वैसे तो सरकार पार्षदों को पांच साल के लिए प्रतिमाह के हिसाब से कई तरह के मानदेय-भत्ते देती है, लेकिन कोरोनाकाल में पार्षद अपने-अपने इलाके में महामारी से मुकाबले के लिए मैदान में खड़े रहे। मोहल्ले में सेनिटाइजेशन करवाना हो, किसी निर्धन परिवार को भोजन या अन्य जरूरत पूरी करनी हो या किसी के लए अस्पताल में उपचार का बंदोबस्त करना हो, पार्षदों ने कोरोनाकाल में ‘जनसेवाÓ कर लोगों को राहत पहुंचाई। शहरी सरकार का जनप्रतिनिधि चुनने के बाद लोगों की मदद के लिए डटे रहने के बदले सरकार उन्हें मानदेय देती है। यह मानदेय वर्तमान समय में इतना ज्यादा भी नहीं है कि घर खर्च चला सकें। हालांकि सरकार समय-समय पर पार्षदों, महापौर, सभापति व पालिकाध्यक्षों के मानदेय में बढ़ोतरी करती रहती है, लेकिन अब भी यह कम लगता है। परिषद के पार्षद को 2600 रुपए और सभापति को 12 हजार रुपए मानदेय मिलता है।
15 ने ही दी बैंक डिटेल
राजसमंद नगर परिषद का निर्वाचन गत 31 जनवरी को हो गया था। 45 में से 26 पर कांग्रेस, 18 भाजपा और एक निर्दलीय पार्षद चुने गए थे। पार्षदों का मानदेय-भत्ता नगर परिषद एकसाथ उनके बैंक खातों में जमा करवाती है, लेकिन यह प्रक्रिया इसलिए अटकी हुई है, क्योंकि करीब 30 पार्षदों ने अपने खाते का विवरण अभी तक परिषद में जमा नहीं करवाया है।
पार्षदों को इतना मिलता है मानदेय-भत्ता
भत्ता/परिषद/पालिका
टेलीफोन भत्ता/1000/600
स्टेशनरी भत्ता/600/500
वाहन भत्ता/1000/750
कुल/2600/1850 निकाय प्रमुखों को इतना
महापौर/20000
सभापति/12000
अध्यक्ष/7500