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मार्बल कारोबारियों ने अपनी सुविधा से बना दिए अवैध डम्पिंग यार्ड, प्रशासन मौन

प्रमाण-पत्र सभी के पास, नियम की पालना कोई नहीं करताजिले के लिए सौगात रहा सफेद पत्थर अब बन रहा अभिशाप

राजसमंदJun 05, 2018 / 12:30 pm

laxman singh

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मार्बल कारोबारियों ने अपनी सुविधा से बना दिए अवैध डम्पिंग यार्ड, प्रशासन मौन

राजसमंद. जीव और जीवन कुदरत की मेहरबानी पर निर्भर है। भगवान का बनाया सबसे उम्दा प्राणी मनुष्य इस बात से वाकिफ भी है, लेकिन प्रकृति की मिठास में ही जहर घोलने में वह पीछे नहीं है। आज हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं। राजसमंद जिले के लिए दशकों से इमारत निर्माण, रोजगार और सरकार को राजस्व आय के लिहाज से सौगात रहा यहां का सफेद मार्बल का कारोबार अब अभिशाप बनता जा रहा है। मार्बल स्लरी पेड़-पौधे, उपजाऊ जमीन, हवा-पानी और जीवों की जिन्दगी का दुश्मन बन चुकी है। कुदरत के इस दुश्मन को पैदा किया है जिम्मेदार ओहदों पर बैठे अफसरों की उदासीनता, मार्बल कारोबारियों के छोटे स्वार्थ और आमजन की चुप्पी ने। जिले के एक बड़े भू-भाग को आज मार्बल स्लरी लाइलाज रोग बनकर घेर चुकी है लेकिन इसकी गम्भीरता को न कोईसमझ रहा है, न किसी ने इसकी शल्य चिकित्सा के बारे में सोचा है। धीरे-धीरे यह रोग आबोहवा को जीवन के प्रतिकूल बना सकता है।
उपजाऊ जमीन व पेड़-पौधे हो रहे खत्म
उपजाऊ जमीन व आस-पास खेतों में मार्बल स्लरी डालने से जमीन बंजर हो रही है। हरे-भरे पेड़ पौधे नष्ट हो रहे हैं। स्लरी सतह पर जमने के बाद सूखकर ठोस हो जाती है तथा इससे बरसाती जल जमीन में रिस नहीं पाता है। इसका असर भूजल स्तर पर पड़ रहा है।
विभाग नहीं जवाबदेह
जिले में पर्यावरण व प्रदूषण नियंत्रण को लेकर जिम्मेदार विभागीय अधिकारी गम्भीर नहीं हैं। हालांकि पर्यावरण संरक्षण समिति जरूर गठित है, लेकिन समिति का काम पर्यावरण को हो रहे नुकसान के आगे बौना है।
जिम्मेदार ही बन गए लापरवाह
मार्बल व्यापारियों ने इस मामले में जमकर लापरवाही दिखाई है। उन्होंने जगह-जगह मार्बल स्लरी के अवैध डम्पिंग यार्ड बना दिए हैं। वह भी ज्यादातर वहां पर, जहां खेती के लिए उपजाऊ जमीन है। जिला प्रशासन की ओर से मार्बल व्यापारियों को स्लरी डम्पिंग के लिए यार्ड आवंटित किए गए। इनमें से मोखमपुरा और नाथद्वारा के मजा गांव के पास आवंटित डम्पिंग यार्ड भर चुके हैं। क्षमता से अधिक डम्पिंग के कारण अब स्लरी आसपास की जमीनों पर फैल रही है। मोखमपुरा में हालात बेहद चिंताजनक हैं। नए डम्पिंग यार्ड आवंटित नहीं होने और पौधरोपण के अभाव में आस-पास की भूमि बंजर बनती जा रही है। सैकड़ों बीघा चरागाह को भी आसानी से अवैध ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है।
यहां अवैध डम्पिंग
केलवा क्षेत्र से लेकर भगवान्दा, मोरचणा, पसून्द, भगवान्दा, राजनगर, चुंगीनाका व सोमनाथ चौराहे से लेकर नाथद्वारा के आसपास क्षेत्रों में मार्बल प्रसंस्करण इकाइयों से निकलती स्लरी की अवैध तौर पर डम्पिंग की जा रही है। कई रास्तों में फेल्सपार का पाउडर भी डाल दिया जाता है। जिला मुख्यालय पर ही अवैध डम्पिंग हर कहीं हो रही है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी चैन की नींद सोए हैं।
यहां मार्बल इकाइयां
केलवा, देवगढ़, आमेट, खमनोर, राजसमंद से ग्रेनाइट प्लांट का मलबा निकलता है। बामनटुकड़ा, सियाणा में फेल्सपार व मोही, पाण्डोलाई आदि क्षेत्रों में कटर से निकलने वाला ग्रेनाइट, मार्बल व फेल्सपार का मलबा नदियों, नालों, तालाबों, एनिकट के पानी में घुल रहा है।
ये कारक भी कम जिम्मेदार नहीं
कचरा निस्तारण केन्द्र ही लाचार : शहर के पास कचरा निस्तारण केन्द्र बना हुआ है। यहां जिम्मेदारों द्वारा अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट करने का कोईबंदोबस्त नहीं है। कचरे को एकसाथ खुले में जलाया जा रहा है। कचरे व अन्य पदार्थों से हवा भी प्रदूषित हो रही है। यही स्थति शहर के ५० फीट रोड पर भी बनी हुई है। यहां लोगों के खतों के पास तालेड़ी नदी में ही सैकड़ों टन कचरा जलाया जा रहा है। रात में बदबूदार धुआं आसपास के निवासियों को जीना ***** कर रहा है।
ये भी जिम्मेदार : जिलेभर में हजारों मार्बल व अन्य औद्योगिक इकाइयों का संचालन हो रहा है, लेकिन यहां प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का कोईअधिकारी नहीं है। जिलेभर में कुल नौ प्रदूषण जांच केन्द्र बने हुए हैं, जिनका संचालन पेट्रोल पम्प संचालक करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ये केन्द्र ऑनलाइन नहीं होने से तीन को विभाग ने बंद कर दिया है।
सैकड़ों हरे भरे पेड़-पौधे काटे : शहर में गौरवपथ में आड़े आ रहे सैकड़ों पेड़-पौधे नगर परिषद ने कटवा दिए। उसकी एवज में धोइंदा व जावद माग पर पौधे लगाए गए, लेकिन रख-रखाव के अभाव में एक भी पौधा नहीं चल पाया।
कारखानों से उठता धुआं : सैकड़ों की तादाद में ईंट भट्टे भी पर्यावरण के लिए चुनौती बने हुए हैं। ये भट्टे तय मापदंडों के अनुसार संचालित नहीं हैं। भट्टों से उठने वाले धुएं से आस-पास के लोग प्रभावित हैं। लोगों का वहां से गुजरते वक्त सांस लेना भी मुश्किल भरा होता है। भट्टों के आस-पास हरियाली का नामो-निशान तक नहीं है।
निस्तारण केन्द्र में व्यवस्था नहीं होने से कचरे का निस्तारण नहीं हो रहा है। बार-बार नोटिस भी दिए गए। ठेकेदार ने कचरे को निस्तारित नहीं किया, जिससे ठेका निरस्त कर दिया गया। अब नई प्रक्रिया से टेण्डर किए जाएंगे। वेस्ट बायोमैथिन प्लांट लगाने के टेण्डर कर दिए हैं। इसकी लागत ४० लाख रुपए स्वीकृत है।
बृजेश रॉय,आयुक्त, नगरपरिषद राजसमंद

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