की गई। अग्रवाल बताते हैं कि उन्हें साढ़े 4 महीने की सजा हुई थी। वे बताते हैं कि पहले तहसील में जाकर सम्मान निधि लेनी पड़ती थी लेकिन अब बैंक खाते में राशि आ जाती है। सेनानी अग्रवाल बताते हंै कि 15 अगस्त 1947 के करीब दस पंद्रह दिन पहले से गांधी जी, मोहम्मद अली जिन्ना और जवाहरलाल नेहरू की बैठकें चल रही थीं। उस वक्त कोलकाता से आने वाले विश्वामित्र नाम के अखबार में यह खबर लगातार छप रही थी।
खूब जश्न था आजादी के दिन
देश की जनता को यकीन हो गया था कि अब जल्द ही देश आजाद होने वाला है। जिस दिन देश आजाद हुआ, उसकी सूचना पूरे देश में फैल गई थी और खूब जश्न मना था। राजनांदगांव में भी आजादी का जश्र पूरे उत्साह के साथ मनाया गया था।
मौजूदा दौर की राजनीति को एक बिगड़ा हुआ स्वरूप बताते हुए सेनानी अग्रवाल कहते हैं कि गांधी जी को जिस दिन गोली लगी, उसी दिन सुबह उन्होंने एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस का जन्म देश को आजाद करने के लिए हुआ था और अब उद्देश्य पूरा हो गया है, इसलिए कांग्रेस को खत्म कर दिया जाए।
गांधी जी ने कहा था कि देश की सेवा करने वालों का एक नया संगठन बनाया जाए और वो देश सेवा का काम करे लेकिन उनकी सलाह नहीं मानी गई। बरसों तक कांगे्रस के नाम का उपयोग कर नेता शासन करते रहे। कालांतर में पैसे और शराब के बल पर चुनाव जीते जाते रहे। नतीजा कांग्रेस की दुर्गति हो गई।
उन्होंने कहा कि अब यही हाल भाजपा का हो रहा है। अगस्त 1938 में राजनांदगांव में कांग्रेस का गठन किया गया। इस दौरान एक मेमोरेंडम तैयार किया गया जिसमें उल्लेख था कि राजा साहब रियासत के शासक बने रहे लेकिन शासन में जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित हो।
सकारात्मक फैसला आया
रामचंद सखाराम रूइकर का मानना था कि ऐसा होने से रियासत का रूख नर्म होगा और मजदूरों की हड़ताल को लेकर सकारात्मक फैसला आएगा। कांग्रेस का गठन तो हो गया लेकिन अंग्रेजों की दहशत के चलते कोई अध्यक्ष बनने तैयार नहीं था। ऐसे में रूइकर की नागपुर में रहने वाली पत्नी इंदिरा बाई रूइकर को अध्यक्ष बनाया गया। उनके नेतृत्व में यहां लोगों ने आजादी के आंदोलन में भागीदारी निभाई।
राजनांदगांव जिले में इस वक्त तीन ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं। शहर के भारत माता चौक में रहने वाले अग्रवाल के अलावा छुईखदान में रहने वाले सेनानी दामोदरदास त्रिपाठी और मोहला में रहने वाले देवीप्रसाद आर्य ही हैं। डोंगरगांव में रहने वाले सेनानी दामोदर दास टावरी का इसी 10 अगस्त को 104 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था।
देश का हो गया विभाजन
सेनानी अग्रवाल बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के बाद देश के अलग अलग हिस्सों में आजादी की अलख जगाने वाले हजारों सेनानियों को भुला दिया गया था। वे बताते हैं कि जबलपुर के रतनचंद जैन नाम के सेनानी ने एक बार एक व्यक्ति को कचरे के ढेर से खाने के दाने खोजकर खाते देखा। पता किया तो चौंकाने वाली जानकारी मिली कि विक्षिप्त सा नजर आने वाला व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी था। इसके बाद जैन ने सेनानियों को उनका मान, सम्मान दिलाने का अभियान चलाने का बीड़ा उठाया।
मध्य भारत के सबसे बड़े कपड़ा मिल बंगाल नागपुर कॉटन मिल (राजनांदगांव की यह मिल अब बंद हो चुकी है) में हुए बड़े हड़ताल का जिक्र करते हुए सेनानी अग्रवाल बताते हैं कि राजनांदगांव रियासत के राजा सर्वेश्वरदास और यहां मौजूद अंग्रेजों के तीन पोलिटिकल एजेंट मजदूरों की सुन नहीं रहे थे। स्थिति विकट हो रही थी। मजदूरों के सामने भूखो मरने की नौबत आ रही थी। यह वह दौर था जब देश की छोटी बड़ी करीब 650 रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना को लेकर आंदोलन चल रहा था। ऐसे में मजदूरों के नेता रामचंद सखाराम रूइकर ने यहां भी कांगे्रस के गठन का फैसला लिया।
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