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श्रावण से पहले शिव कैबिनेट में आषाढ़ का उत्साह सूखा

मालवा के अहम जिलों की कमान संभाल रहे प्रभारी मंत्रियों की मुश्किल डगर, कहीं विरोध तो कहीं मनभेद का असर

रतलामJul 20, 2021 / 01:11 am

sachin trivedi

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रतलाम. (सचिन त्रिवेदी)
कहते हैं मालवा की राजनीति को समझना आसान नहीं है। आषाढ़ माह में मुख्यमंत्री ने मालवा के अहम जिलों में अपनी टीम के मंत्रियों को कमान सौंपी है, लेकिन केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को साधने के फेर ने इन जिलों के राजनीतिक भूगोल से अनजान प्रभारी मंत्रियों की मुश्किल बढ़ा दी है। दरअसल, सत्तापक्ष के विधायकों के बीच मनभेद प्रभारी मंत्रियों के लिए कांटों भरी राह से कम नहीं है, क्योंकि रतलाम से लेकर नीमच, उज्जैन और देवास में माननीय के अंतरविरोध का फिजिक्स प्रभारियों को तपा रहा है। सार्वजनिक तौर पर कुछ जिलों में तो विधायकों के मध्य अंतरविरोध सामने आने लगा है तो कार्यकर्ताओं के बीच भी संगठन की नीति सही पटरी पर आगे नहीं बढ़ पा रही है।

मालवा के चार जिलों में साधने की डगर सबसे ज्यादा मुश्किल
1. नीमच: प्रभारी मंत्री के सामने फूट पड़ा अंतरविरोध तो मंत्री को नहीं सुझा जवाब
– नीमच जिले की प्रभारी बनाई गई मंत्री उषा ठाकुर के लिए स्थानीय राजनीति को साधकर आगे बढऩा चुनौती है, क्योंकि जिले में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों के भाजपा में प्रवेश के बाद एक अलग टीम भी बन गई है, फिलहाल जिले में सभी विधायक भाजपा के मूल नेताओं के समर्थक है, लेकिन आपसी अंतरविरोध कम नहीं है। अपने पहले दौरे पर मंत्री ठाकुर की मौजूदगी में एक बैठक के दौरान तो मनासा विधायक अनिरूद्ध माधव मारू अपनी विधानसभा की अनदेखी पर फूट पड़े, उन्होंने नीमच विधायक दिलीसिंह परिहार पर भी निशाना साधा, इसके पहले भी मारू स्वास्थ्य समिति की बैठक के दौरान मनासा अस्पताल की सुविधाओं पर ध्यान नहीं देने से फफक पड़े थे।

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2. मंदसौर: प्रभारी मंत्री को अभाविप कार्यकर्ताओं के सामने हाथ जोड़ देना पड़ा जवाब
– मंदसौर के प्रभारी मंत्री राजवद्र्धनसिंह दत्तीगांव के लिए भी स्थानीय राजनीति को साधने की शुरूआत ही विवाद से भरी रही। पहले दौरे पर मंदसौर आए दत्तीगांव को संघ की छात्र यूनिट अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कड़ा विरोध झेलना पड़ा। महाविद्यालयों में सुविधाओं के साथ एक महाविद्याल में इसी जिले से कैबिनेट मंत्री हरदीपसिंह डंग से जुड़े एक व्यक्ति की कार्यप्रणाली से परिषद लामबंद थी, मामले को लेकर प्रभारी मंत्री से मिलना तय हुआ था, लेकिन सही इनपुट नहीं मिल पाने के कारण मंत्री ने अभाविप की मांग को समय पर तवज्जों नहीं दी। मंत्री की ओर से जवाब नहीं आने पर अभाविप कार्यकर्ता सड़क पर आ गए तो दत्तीगांव को हाथ जोड़कर कार्यकर्ताओं को शांत कराना पड़ा।

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3. रतलाम: प्रभारी मंत्री की प्राथमिकता में शहर या जावरा, दबाव फिफ्टी-फिफ्टी
– रतलाम में प्रभारी की कमान संभालने वाले ओपीएस भदौरिया का पहला दौरान केन्द्रीय मंत्री सिंधिया के रतलाम आगमन के समय हुआ। मंत्री सर्किट हाऊस पर मीडिया से रूबरू हुए तो उनके साथ रतलाम ग्रामीण विधायक दिलीप मकवाना ही नजर आए थे, जबकि रतलाम शहर से चेतन्य काश्यप और जावरा से डॉ. राजेन्द्र पांडेय भी भाजपा से ही विधायक है। इसके बाद कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की मीटिंग में कई बड़े चेहरे नजर नहीं आए। जावरा विधायक तो कई बार खुलकर प्रशासन के खिलाफ मैदान में आ चुके हैं। शहर विधायक की सौगात वाले मेडिकल कॉलेज के खिलाफ तो उन्होंने नेगेटिव रिपोर्ट को पॉजिटिव बताकर विधानसभा सत्र से रोकने की साजिश के आरोप लगा दिए थे।

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4. उज्जैन: मंदसौर-रतलाम के बाद उज्जैन की कमान, पूर्व व वर्तमान मंत्री से कदमताल चुनौती
– मंदसौर और रतलाम के बाद उज्जैन के प्रभारी बने प्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा के लिए वर्तमान और पूर्व मंत्री के बीच कदमताल करना चुनौती है। उज्जैन संभाग में सिंधिया समर्थकों की अच्छी संख्या वाले उज्जैन जिले में अक्सर सत्तापक्ष के मंत्रियों व विधायकों के बीच अंतरविरोध प्रशासनिक फैसलों के विरोध और समर्थन के तौर पर सामने आते हैं। हाल ही में एक भवन अनुमति के प्रकरण में देरी को लेकर पूर्व मंत्री और विधायक पारस जैन ने मोर्चा खोल दिया है, उन्होंने बकायदा इसके लेकर भोपाल शिकायत की है, वहीं, सिंहस्थ भूमि के कुछ प्रोजेक्ट और स्मार्ट सिटी की कई अहम परियोजनाओं को लेकर भी बैठकों में खुलकर तर्क-वितर्क अक्सर सामने आते रहे हैं।

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देवास में मंत्री के आने का हो रहा इंतजार
नेमावर हत्याकांड और फिर नर्मदा माइक्रो सिंचाई परियोजना से बागली विधानसभा के गांवों को वंचित करने से उठ रहे जन आंदोलन के बीच देवास की प्रभारी मंत्री यशोधराराजे सिंधिया का इंतजार हो रहा है। उषा ठाकुर की जगह उनको कमान सौंपने के बाद से ही जिले की राजनीति भी गर्माई हुई है। पूर्व मंत्री दीपक जोशी हाटपीपल्या विधानसभा उपचुनाव के दौरान के समझौते के अमल की राह देख रहे हैं तो सिंधिया समर्थक विधायक और भाजपा के मूल विधायकों के बीच जिले में एकजुटता कहीं गुम सी हो गई हैं।

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