किसान छीतरमल ने जिले की रेलमगरा पंचायत समिति के लापस्या गांव में वर्ष २०१४-१५ में १००८ वर्गमीटर भूमि पर ग्रीन हाउस लगाया। इसमें करीब २.८५ लाख रुपए की लागत आई। किसान बताते हैं कि इस ग्रीन हाउस में उन्होंने खीरा फसल ली, लेकिन मिट्टी के खराब होने के कारण उपज नहीं मिल सकी। काफी खर्च और उपाय करने के बाद वे फसल लेने में असमर्थ हो गए तो उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से मार्गदर्शन लिया, जिसमें भूमि के लवणीय होने की आशंका जताई गई। मृदा जांच कराई तो भूमि में लवण की मात्रा २.५७ ईसी (इलेक्ट्रिकल कंडक्टीविटी) आई। ऐसे में उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की सलाह पर उपयुक्त मिट्टी भरे पॉलीथिन बैग्स के जरिए ग्रीनहाउस में खेती करने का निर्णय लिया।
किसान ने १००८ वर्ग मीटर के ग्रीन हाउस में २६०० थैलियां पंक्तियों में लगाईं। बाहर से लाई गई उपयुक्त मिट्टी और वर्मीकुलाइट को निश्चित अनुपात में इन थैलियों में भरा। एक-एक थैली पर पौधे लगाकर 110 दिन में 9.5 टन खीरे की उपज ली, जिससे उन्हें 2.25 लाख रुपए की आमदनी हुई। किसान बताते हैं कि उन्होंने साल में तीन फसलों के हिसाब से करीब ७.५० लाख रुपए की पैदावार की। अब मिट्टी समस्या से परेशान अन्य किसान भी उनका अनुसरण कर रहे हैं।
किसान ने १००८ वर्ग मीटर के ग्रीन हाउस में २६०० थैलियां पंक्तियों में लगाईं। बाहर से लाई गई उपयुक्त मिट्टी और वर्मीकुलाइट को निश्चित अनुपात में इन थैलियों में भरा। एक-एक थैली पर पौधे लगाकर 110 दिन में 9.5 टन खीरे की उपज ली, जिससे उन्हें 2.25 लाख रुपए की आमदनी हुई। किसान बताते हैं कि उन्होंने साल में तीन फसलों के हिसाब से करीब ७.५० लाख रुपए की पैदावार की। अब मिट्टी समस्या से परेशान अन्य किसान भी उनका अनुसरण कर रहे हैं।
अब नए नवाचार की तैयारी
इस बार किसान एक और नवाचार करने जा रहा है। इस बार वे ग्रीनहाउस में तुरई की पैदावार ले रहे हैं। ग्रीन हाउस में पौध उपजाने के लिए उन्होंने इस बार जमीन पर प्लास्टिक शीट बिछाई है, जिस पर मिट्टी डालकर वे फसल ले रहे हैं। किसान को अभी तक के प्रयासों में सफलता भी मिली है।