संभल के सांसद रहे वरिष्ठ सपा नेता शफीकुर्रहमान बर्क भले ही इस दुनिया में नहीं हों लेकिन उन्होंने ही रामपुर की सियासत में बदलाव के संकेत दिए थे। लोकसभा चुनाव के टिकट बंटवारे से कुछ महीने पहले ही मरहूम बर्क ने मौलाना नदवी की मुलाकात सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से कराई थी। रामपुर सीट से प्रत्याशी की उठापटक की टेंशन को कम करने के लिए अखिलेश यादव की नजरों में मौलाना नदवी ने अपनी जगह बना ली।
जिसके चलते सपा नेता आजम खान के अखिलेश यादव को रामपुर से चुनाव लड़ने का न्योता किसी को हजम नहीं हुआ। अखिलेश यादव ने भी आजम खान के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया।
इसी बीच 26 मार्च को नामांकन से ठीक एक दिन पहले आजम खान के करीबी आसिम राजा व सपा जिलाध्यक्ष अजय सागर ने प्रेसवार्ता करते हुए रामपुर में चुनाव का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी, जो अखिलेश यादव को नागवार गुजरी, जिसके बाद अखिलेश यादव ने रामपुर की सियासत में नए मुस्लिम चेहरे पर दांव खेलना बेहतर समझा।
चुनाव से करीब तीन महीने पहले ही सपा हाईकमान ने मौलाना को रामपुर से चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने के लिए बोल दिया था। जिसमें उन्हें अपने सभी पेपर तैयार करने को कहा गया। जैसे ही रामपुर में प्रत्याशी को लेकर संकट जैसी स्थिति पैदा हुई तो नामांकन के दिन सपा ने मौलाना मोहिब्बुल्लाह को मैदान में उतार दिया।
जो आजम खान व समर्थकों को हजम तो नहीं हुआ, विरोध के बावजूद मौलाना नदवी को पांचों विधानसभा से खूब वोट बरसे। हालांकि बिलासपुर और मिलक में उन्हें हार का सामना जरूर करना पड़ा, लेकिन स्वार, शहर और चमरौआ ने उनकी नैया का बखूबी पार लगा दिया। इस तरह शफीकुर्रहमान बर्क की एक मुलाकात से शुरू हुआ मौलाना का सफर सांसद बनने तक पहुंच गया है।