scriptतालिबानियों और नक्सलियों के बीच है यह समानता | This similarity is between Taliban and Naxalites | Patrika News
रांची

तालिबानियों और नक्सलियों के बीच है यह समानता

अफगानिस्तान के आतंकवादियों और भारत के नक्सलियों में एक समानता है। वह यह है कि दोनों ही अपनी चरमपंथी वारदातों के धन का इंतजाम अवैध मादक पदार्थों ( Illegal Drugs ) से करते हैं। जिस तरह तालिबानी (Taliban ) अफीम के कारोबार (Poppy cutivation) से हासिल हुए धन से विश्व मे ंआतंक फैलाए हुए हैं, उसी तरह नक्सली (Naxli ) भी अफीम से होने वाली कमाई से हिंसक वारदातों को अंजाम देते हैं।

रांचीFeb 04, 2020 / 05:00 pm

Yogendra Yogi

तालिबानियों और नक्सलियों की बीच है यह समानता

तालिबानियों और नक्सलियों की बीच है यह समानता

रांची(रवि सिन्हा): अफगानिस्तान के आतंकवादियों और भारत के नक्सलियों में एक समानता है। वह यह है कि दोनों ही अपनी चरमपंथी वारदातों के धन का इंतजाम अवैध मादक पदार्थों ( Illegal Drugs ) से करते हैं। जिस तरह तालिबानी (Taliban ) अफीम के कारोबार (Poppy cutivation) से हासिल हुए धन से विश्व मे ंआतंक फैलाए हुए हैं, उसी तरह नक्सली (Naxli ) भी अफीम से होने वाली कमाई से हिंसक वारदातों को अंजाम देते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो झारखंड नशे के सौदागरों के लिए यह मिनी अफगानिस्तान बनता जा रहा है। अफीम जैसे नशीले पदार्थ की अवैध खेती की वजह से पूरे देश में बदनाम हो रहा है।

बढ़ रहा है अफीम की अवैध खेती का कारोबार
झारखंड के भौगोलिक क्षेत्रफल का करीब 30 फीसदी हिस्सा जंगलों से घिरा है और इसी वन अच्छादित क्षेत्र में नक्सलियों के इशारे पर अफीम की खेती का धंधा फल फूल रहा है। साल दर साल यहां अवैध तरीके से अफीम की खेती बढ़ती जा रही है जिसकी सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी तस्करी हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के विभिन्न हिस्सों में 2017 में 2700 एकड़ अफीम की खेती नष्ट की गयी, वहीं 2018 में 2900 एकड़ अफीम की खेती नष्ट की गयी और 2019 मे यह आकंड़ा बढ़कर 3000 एकड़ तक आ पहुंचा।

नक्सली भोले आदिवासियों से कराते हैं यह काम
पुलिस का मानना है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सबसे ज्यादा अफीम की खेती होती है, नक्सली भोले भाले ग्रामीणों को बरगलाकर अफीम की खेती के लिए प्रोत्साहित करते हैं। जंगलों को ऐसा इलाका भी है जहां पुलिस की पहुंच आसानी से नहीं हो सकती, वहां अफीम की खेती होती है। इंटेलिजेंस विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक झारखंड में फिलहाल 10 हजार एकड़ से ज्यादा की जमीन पर अवैध तरीके से अफीम की खेती हो रही है और ये आंकड़ें हर साल बढ़ते जा रहे हैं।

झारखंड के 24 में से 18 जिलों में नशे का कारोबार
प्रदेश के चतरा, खूंटी, हजारीबाग, लातेहार, बोकारो, साहेबगंज, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां, पलामू, गढ़वा झारखंड के ऐसे जिले हैं जहां बड़े पैमाने पर अवैध रूप से अफीम की खेती होती है। जबकि इंटेलिजेंस विभाग के सूत्रों के मुताबिक रांची जिले के ग्रामीण इलाके, सिमडेगा, गुमला, पाकुड़, जामताड़ा, गोड्डा और गिरिडीह में आंशिक तौर पर अफीम की खेती दर्ज की गई है। बताया गया है कि राज्य के २4 जिलों में से 18 जिलों में अफीम की खेती होती है।

अफीम व उससे बने पदार्थों की कीमत करोड़ो है
अफीम की खेती धड़ल्ले से होने के संबंध में जानकारों का मानना है कि झारखंड का बड़ा हिस्सा जंगल है, अधिकतर इलाके पहाड़ी हैं, रास्ते दुर्गम हैं, झारखंड की मिट्टी और मौसम अफीम की खेती के अनुकूल है, यही वजह है कि नशे के सौदागरों की झारखंड पहली पसंद है। अफीम की खेती के लिए सर्दियों का मौसम मुफीद होता है, ड्रग माफिया और उग्रवादी संगठन के लोग सितम्बर महीने में ग्रामीणों को पोस्ता के बीज उपलब्ध कराते हैं, अक्टूबर में बुआई होती है और नवम्बर से पोस्ता के फल-फूल लगना शुरू हो जाते हैं और जनवरी से लेकर मार्च के बीच पोस्ता के फल से अफीम निकालने का काम होता है। गौरतलब है कि अफीम से ही हेराइन और अन्य मादक पदार्थ तैयार किए जाते हैं। जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति किलो करोड़ों की कीमत होती है।

Home / Ranchi / तालिबानियों और नक्सलियों के बीच है यह समानता

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो