दोनों बच्चों ने बताया कि पापा के नियम और अनुशासन काफी अधिक कड़े थे। हरपल देश की बातें करते थे। पापा जब भी छुटिट्यों में गांव आते थे तो युवाओं को सेना व अर्धसैनिक बल में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते रहते थे। गांव में जब तक रहते, अलसुबह गांव के खेल मैदान पर युवाओं को सेना भर्ती की तैयारियां करवाते थे। पुत्री हेमलता गुर्जर कक्षा 11 व पुत्र मुकेश गुर्जर कक्षा 9वीं में उदयपुर स्थित एक स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं।
‘काकाÓ युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत थे। जब भी छुटिट्यों में बिनोल आते तो युवाओं को सेना में भर्ती के लिए प्रेरित करते थे। बचपन के मित्र शैतान सिंह, ललित बाफना, मुरली चोरडिय़ा, भैरूलाल सेन बताते हैं कि काका युवाओं को दौडऩे, कसरत करने व एकाग्र होकर अध्ययन करने के लिए प्रेरित करते थे। वह बिनोल गांव
के युवाओं के दिल की धड़कन थे।
शहीद नारायणलाल के परिजनों ने बताया कि उनको इस बात का दुख है कि दो वर्ष पूर्व प्रशासन ने घोषणा की थी कि बिनोल में शहीद की स्मृति में स्मारक बनाया जाएगा, जिसके लिए भूमि आवंटन भी किया गया था, लेकिन अब तक स्मारक नहीं बन पाया। शहीद के मुकेश पुत्र व हेमलता ने बताया कि गांव में स्मारक बनता तो पूरे गांव के लिए यह गौरव का विषय होता।
दो वर्ष पूर्व पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद हुए बिनोल के नारायणलाल गुर्जर के शहादत की जैसे ही गांव में सूचना मिली थी, उस समय पूरे गांव सहित क्षेत्रभर में शोक छा गया था। ग्रामीणों ने बताया कि जैसे ही बिनोल का लाल तिरंगे में लिपटकर गांव पहुंचा, हर एक इंसान रो पड़ा था। देशभक्ति को सलाम करने का वह नजारा अद्भुत था। गुर्जर के बचपन के मित्र शैतान सिंह ने बताया कि राजसमंद जिले ही नहीं, दूर-दूर से लोग शहीद के अंतिम दर्शन व श्रद्धांजलि अर्पित करने आए थे। वह पल अविस्मरणीय था। शिक्षाविद चतुर्भुज गुर्जर ने बताया कि जिस प्रकार हर व्यक्ति चार-पांच किमी तक पैदल चलकर अंतिम दर्शन व श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचा था, वह देशप्रेम व शहादत के सम्मान का अद्भुत नजारा था।