चिकित्सक बताते हैं कि याददाश्त खोना एक ऐसा रोग है जो एक इंसान की पुरानी यादों को नुकसान पहुंचाकर सामान्य मानसिक प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न करती है। इससे संबंधित इंसान की सोचने-समझने की शक्ति, तर्क करने की क्षमता में कमी के साथ ही उसके अप्रत्याशित व्यवहार झलकने लगता है। 65 साल से अधिक उम्र, परिवार का इतिहास, डाउस सिंड्रोम, अव्यवस्थित जीवनचर्या, सिर में चोट लगना या फिर किसी इंसान के लम्बे समय तक बातचीत और संपर्क न होना। आमतौर पर यह रोग धीरे-धीरे शुरू होता है, लेकिन ध्यान न रखा जाए तो समय के साथ गंभीर हो जाता है। ऐसा रोगी पुराने मित्रों, अपना पता, यहां तक कि सड़कों तथा अन्य वस्तुओं के नाम भी भूल जाता हैं। अल्जाइमर रोग के सही कारण अभी ज्ञात नहीं है। फिर भी मस्तिष्क में होने वाली कुछ जटिल परेशानियों को इस रोग का कारण माना जा रहा है।
इसे रोका जा सकता है
इस बीमारी की जोखिम कम करने के लिए हृदय को स्वस्थ रखने वाला खानपान जरूरी है, ताकि दिल के साथ-साथ मस्तिष्क भी अल्जाइमर रोग से दूर रहेगा। एरोबिक्स करते रहने से भी काफी फायदा हो सकता है। किसी बुजुर्ग इंसान के साथ बातचीत करते रहना भी जरूरी है। उनके साथ पुरानी बातें करते रहना काफी लाभदायक हो सकता है। अल्जाइमर रोग का कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। फिर भी मनोवैज्ञानिक एवं देखभाल संबंधी पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। पारिवारिक एवं सामाजिक सहयोग इस रोग के निवारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा आनन्द के लिए पढऩे-लिखने, चलने, तैराकी, योग एवं ध्यान, संगीतमय वाद्ययंत्र बजाने, समूह में इंडोर गेम खेलने जैसे कदम उपचार में कारगर साबित हो सकते हैं।
रोगी की पसंद व आदत का ख्याल रखना जरूरी
अल्जाइमर रोग में रोगी की मानसिक क्षमता क्षीण हो जाती है। रोगी की मेमोरी लॉस हो जाती है, सेल्फ मोटिवेशन खत्म हो जाता है। ब्रेन की क्षमता प्राय: निष्क्रिय हो जाती है। रोगी किसी को पहचान नहीं पाता। उसकी याददाश्त न रहने से जाहिर करने की क्षमता भी नहीं रहती। ऐसे में रोगी को मनोवैज्ञानिक उपचार के साथ ही बहुत ही अपनापन व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने की जरूरत है। अल्जाइमर रोग में हम दिलीप कुमार-सायरा बानो का एक आदर्श उदाहरण ले सकते हैं। सायरा बानो का प्रयास रहा कि वे उनके समक्ष हमेशा उनके आदर्श अभिनय का उदाहरण प्रस्तुत करती रहीं है। उनके पसन्द के गीत सुनाती व हमेशा उनकी पसंद के पेय या पदार्थ खिलाती-पिलातीं। भले ही दिलीप कुमार इसे जाहिर न करते, पर इससे उनके दिमाग को रिलीफ मिलता। बिल्कुल ऐसा ही व्यवहार हर अल्जाइमर के रोगी के साथ होना चाहिए। ऐसे रोगी की पूरी देखभाल के साथ उसकी आदतों को फिर से जागृत करना चाहिए। उन्हें उनकी पसंद की चीजों से फिर से जोडऩा चाहिए। पसंद की चीजें मिलने से उनकी याददाश्त को रिकवर करने में मदद मिलती है। ये रिएक्शन हम उनके चेहरे से समझ सकते हैं। ये निश्चित मानिए कि अल्जाइमर रोगी को प्यार व अपनापन से असीम मानसिक आनन्द मिलता है।
– डॉ नगेन्द्र शर्मा, न्यूरो सर्जन