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राजनंदगांव

कलक्टर खुद झोला लेकर जनता से मदद मांगने निकल पड़े थे

जनसहयोग से महज २८ लाख में बना था स्टेडियम, दिग्विजय स्टेडियम का रोचक रहा है इतिहास, अब टूटकर नया बन रहा

राजनंदगांवDec 23, 2017 / 04:33 pm

hockey

The collector himself went to ask for help from the public by taking a


राजनांदगांव. दिग्विजय स्टेडियम का पुराना स्वरूप अब इतिहास बन गया है। इस स्टेडियम की जगह पर कुछ समय बाद एक नया भव्य स्टेडियम बनकर तैयार हो जाएगा लेकिन दिग्विजय स्टेडियम के निर्माण और इसकी उपलब्धियों की कहानी बेहद रोचक है। करीब ४४ साल पहले जनभावनाओं के चलते जनता के सहयोग से महज २८ लाख रूपए में दिग्विजय स्टेडियम का निर्माण किया गया था। हालांकि अब यहां ४० करोड़ रूपए की लागत से नया स्टेडियम बनाया जा रहा है।

वर्ष १९७३ में दुर्ग से अलग होकर राजनांदगांव जिला बना। जिले के निर्माण के साथ ही यहां के विस्तार और विकास के द्वार खुलने शुरू हो गए। नागरिकों की अपेक्षाएं भी जवान होने लगीं। खिलाडिय़ों और खेलकूद में रूचि रखने वाले नागरिकों की स्टेडियम की मांग होने लगी। हर साल आयोजित होने वाली महंत राजा सर्वेश्वरदास स्मृति हॉकी प्रतियोगिता के प्रतिवेदन में यह मांग होती ही थी। अब जिला बन गया था तो उम्मीद भी बढ़ गई थी।
शुक्ल ने ली दिलचस्पी
राजनांदगांव जिले के निर्माता तत्कालीन राजस्व मंत्री पं. किशोरीलाल शुक्ल को कहा जाता है। उन्होंने स्टेडियम के निर्माण का भी बीड़ा उठाया। नागरिकों के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अफसरों को साथ लेकर स्टेडियम निर्माण के लिए रूपरेखा तैयार की। इस कार्य में सिर्फ शहर के नागरिकों ने ही नहीं, बल्कि जिलेभर के सक्षम नागरिकों ने पूरी आस्था के साथ अपना योगदान दिया।

ऐसे हुआ जगह का चयन
स्टेडियम के स्थल के रूप में सबसे बड़ा सवाल था, उपयुक्त स्थल का। यह विचार भी आया कि लालबाग महल से संलग्न पूर्व की ओर बूढ़ासागर की खाली भूमि में स्टेडियम बनाया जाए लेकिन शहर के भावी विस्तार को देखते हुए शुक्ल को यह विचार नहीं जमा। उन्होंने एक भव्य, विशाल बहुउद्देशीय स्टेडियम की कल्पना कर रखी थी। इस दृष्टि से वे बड़ा भू-भाग चाहते थे। आखिरकार उन्होंने गौशाला की खाली पड़ी जमीन का चयन किया।

किया गया हस्तांतरण
नंदई ग्राम में राजगामी संपदा की कृषि भूमि को गौशाला पिंजरापोल समिति को उनकी भूमि के बदले दिया गया और २०.५२ एकड़ भूमि स्टेडियम के लिए लिया गया। इस हस्तांतरण में गौशाला पिंजरापोल के तत्कालीन पदाधिकारियों के अलावा राजगामी संपदा के अफसरों और प्रशासनिक अफसरों की भूमिका रही।

बनी स्टेडियम समिति
निर्माण के लिए स्टेडियम समिति बनाई गई। समिति का विधिवत पंजीयन कराया गया। सन १९७३ में ही स्टेडियम का निर्माण भी शुरू हो गया। समिति के पहले अध्यक्ष तत्कालीन कलक्टर अरूण क्षेत्रपाल बने। अन्य सदस्य जिले के पहले एसपी रामलखन सिंह यादव, ईई रामसिंग और प्रमुख नागरिक बने। इंजीनियर रामसिंग के मार्गदर्शन में मानचित्र, रूपांकन, वित्तीय प्राक्कलन तैयार हुआ और कार्य प्रारंभ हो गया। १९७६ में स्टेडियम का निर्माण हो गया। तत्कालीन राजस्व मंत्री पं. शुक्ल ने २६ फरवरी १९७६ को किया। उन्होंने इस स्टेडियम का नामकरण रियासत के राजा और महंत राजा सर्वेश्वरदास के पुत्र दिग्विजयदास के नाम पर किया, दिग्विजय स्टेडियम।

२८ लाख में बना था
दिग्विजय स्टेडियम का निर्माण करीब २८ लाख रूपए में हुआ था। यह राशि मुख्य रूप से तीन श्रोतों से आई थी। राजगामी संपदा के अनुदान के अलावा शासकीय राशि और जनता से चंदे के रूप में। दिलचस्प तथ्य यह है कि इस स्टेडियम के निर्माण को लेकर तत्कालीन कलक्टर क्षेत्रपाल इस कदर दिल से जुड़े थे कि वे जनता से चंदा लेने घर घर झोला लेकर निकल पड़े थे।

ये प्रतियोगिताएं होती रहीं
महंत राजा सर्वेश्वरदास स्मृति अखिल भारतीय हॉकी प्रतियोगिता के अलावा अखिल भारतीय इंटरजोन यूनिवर्सिटी महिला हॉकी प्रतियोगिता, अखिल भारतीय महिला शतरंज प्रतियोगिता, मध्यप्रदेश बैडमिंटन चैम्पियनशिप, इंटर यूनिवर्सिटी हॉकी प्रतियोगिता, दिग्विजय दास अंतरजिला हॉकी प्रतियोगिता, रणजी ट्राफी क्रिकेट और रानी सूर्यमुखी देवी स्मृति क्रिकेट प्रतियोगिता सहित कई प्रतिष्ठित आयोजन इस स्टेडियम में हो चुके हैं।

(महंत सर्वेश्वरदास मेमोरियल ऑल इंडिया हॉकी टूर्नामेंट की स्वर्ण जयंती वर्ष १९९१-९२ में दिग्विजय स्टेडियम समिति द्वारा प्रकाशित स्मारिका से साभार)

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