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राजसमंद

तीन किलोमीटर के दायरे में चार आयुर्वेद डिस्पेन्सरी, नहीं पहुंच पाते मरीज

– शहर के भीतर शुरू हो तो मिले मरीजों को राहत

राजसमंदFeb 09, 2020 / 10:50 am

Rakesh Gandhi

तीन किलोमीटर के दायरे में चार आयुर्वेद डिस्पेन्सरी, नहीं पहुंच पाते मरीज

तीन किलोमीटर के दायरे में चार आयुर्वेद डिस्पेन्सरी, नहीं पहुंच पाते मरीज

राकेश गांधी
राजसमंद. चिकित्सकों व अन्य चिकित्साकर्मियों की कमी के चलते प्रदेश में प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति वैसे भी खत्म होने के कगार पर पहुंच रही है, वहीं विभागीय कुप्रबंध से आम जनता को भी इसका पर्याप्त लाभ नहीं मिल पा रहा है। हालात ये है कि डिस्पेन्सरी खोलने के नाम पर मात्र तीन किलोमीटर के दायरे में ही तीन-चार आयुर्वेद चिकित्सालय व डिस्पेन्सरी चलाई जा रही है। जबकि शहर के बीच या भीतर ऐसा कोई चिकित्सालय या डिस्पेन्सरी नहीं है।
उल्लेखनीय है कि इस समय धोइन्दा क्षेत्र में ही तीन किलोमीटर के दायरे में चार आयुर्वेद चिकित्सालय/डिस्पेन्सरी कागजों में है। इनमें से आर.के. अस्पताल में चल रही एकल चिकित्सक डिस्पेन्सरी के तो चिकित्सक न होने से ताले लग रहे हैं। यदि इनमें से एक डिस्पेन्सरी मंडा राजनगर स्थित पुराने अस्पताल में शुरू कर दी जाए तो आम जनता को आयुर्वेद चिकित्सा का लाभ मिल सकेगा। दूरी होने की वजह है अभी आम नागरिक वहां जाने से कतराता है।
ये है हालात
गणेश नगर स्थित जिला आयुर्वेद चिकित्सालय में प्रतिदिन औसतन 30 मरीजों का आउटडोर है, जबकि धोइन्दा में बालिका स्कूल के पास व कांकरोली के नाम से आर.के. अस्पताल के बाहर चल रही दोनों डिस्पेन्सरी में औसतन 15 से 20 मरीज ही उपचार के लिए पहुंच पाते हैं। कोई समय था जब जिला चिकित्सालय शुरू हुआ था, तब बड़ी संख्या में मरीज आयुर्वेद चिकित्सा लेने जाने लगे थे। धीरे-धीरे चिकित्सकों के यहां से तबादले शुरू हुए। इसके बाद यहां मरीजों के आना ही कम होता गया। आज इन सभी आयुर्वेद चिकित्सालय व डिस्पेन्सरी में पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहता है।
शहर के भीतर हो एक-दो डिस्पेन्सरी
इन चारों में से यदि दो डिस्पेन्सरी कांकरोली व राजनगर के बीच शुरू कर दी जाए, तो आम जनता को इसका लाभ होगा। लोगों में फिर से आयुर्वेद चिकित्सा के प्रति विश्वास जगाया जा सकेगा। खासतौर से बुजुर्ग लोगों में आयुर्वेद चिकित्सा के प्रति काफी आस्था रही है। शहर के बीच इन डिस्पेन्सरी के आने से बुजुर्गों का वहां पहुंचना भी आसान होगा। उन्हें ऑटो आदि का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। पेन्शनर समाज से जुड़े भंवरलाल पालीवाल ‘बोसÓ, फतेहलाल गुर्जर ‘अनोखाÓ व दुर्गाशंकर ‘मधुÓ आदि कहते हैं कि यदि ये डिस्पेन्सरी या चिकित्सालय शहर के भीतर हों, तो हम जैसे बुजुर्गों को भी आराम रहेगा। हम स्वयं वहां जाकर अपनी चिकित्सा करवा सकेंगे। अभी तो हमें अपने परिजनों की सहायता से वहां पहुंचना होता है। या कई बार तो हम वहां जा भी नहीं पाते। अधिकतर बुजुर्ग और आजकल तो युवा भी जितना संभव हो आयुर्वेद चिकित्सा को ही महत्व देते हैं। इन्होंने बताया कि कोई समय जलचक्की के आसपास व पुराने चिकित्सालय में भी आयुर्वेद चिकित्सालय चला करता था।
इनका कहना है…
जनता की मांग पर आगे बात की जा सकती है
यदि जनता की मांग रहती है तो विभाग इस संबंध में आगे विभाग से इस संबंध में बात कर शहर के भीतरी इलाकों में डिस्पेन्सरी शुरू करने पर विचार कर सकता है। इसके स्थान के लिए जिला प्रशासन की मदद की जरूरत भी रहेगी। ये सही है कि शहर के भीतर डिस्पेन्सरी होने से वहां का आउटडोर भी अच्छा रहेगा और लोगों को आयुर्वेद चिकित्सा आसानी से सुलभ हो सकेगी। मंडा राजनगर में यदि जगह सुलभ हो तो वहां भी डिस्पेन्सरी लगाई जा सकती है।
– प्रद्युम्न कुमार राजोरा
सहायक निदेशक, आयुर्वेद विभाग

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