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राजसमंद

पहाड़ सी उम्र गुजरानी है और जीवन नारकीय… कैसे कटेगा?

– थानेटा गांव : महिलाओं ने शराबबंदी के लिए एक बार फिर की आवाज बुलंद

राजसमंदFeb 25, 2020 / 01:07 pm

Rakesh Gandhi

पहाड़ सी उम्र गुजरानी है और जीवन नारकीय... कैसे कटेगा?

पहाड़ सी उम्र गुजरानी है और जीवन नारकीय… कैसे कटेगा?

राकेश गांधी
राजसमंद. पहाड़ सी उम्र गुजारनी है और जीवन बिल्कुल नारकीय हो चला है। घर में कमाने वाला नहीं रहा। नरेगा या अन्य मजदूरी में जो मिल जाए, उससे खुद का व बच्चों का जीवन चलाना है। हर पल खून के आंसू निकलते हैं। ‘खुशीÓ क्या होती है, शादी के बाद तो यह शब्द जेहन में कभी आया ही नहीं। घर में खाने को तरस जाए, वह क्या ‘खुशीÓ समझेगा? वह अपने बच्चों को क्या खुशी दे पाएगा भाई साहब? यह दु:ख उस महिला का है जो अपने छोटे से बच्चे के भविष्य को ताक रही है। राजस्थान पत्रिका संवादाता जब थानेटा गांव में एक महिला से बात कर रहा था, तब वह बहती अश्रु धारा के बीच रुक- रुक कर अपना दुख बयां कर रही थी।
यह दशा है उस महिला की, जिसका पति एक सड़क हादसे का शिकार हो गया। बताते हैं वह शराब पीने का आदि था और बड़े वाहन चलाता था। उसे कई बार समझाया पर उसने शराब नहीं छोड़ी और एक दिन वह हादसे का शिकार होकर दुनिया छोड़ गया। आज उसका परिवार पल- पल दु:ख और अभावों का सामना कर रहा है। ये व्यथा मात्र थानेटा गांव की एक महिला की नहीं, बल्कि गांव में ऐसी कई महिलाओं की हैं जो विधवा हो चुकी हैं और आज कठिन परिश्रम कर जैसे-तैसे अपना जीवन ढो रही हैं और अपने बच्चों का पालन पोषण कर रही हंै। एक अन्य महिला बताती कि उसका पति शराब पीकर आता है और उसे लकड़ी व सरिए से इतना पीटता है कि कई बार उसे मर जाना बेहतर लगता है। जो हाथ में हो, उससे पीटने लग जाता है। शराब में उसे कोई सुध नहीं रहती।
अणुव्रती डा. महेन्द्र कर्णावट व बरजाल के गिरधारीसिंह रावत के साथ जब हम थानेटा गांव पहुंचे तो वहां पहले से ही गांव की बड़ी संख्या में महिलाएं मौजूद थी। घूंघट ओढ़े महिलाएं बहुत आक्रोश में थी। वे हर हाल में अपने गांव को शराब मुक्त बनाना चाहती हैं, ताकि उनके घरों में खुशहाली आए। उनके बच्चे अच्छे पढ़-लिख सकें। ये महिलाएं तीन साल से शराबबंदी के लिए जूझ रही है। एक बुजुर्ग महिला ने गुस्से में कहा कि उसका बस चले तो वे गांव का ठेका ही तोड़ दे। पर वे चाहते हैं कि प्रशासन आगे होकर ये कार्रवाई करे। इन गांवों में शराबबंदी का बीड़ा उठाने वाले 70 वर्षीय डा. कर्णावट ने वहां महिलाओं व पुरुषों से आग्रह किया कि उन्हें सत्याग्रह करना होगा। इसके बिना गांव को शराबमुक्त बनाना मुश्किल है। केवल ये ही नहीं, हर गांव को शराब से मुक्त करना होगा।
छह साल पहले फौज से सेवानिवृत हुए विनयसिंह भी पूरी तरह इन महिलाओं के साथ हैं। केवल विनय ही नहीं, लक्ष्मणसिंह, मोहनसिंह, लालसिंह, सरदारसिंह, ईश्वरसिंह, राजेश्वरसिंह जैसे कई बुजुर्ग व युवा इन महिलाओं के लिए लडऩे को तैयार हैं। वे सभी चाहते हैं कि गांव में शराब बंद हो। विनयसिंह कहते हैं कि इस गांव के 17 लोग अभी फौज में हैं और उनके घर की महिलाएं शराब के विरोध में जूझ रही हैं। प्रशासन को कुछ सोचना चाहिए। इंसानियत नाम की भी कोई चीज होती है।
बोतलों के ढक्कन चाटते हैं बच्चे
एक महिला ने तो हैरान करने देने वाली बात बताई कि एक बार स्कूल से लौटकर घर आए उसके नन्हे बच्चों के मुंह से जब शराब की दुर्गन्ध आई तो वह चौक गईं। बाद में पता चलता है कि उस मासूम ने रास्ते में पड़ी शरीब की बोतल के ढक्कन को चाट रखा था। यानि बच्चे तक नहीं बच पा रहे। ये ही बच्चे बाद में बड़े शराबी बनते हैं।
बर्बाद हो रही है युवा पीढ़ी
युवा सरपंच दीक्षा चौहान कहतीं है, ‘बहुत ही दु:ख होता है, जब प्रशासन यहां स्कूल के पास शराब का ठेका खोलने की अनुमति देता है। दूध की डेरी भले ही नहीं हो, गांव में शराब जरूर परोसी जा रही है। यहां पन्द्रह से सोलह साल के लड़के शराब पीने के आदी हो रहे हैं। ठेका भले ही एक है, लेकिन उसकी कई शाखाएं अलग-अलग वार्डों में लगाकर गांव में लोगों को शराबी बनाया जा रहा है। नई पीढ़ी तैयार होने के पहले ही बर्बाद हो रही है। प्रशासन को भी कई बार राजसमंद जाकर कहा, पर कोई नहीं सुनता। कभी देर शाम या रात को यहां आकर देखिए, शराब पीकर आने वाला किस तरह अपनी पत्नी व बच्चों की लकड़ी व सरिए से बेरहमी से पिटाई करता है। आज हम गांव की महिलाएं शराबबंदी के खिलाफ एकजुट हैं। पिछले तीन साल से राजसमंद जिला मुख्यालय के कई चक्कर इन महिलाओं के साथ लगा लिए, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। गांव की हर महिला दु:खी है। इसके लिए वे कहीं भी जाकर आंदोलन करने को तैयार हैं। हमें पूरे जिले की जनता की मदद चाहिए। पर इतना तो तय है कि हम अपने गांव को शराब मुक्त बना कर छोड़ेंगे।Ó
कुछ ऐसा है थानेट गांव
भीम तहसील का ये गांव राजसमंद जिला मुख्यालय से 107 किलोमीटर टूर पहाडिय़ों से गिरा है। पहाड़ों में छितराए घरों में लोग निवास करते हैं। यहां छोटे-छोटे टुकड़ों में खेती होती है। मियाला खेत, बड़ों की रेल, परतों का चौड़ा, नाडिया, सरियाली घाटी, जवाडिय़ा, पीपलवास, जेलवा व रोडा का वास वार्डों को मिलाकर बने करीब ढाई हजार की बस्ती वाले इस गांव की युवा सरपंच दीक्षा चौहान एक निजी स्कूल चलाती है। ये वो धरती है जहां के निवासी नारायणसिंह ने बीस साल पहले जम्मू-कश्मीर के उधमपुरा में आतंकियों से लोहा लिया था और देश के लिए प्राण त्याग दिए थे। इसके अलवा अभी गांव के 17 लोग हैं जो देश की रक्षा के लिए सीमाओं पर डटे हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने से यहां पैंथरों का खतरा हमेशा मंडराया हुआ रहता है। ग्रामीण बताते हैं कि कई बार वह गांव में आकर उनके मवेशी उठाकर ले जाता है।
डा. कर्णावट व गिरधारीसिंह का मिशन
यहां गांधी सेवा सदन के मंत्री व अणुव्रती डा. महेन्द्र कर्णावट और बरजाल के गिरधारीसिंह पिछले लम्बे समय से इस शराबबंदी आंदोलन में जुटे हुए हैं। तीन साल पहले शुरू हुए इस आंदोलन में थानेटा के साथ ही बरजाल व काछबली आदि गांवों में ग्रामीणों ने काफी सहयोग किया। थानेटा को छोड़कर बरजाल व काछबली में उन्हें काफी हद तक सफलता मिली है।

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