राजीविका की ओर महिलाओं को मुर्गीपालन व्यवसाय के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए बैंक से ऋण दिलाने में राजीविका की टीम सहयोग करती है। ऋण से मिले पैसों से पिंजरा, चूजे, आहार, दाना-पानी के बर्तन आदि की खरीद कराकर व्यवसाय शुरू कराया जाता है। महिलाओं को प्रताप धन नामक नस्ल के चूजे दिलाए जा रहे हैं।
शुरुआत में एक महिला को 10 हजार का ऋण मिलता है, जिससे एक पिंजरा, 50 चूजे व 50 किलो दाना खरीदती है। एक चूजा 40 रुपए में खरीदा जाता है। अच्छी देखभाल से 30-35 दिन में चूजा पूर्ण विकसित होकर मुर्गी का रूप ले लेता है। एक मुर्गी औसत पांच सौ से सात सौ रुपए तक की कीमत दे देती है। अगर मुर्गी पालक अंडे भी बेचे तो 20 रुपए प्रति अंडा मिल सकता है।
राजीविका के समन्वय से महिलाओं को चूजे उपलब्ध कराए जाते हैं। महिलाएं प्रतिदिन सुबह-शाम दाना-पानी देती हैं। महीनाभर में चूजे बड़े होकर जब मुर्गी बन जाती है तो स्थानीय खरीदारों को उचित दाम में बेच दिया जाता है। कभी-कभार स्थानीय स्तर पर बिक्री में मंदी होने पर राजीविका के माध्यम से बाहरी खरीदारों को सुलभ करवाया जाता है।
आराधना क्लस्टर बागोल की टामी बाई ने समूह से साढ़े सात हजार का ऋण लेकर 50 चूजे व दाना, बर्तन आदि खरीदे। टामी बाई ने एक माह में मुर्गियों से 20 हजार व अंडों से पांच हजार अतिरिक्त सहित कुल 25 हजार की आय प्राप्त की।
मादरेचों का गुड़ा निवासी निर्मल कुंवर ने समूह से पांच हजार का ऋण लेकर 50 चूजे और सभी जरूरी सामान खरीदा। एक माह में चूजों से बनी मुर्गियां बेचकर 28 हजार रुपए की आय प्राप्त की।