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आजादी के बलिदान का गवाह है रकमगढ़ का छापर

-13 अगस्त 1858 में तात्या टोपे को बचाने में हुई थी अंग्रेजों से मुठभेड़, आज हम भुला बैठे उनकी शहादत

राजसमंदAug 12, 2018 / 12:18 pm

laxman singh

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आजादी के बलिदान का गवाह है रकमगढ़ का छापर

अश्वनी प्रतापसिंह @ राजसमंद. आजाद हिंदुस्तान में सांस लेने के लिए हमारे वीरों ने अनेक कुर्बानियां दी। कुछ खुलकर सामने आईं, तो कुछ इतिहास के पन्नों पर ही सिमटकर रह गईं। ऐसे ही बलिदान का गवाह है, हमारा रकमगढ़ का छापर। भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानायक कहे जाने वाले तात्या टोपे को अंग्रेजी सेना ने घेर लिया, उन्हें बचाने के लिए १३ अगस्त १८५८ में इस छापर पर कुछ देर के लिए खून की होली खेली गई। जिसमें हमारे दर्जनों देशभक्त शहीद हो गए, लेकिन आज उनकी शहादत इतिहास के किसी कोने में दबकर रह गई। हमारी पीढ़ी को न वो युद्ध याद है, और न ही उनकी शहादत।

रावत जोधसिंह चौहान ने किया था सहयोग
सन् 1857 के विद्रोह की शुरुआत 10 मई को मेरठ से हुई थी। जल्द ही क्रांति की चिंगारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडऩे के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्ष किया। इस विद्रोह में तात्या टोपे
की विशेष भूमिका रही। इसके बाद अंग्रेजी सेना टोपे के पीछे पड़ गई और उन्हें कानपुर से झांसी, झांसी से ग्वालियर भागना पड़ा, बाद में तात्या ने चम्बल पार की और राजस्थान में टोंक, बूंदी और भीलवाड़ा होते हुए कांकरोली आ गए। यहां तात्या के आने से पूर्व ही मेजर जनरल राबट्र्स पहुँच गया और उसने लेफ्टीनेंट कर्नल होम्स को तात्या का पीछा करने के लिए भेजा। जिसने तात्या को राजसमंद के बामनहेड़ा पंचायत क्षेत्र में स्थित रकमगढ़ के छापर के मैदान में घेर लिया। इस दौरान तात्या को बचाकर निकालने के लिए कोठारिया रियासत के रावत जोधसिंह चौहान ने अपनी सेना भेजी, दो से तीन घंटे तक चली इस मुठभेड़ में मेवाड़ तथा तात्या के साथ आए दर्जनों देशभक्त शहीद हुुए, लेनिक तात्या यहां से पूर्व की ओर निकल भागने में कामयाब हो गए।

यहां है यह छापर
राजसमंद मुख्यालय से करीब १० किमी दूर बामनहेड़ा पंचायत में रकमगढ़ गांव से करीब आधा किमी दूर रकमगढ़ का छापर नाम से यह क्षेत्र जाना जाता है। जिसमें वर्तमान समय में खातेदार खेती करते हैं। रियासत के समय का यहां एक भवन बना है, जो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है।

घिरने के बाद भी निकल गए तात्या
तात्या टोपे छापामार युद्ध के लिए प्रसिद्ध थे। छापर के खुले मैदान पर अंग्रेजों की सेना ने उन्हें पूरी तरह से घेर लिया था, इस पर उनके साथ जो सेना थी, पहले उसने मार्चा संभाला, तबतक रावत द्वारा भेजी गई सेना पहुंच गई। इस दौरान तात्या को संभलने का मौका मिल गया और वह अंग्रेजी सेना को चकमा देने में कामयाब होकर निकल गए।

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