आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में भाषण कला से प्रभावित होकर कांगे्रस के दिलीपङ्क्षसह भूरिया को इंदिरा गांधी ने पहली बार टिकट दिया, लेकिन वे अपने करीबी प्रत्याशी बीएलडी के भागीरथ भंवर से 62 हजार रिकार्ड वोट से हार गए। इसके बाद 1980 में इस हार का बदला दिलीपसिंह भूरिया ने 90 हजार वोट से जीतकर लिया। इनके सामने इनकी ही पार्टी की पूर्व सांसद जमुनादेवी जेएनपी से खड़ी हुई थी। इसके बाद 1984 में भूरिया 1 लाख 34 हजार, 1989 में 1 लाख 16 हजार, 1991 में 1 लाख 34 हजार, 1996 में 27 हजार वोट से जीते। इसके बाद जब 1998 के चुनाव में इनको कांगे्रस ने टिकट नहीं दिया तो वे पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए।
2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की 1980 में हुई स्थापना के 24 वर्षो बाद पहली बार भाजपा की यहां से जीत हुई। भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने कांगे्रस के कांतिलाल भूरिया को 1 लाख 8 हजार वोट से हराया, लेकिन ये जीत एक वर्ष ही कायम रह पाई। जून 2015 में दिलीपसिंह का बीमारी से निधन हुआ। इसके बाद नवंबर 2015 में हुए उपचुनाव में कांगे्रस के कांतिलाल ने 88 हजार से अधिक वोट से जीत दर्ज की।