जानकारी के अनुसार वन विभाग के अधिकारियों को मुखबिर से सूचना मिली थी कि एक मेटाडोर में लकडिय़ों की तस्करी हो रही है। सूचना के आधार पर वन विभाग ने मेटाडोर को रोका, जिसमें नीम, कहुआ, बेर, बम्बूल आदि प्रजाति की लकडिय़ां भरी थी। वाहन को पकड़कर कार्रवाई के लिए वन विभाग लाया गया और कार्रवाई नहीं करने के एवज में 1 लाख रूपए की मांग की गई। रूपए मांगे जाने की शिकायत के बाद उक्त वाहन को छोड़ दिया गया।
इस मामले में वन विभाग के रेंजर डीडी घृतलहरे का कहना है कि विधिवत कार्रवाई हुई है। एक लाख रूपए मांगे जाने का आरोप गलत है। वहीं वाहन को छोड़ देने के मामले को लेकर रेंजर ने कहा कि उच्च अधिकारियों का फोन आने पर वाहन सुपूर्द नामे में छोड़ा गया है। बिना कार्रवाई के वाहन छोड़े जाने का मामला सामने आने के बाद सोमवार को गाड़ी मालिक के खिलाफ जुर्माना लगाया गया लेकिन वन अधिनियम के तहत जब्त लकड़ी नीम और कहुआ बगैर टीपी के नहीं ले जाई जा सकती है। यदि ऐसा किया जाता है तो उक्त गाड़ी के खिलाफ राजसात की कार्रवाई की जानी थी लेकिन विभागीय अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया और वाहन को छोड़ दिया।
इस संबंध में वाहन मालिक रितेश गुप्ता ने कहा कि मैंने अपनी गाड़ी दिनेश देवांगन को भाड़े में दिया था और उससे लकड़ी को भिलाई छोडऩे कहा था। जिसे राजनांदगांव वन विभाग के अधिकारी ने पकड़ लिया था, अधिकारियों से बात होने के बाद गाड़ी को छोड़ दिया गया है। इस मामले में वन विभाग की पूरी कार्रवाई संदेह के घेरे में नजर आ रही है। वाहन में बिना अनुमति के लकडिय़ों का परिवहन होने के बाद भी वाहन को छोड़ देने से पूरा मामला संदिग्ध नजऱ आ रहा है।