आंचल ठाकुर इस संदर्भ में बताती हैं कि यह चित्रकला उन्होंने शिमला यूनिवर्सिटी से अपने गुरुदेव प्रोफेसर बलविंदर कुमार से सीखी है। उन्होंने आगे बताया कि चित्रकला के क्षेत्र में काम करते हुए उन्हें मात्र 2 वर्ष ही हुए हैं परंतु उनके गुरुदेव 20 वर्षों का अनुभव प्राप्त कर सैकड़ों विद्यार्थियों को इसकी शिक्षा दे रहे हैं।
उन्होंने बताया कि भारत में राजपूत और मुग़ल लघु चित्रकला शैली बहुत सालों से विख्यात हैं। उनके मुकाबले पहाड़ी लघु चित्रकला हाल ही में बहुचर्चित हुई हैं। पहाड़ी लघु चित्रकला के दो ढंग बताए जाते हैं। गुलेर शैली और कांगड़ा शैली। गुलैर शैली का उगम कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में हुआ वहीं कांगड़ा घराने के कलाकारों का उगम गुजरात के लघु चित्रकारों से होता है। आचार्य केशव दास के प्रसिद्ध ग्रंथ बारहमासा को उन्होंने लोक चित्रकारी के माध्यम से उकेर रखा है।
अपने हाथों को रोकते हुए उन्होंने बताया कि सबसे पहले कागज की तैयारी करनी पड़ती है। उसके बाद कागज पर चित्र का अनुलेखन किया जाता है जिसे हम खाका झाडऩा भी कहते हैं। तत्पश्चात चित्र के आकार का प्राथमिक रेखांकन कर उनका सटीक रेखांकन किया जाता है। उसके बाद चित्र के पाश्र्वभूमी में रंग लेपन कर शंख से चित्र के ऊपर घुटाई की जाती है। इस चित्रकारी में स्वर्ण रंग का बुनियादी काम किया जाता है क्योंकि स्वर्ण रंग से ही सटीक रेखांकन प्रदर्शित होता है।
उन्होंने बताया कि क्योंकि वह खुद हिमाचल प्रदेश के एक खूबसूरत जिले कांगड़ा के निवासी है, उन्हें नेतरहाट की वादियां कांगड़ा की याद दिला रही है। उन्होंने बताया कि यहां आकर बिल्कुल भी अलग सा महसूस नहीं हो रहा। यहां के लोग बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं जो हमें यहां रहने में काफी मददगार साबित हो रहा है।