दो दिवसीय विचार संगोष्ठी में सतनाम धर्म के कानूनी मान्यता के लिए रूपरेखा, ऐतिहासिक, धार्मिक स्थलों में सामुदायिक सुविधाओं का विस्तार व विकास, गुरू बाबा घासीदास व गुरू वंशजों के जीवनी, कृत्तव व सत संदेशों पर व्याख्यान, समाज के नीति-नियम, रीति-रिवाज, सतनाम धर्म, संस्कृति व संस्कार की एकरूपता, सुरक्षा व चेतन के लिए सुझाव, समाज की वर्तमान दशा-दिशा पर विवेचना, सतनामी समाज के लिए आज भी निजी व सार्वजनिक रूप से प्रताडि़त करने काननून विलोपित शब्दों का प्रयोग पूर्णत: बंद के लिए जागृति, छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा दिए जा रहे आरक्षण आदि विषयों के अलावा समसामयिक अन्य विषयों, प्रकरणों पर प्रस्ताव चर्चा किया गया।
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के प्रतिनिधि मंडल के साथ-साथ दिल्ली, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आसाम, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, तमिलनाडू, झारखंड सहित विदेशों से आए सतनामी जनों के साथ सतनामी समाज के प्रमुख पदाधिकार, राजमहन्त, जिला महन्त, शिक्षाविदो, साहित्यकार सभी राजनीतिक दलों के पूर्व व वर्तमान नेता, मंत्री, सांसद, विधायक, शासकीय, अद्र्धशासकीय, निजी संस्था, समिति संगठन के पदाधिकारी, अधिकारी, कर्मचारी, नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत के पूर्व व वर्तमान जनप्रतिनिधि, विविध विषयों के जानकार व सामाजिक कार्यकर्तागण उक्त विषयों पर उन्होंने अपना लिखित व प्रमाणित सुझाव दिए।उक्त सभी विषयों पर गुरू रूद्र ने समाज जनों को आवश्यक दिशा.निर्देश और शुभकामनाएं दी।
सम्मेलन में राजनांदगांव के किशन बरैया, चैनदास बांधव, शोभाराम बघेल, पंकज बांधव, शंकर बघेल, गोपीचंद गायकवाड़, कुंभदास जोशी, बीरबल महिलांगे, घासीदास कुर्रे, उत्तरा कुर्रे, रेखा देशलहरे, गिरजू देशलहरे, सुंदर लाल चतुर्वेदी, रमेश महिलांगे, रूप कुमार जांगड़े, समलिया खरे, बीडी बंजारे, कोमल चंदेल, संतोष तोड़े, संदीप सिरमौर, जेठू मारकंडे, भगवान दास कोसरे, जितेन्द्र गेन्ड्रे, राहुल देशलहरे, मंगेश टंडन, भूषण नवरंगे, संजय कुर्रे शामिल रहे।