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रांची

हिमाचल के पहाड़ों की यह कला झारखंड के वनांचल को लुभा रही है

( Jharkhand News )झारखंड के लातेहार जिले के नेतरहाट में चल रहे प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी एवं लोक चित्रकारों ( National Tribal&Folk Paintings Seminar) के शिविर में देशभर से आए चित्रकार अपने राज्य के लोक चित्रकारी की छटा बिखेर रहें हैं। इसी क्रम में शिमला से आई आंचल ठाकुर एवं उनके गुरु कांगड़ा हिमाचल प्रदेश के बलवेंद्र कुमार लोक रंगों से अपने परंपरागत पहाड़ी लघु चित्रकला को बना रहे हैं।

रांचीFeb 12, 2020 / 02:56 pm

Yogendra Yogi

हिमाचल के पहाड़ों की यह कला छत्तीसगढ़ के वनांचल को लुभा रही है

हिमाचल के पहाड़ों की यह कला छत्तीसगढ़ के वनांचल को लुभा रही है

रांची(रवि सिन्हा): ( Jharkhand News )झारखंड के लातेहार जिले के नेतरहाट में चल रहे प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी एवं लोक चित्रकारों ( National Tribal&Folk Paintings Seminar) के शिविर में देशभर से आए चित्रकार अपने राज्य के लोक चित्रकारी की छटा बिखेर रहें हैं। 10 से 15 फरवरी 2020 तक चलने वाले इस शिविर में लोक चित्रकार अपनी चित्रकारी का जौहर दिखा रहे हैं। इसी क्रम में शिमला से आई आंचल ठाकुर एवं उनके गुरु कांगड़ा हिमाचल प्रदेश के बलवेंद्र कुमार लोक रंगों से अपने परंपरागत पहाड़ी लघु चित्रकला को बना रहे हैं। शिमला यूनिवर्सिटी से पहाड़ी लघु चित्रकला में परास्नाातक कर रही आंचल ठाकुर और उनके गुरुदेव शिमला यूनिवर्सिटी में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर बलवेंद्र कुमार से बातचीत के पेश है कुछ अंश:
आपने यह चित्रकला किससे और कहां से सीखी?
आंचल ठाकुर इस संदर्भ में बताती हैं कि यह चित्रकला उन्होंने शिमला यूनिवर्सिटी से अपने गुरुदेव प्रोफेसर बलविंदर कुमार से सीखी है। उन्होंने आगे बताया कि चित्रकला के क्षेत्र में काम करते हुए उन्हें मात्र 2 वर्ष ही हुए हैं परंतु उनके गुरुदेव 20 वर्षों का अनुभव प्राप्त कर सैकड़ों विद्यार्थियों को इसकी शिक्षा दे रहे हैं।
पहाड़ी लघु चित्रकला क्या है?
उन्होंने बताया कि भारत में राजपूत और मुग़ल लघु चित्रकला शैली बहुत सालों से विख्यात हैं। उनके मुकाबले पहाड़ी लघु चित्रकला हाल ही में बहुचर्चित हुई हैं। पहाड़ी लघु चित्रकला के दो ढंग बताए जाते हैं। गुलेर शैली और कांगड़ा शैली। गुलैर शैली का उगम कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में हुआ वहीं कांगड़ा घराने के कलाकारों का उगम गुजरात के लघु चित्रकारों से होता है। आचार्य केशव दास के प्रसिद्ध ग्रंथ बारहमासा को उन्होंने लोक चित्रकारी के माध्यम से उकेर रखा है।
पहाड़ी लघु चित्रकला कैसे बनाई जाती है? इस चित्रकारी में किन रंगों का ज्यादा इस्तेमाल होता है?
अपने हाथों को रोकते हुए उन्होंने बताया कि सबसे पहले कागज की तैयारी करनी पड़ती है। उसके बाद कागज पर चित्र का अनुलेखन किया जाता है जिसे हम खाका झाडऩा भी कहते हैं। तत्पश्चात चित्र के आकार का प्राथमिक रेखांकन कर उनका सटीक रेखांकन किया जाता है। उसके बाद चित्र के पाश्र्वभूमी में रंग लेपन कर शंख से चित्र के ऊपर घुटाई की जाती है। इस चित्रकारी में स्वर्ण रंग का बुनियादी काम किया जाता है क्योंकि स्वर्ण रंग से ही सटीक रेखांकन प्रदर्शित होता है।
आप पहाड़ी लघु चित्रकला के भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं?

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चित्रकला के क्षेत्र में पहाड़ी लघु चित्रकला अपनी एक पहचान बना चुकी है। नए उभरते चित्रकार इससे संबंधित कोर्स करके शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को इस चित्रकला का ज्ञान दे सकते हैं साथ ही फैशन डिजाइनिंग, इंटीरियर डिजाइनिंग सहित अन्य माध्यमों से अपनी पहचान बना सकते हैं। इसके अलावा ऐसे राष्ट्रीय आदिवासी एवं लोक चित्रकारी के शिविर से लोगों के बीच लोक चित्रकारी के बारे में जागरूकता आएगी तथा उसके प्रति रुचि बढ़ेगी।
कैसा लगा शिमला ऑफ झारखंड में आकर?
उन्होंने बताया कि क्योंकि वह खुद हिमाचल प्रदेश के एक खूबसूरत जिले कांगड़ा के निवासी है, उन्हें नेतरहाट की वादियां कांगड़ा की याद दिला रही है। उन्होंने बताया कि यहां आकर बिल्कुल भी अलग सा महसूस नहीं हो रहा। यहां के लोग बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं जो हमें यहां रहने में काफी मददगार साबित हो रहा है।

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