यह भी मुद्दा उठा कि झील में खेती करने वाले कुछ लोगों ने भी मौके का फायदा उठाकर पाल के बिल्कुल नज़दीक तक ट्रैक्टर से हल चलवाकर पथरीली ज़मीन को खेती लायक बना दिया। यहां की जा रही खेती से पाल के पानी के रिसाव की आशंका बलवती हो गई है। पहले भी झील के दूसरी ओर एक फार्म हाउस के पास झील के पानी के रिसाव की जानकारी मिली। कुछ दिनों पूर्व गऊ घाट के पास पाल का एक हिस्सा गिर गया था और पाल में कई जगह चूहों ने बिल बना दिए। इससे पाल कमज़ोर होती जा रही है।
प्रबुद्ध लोगों ने बैठक में कहा कि नौचौकी पर भी पुरामहत्व के शिलालेखों और प्रस्तर शिल्प सार-संभाल के अभाव में वजूद खोते जा रहे हैं। सजग नागरिकों ने प्रशासन को इस बारे में कई बार सूचनाएं दी, लेकिन जि़म्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उनकी अनदेखी व गलत निर्णयों से झील, मछलियां और देशी-विदेशी पक्षियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है।
लोगों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि प्रशासन स्थानीय लोगों से बातचीत किए बिना व जनभावना को समझे बगैर काम कर रहा है। वह अपनी कार्ययोजना भी स्पष्ट नहीं कर रहा है, जिससे झील को लेकर भविष्य में खतरे का संदेह पैदा हो रहा है। यह भी आरोप लगाया गया कि कुछ प्रकृतिप्रेमियों को सघन पौधरोपण के नाम पर साथ लेकर धोखे से पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई करवाई जा रही है और यह सब फेल हो चुकी पैराग्लाइडिंग को प्रोमोट करने के लिए हो रहा है।
चर्चा में यह भी कहा गया कि पेटे में बनाई गई सड़क से चौपहिया और दुपहिया वाहनों का आना-जाना सुगम होने से रोजाना झील पेटे में कई वाहन और लोग नजऱ आने लगे हैं। झील में जगह-जगह शराब की खाली बोतलें, खाद्य सामग्री के पाउच, प्लास्टिक की थैलियों का अम्बार नजऱ आने लगा है।
यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन पे बगैर सोचे-समझे केवल पर्यटन को ध्यान में रखते हुए झील का भौगोलिक स्वरूप तक बिगडऩा शुरू कर दिया है। इससे शहर में काफी आक्रोश व्याप्त हो गया है। सभी ने एक स्वर में निर्णय लिया कि प्रशासन से मिलकर वस्तुस्थिति से अवगत करवाएंगे, नहीं तो उच्च न्यायालय अथवा नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल के समक्ष पीटिशन दायर की जाएगी। बैठक में धीरेंद्र शर्मा, पंकज शर्मा, एडवोकेट नीलेश पालीवाल, उदित शर्मा, दर्पण औदिच्य, मोहित शौरी, प्रकाश जांगिड़, चंद्रेश व्यास, लीलाधर, जागृत सनाढ्य, मनोज हाड़ा, नरेंद्र पालीवाल, प्रवीण बोल्या, अनमोल शर्मा सहित कई युवा मौजूद थे।