एक महिला ने तो हैरान करने देने वाली बात बताई कि एक बार स्कूल से लौटकर घर आए उसके नन्हे बच्चों के मुंह से जब शराब की दुर्गन्ध आई तो वह चौक गईं। बाद में पता चलता है कि उस मासूम ने रास्ते में पड़ी शरीब की बोतल के ढक्कन को चाट रखा था। यानि बच्चे तक नहीं बच पा रहे। ये ही बच्चे बाद में बड़े शराबी बनते हैं।
युवा सरपंच दीक्षा चौहान कहतीं है, ‘बहुत ही दु:ख होता है, जब प्रशासन यहां स्कूल के पास शराब का ठेका खोलने की अनुमति देता है। दूध की डेरी भले ही नहीं हो, गांव में शराब जरूर परोसी जा रही है। यहां पन्द्रह से सोलह साल के लड़के शराब पीने के आदी हो रहे हैं। ठेका भले ही एक है, लेकिन उसकी कई शाखाएं अलग-अलग वार्डों में लगाकर गांव में लोगों को शराबी बनाया जा रहा है। नई पीढ़ी तैयार होने के पहले ही बर्बाद हो रही है। प्रशासन को भी कई बार राजसमंद जाकर कहा, पर कोई नहीं सुनता। कभी देर शाम या रात को यहां आकर देखिए, शराब पीकर आने वाला किस तरह अपनी पत्नी व बच्चों की लकड़ी व सरिए से बेरहमी से पिटाई करता है। आज हम गांव की महिलाएं शराबबंदी के खिलाफ एकजुट हैं। पिछले तीन साल से राजसमंद जिला मुख्यालय के कई चक्कर इन महिलाओं के साथ लगा लिए, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। गांव की हर महिला दु:खी है। इसके लिए वे कहीं भी जाकर आंदोलन करने को तैयार हैं। हमें पूरे जिले की जनता की मदद चाहिए। पर इतना तो तय है कि हम अपने गांव को शराब मुक्त बना कर छोड़ेंगे।Ó
भीम तहसील का ये गांव राजसमंद जिला मुख्यालय से 107 किलोमीटर टूर पहाडिय़ों से गिरा है। पहाड़ों में छितराए घरों में लोग निवास करते हैं। यहां छोटे-छोटे टुकड़ों में खेती होती है। मियाला खेत, बड़ों की रेल, परतों का चौड़ा, नाडिया, सरियाली घाटी, जवाडिय़ा, पीपलवास, जेलवा व रोडा का वास वार्डों को मिलाकर बने करीब ढाई हजार की बस्ती वाले इस गांव की युवा सरपंच दीक्षा चौहान एक निजी स्कूल चलाती है। ये वो धरती है जहां के निवासी नारायणसिंह ने बीस साल पहले जम्मू-कश्मीर के उधमपुरा में आतंकियों से लोहा लिया था और देश के लिए प्राण त्याग दिए थे। इसके अलवा अभी गांव के 17 लोग हैं जो देश की रक्षा के लिए सीमाओं पर डटे हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने से यहां पैंथरों का खतरा हमेशा मंडराया हुआ रहता है। ग्रामीण बताते हैं कि कई बार वह गांव में आकर उनके मवेशी उठाकर ले जाता है।
यहां गांधी सेवा सदन के मंत्री व अणुव्रती डा. महेन्द्र कर्णावट और बरजाल के गिरधारीसिंह पिछले लम्बे समय से इस शराबबंदी आंदोलन में जुटे हुए हैं। तीन साल पहले शुरू हुए इस आंदोलन में थानेटा के साथ ही बरजाल व काछबली आदि गांवों में ग्रामीणों ने काफी सहयोग किया। थानेटा को छोड़कर बरजाल व काछबली में उन्हें काफी हद तक सफलता मिली है।