मुस्कानभरी मुद्रा में कहा मां से- बेटी को धर्म-कर्म की शिक्षा देकर जोड़े संस्कृति-संस्कार से
पुष्पगिरी तीर्थ में क्षुल्लक पर्वसागर ने सुनाई आहार चर्या के दौरान घटी घटना
पुष्पगिरी तीर्थ में क्षुल्लक पर्वसागर ने सुनाई आहार चर्या के दौरान घटी घटना
सोनकच्छ. समाधिस्थ जैन आचार्य तरुणसागर के 53वें तरुण अवतरण महोत्सव (जन्म जयंती) के 26 दिवसीय तरुण जीवन संवाद कार्यक्रम में रविवार को क्षुल्लक पर्व सागर ने तरुणसागर के जीवन पर संवाद करते हुए कहा कि राजिम में आचार्य विद्यासागरजी से ऐतिहासिक मुलाकात का संदर्भ आप सबको बताया था। आगे का संदर्भ यह है कि पुष्पदंत सागरजी, तरुणसागरजी सहित अपने शिष्य संघ के साथ राजिम छत्तीसगढ़ से जैन तीर्थ सम्मेदशिखर के लिए प्रस्थान कर गए। मार्ग में बिलासपुर, अकलतरा, रांची, हजारीबाग, ईसरी में भी धर्म प्रभावना का एक अद्भुत अंबार जुड़ गया। छोटे संत तरुणसागरजी की लोकप्रियता चरम पर पहुंच रही थी और चलते फिरते तीर्थ संतगण सिद्ध क्षेत्र पहुंच गए। लगभग 15 दिन सम्मेद शिखर तीर्थ पर रुके अनेक संत, साध्वियों का मिलना हुआ। छोटी उम्र के साधुओं से मिलने का वहां उपस्थित संतों में अत्यधिक रुझान दिखा। संघ तीर्थ वंदना कर पुन: विहार से मध्यप्रदेश की ओर प्रस्थान कर गया। मार्ग में राजगृही, भगवान महावीर की मोक्ष स्थली पावापुर, गया होते हुए रास्ते में एक गांव में रुका जहां एक अद्भुत घटना घटी।
आहार के दौरान घटी यह घटना
बात यह हुई कि प्रात : का आहार का समय हुआ। जैन विधि नियम अनुसार एक जैन श्रद्धालु के घर क्षुल्लक तरुणसागरजी का जाना हुआ। गांव छोटा था इसलिए जैन समाज के 2-3 ही घर थे। कोई भीड़भाड़ का चक्कर नहीं था। आहार कक्ष में एक मां क्षुल्लकजी को आहार करवा थी (जैन विधि से भोजन करवा रहीं थीं) तब तक उसे ध्यान आया कि उसकी कॉलेज में पढऩे वाली पुत्री आहार करवाने को तैयार हो गई थी, पर चौके से दूर ही खड़ी थी। अत : मां ने शालीनता से पुत्री को पुकारा। बेटी, आ तू भी आहार दे दे। पुत्री ने कभी आहार नहीं दिए थे किसी साधु को, अत: वह संकोचवश अन्य कक्ष में खड़ी थी। मां द्वारा बुलाने पर वह पहुंच गई। झुककर अपना नमन निवेदित किया। जितने शब्द मां ने आहारों से पूर्व रटा दिए थे, उतने बोले और स्वीकृति पा गई। उसने अपने धुले हुए साफ हाथों में ज्यों ही रोटी उठाई, मां दूसरे कक्ष में सिगड़ी से पानी का पात्र हटाने चली गई। वह निश्चिंत थी कि पुत्री आहार दे रही है। पुत्री ने कांपते हाथों से रोटी के ग्रास को अंगुलियों से संभाला और क्षुल्लकजी के कटोरे में रखने के बजाय, सीधे उनके मुख की ओर ग्रास ले गई। ज्यों ही क्षुल्लकजी ने उसके हाथ की दिशा देखी, वे अपना सिर पीछे को खींचने लगे। पुत्री का डरता-कांपता हाथ उनके मुंह की ओर बढ़ रहा था और क्षुल्लकजी का बंद मुंह सिर सहित पीछे की ओर खींचते चला जा रहा था। तब तक मां कमरे में आ गई, उन्होंने पुत्री को देखा तो लपक कर ग्रास छीन लिय और क्षुल्लकजी से विनयपूर्वक बोली, महाराज ये कॉलेज में पढ़ती है, मगर इसे चौके की जानकारी नहीं है, अब कुशल बना दूंगी। माँ ने क्षुल्लकजी को आहार करवाया। शर्म से भीगी उसकी पुत्री ध्यान से देखती रही। क्षुल्लकजी का आहार पूर्ण हुआ। आगे यह घटना किसी साधु के साथ न घटे इसलिये क्षुल्लकजी ने उस कॉलेज में पढऩे बाली लडक़ी को धर्म-कर्म की शिक्षा देने के लिए मां को कहा और लडक़ी का डर निकल जाए, वह धर्म से जुडकऱ संस्कृति और संस्कारों को भी जाने इसलिए क्षुल्लकजी मुस्कानभरी मुद्रा में आशीर्वाद देते हुए प्रस्थान कर गए। 14वें दिन संध्या गुरु आरती सांगली महाराष्ट्र गुरुपरिवार द्वारा की गई। तरुण संवाद मे पर्वसागर द्वारा सवाल किया गया कि समाधिस्थ आचार्य तरुण सागर ने क्षुल्लक दीक्षा के बाद अपने गुरु के साथ किस जैन तीर्थ की वंदना की।
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