रतलाम जिले में इस समय सभी पांच सीट पर भाजपा के टिकट से वर्ष 2013 में जीते प्रत्याशी विधायक है। तमाम बडे़ दावों के साथ ये प्रत्याशी 2013 में मैदान में उतरे थे, एक या दो को छोड़ दे तो किसी के पास बताने के लिए विधायक नीधि से हुए कार्यो के अलावा बड़ा बताने के लिए कुछ नहीं है। एेसे में जमीनी विरोध को ही आधार बताकर पार्टी में अन्य दावेदार टिकट की मांग कर रहे है।
ये है जावरा की जमीनी हकीकत
वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा के डॉ. राजेंद्र पांडेय करीब 30 हजार वोटों से चुनाव में जीते थे। वर्ष 2018 के चुनाव में वे पांचवी बार जावरा सीट से दावेदारी कर रहे है। भाजपा के पास इस सीट पर दूसरा कोई बेहतर विकल्प नहीं है, इसकी एक बड़ी वजह डॉ. पांडे की संगठन में विभिन्न पदों पर रहने की वजह से पकड़ मजबूत है। जावरा को जिला नहीं बनाने के चलते इस समय उनके खिलाफ एंटी एनकमबेंसी फैक्टर तेजी से काम कर रहा है। इस विधानसभा सीट पर राजपुत, ब्राहमण, धाकड़, पाटीदार व मुस्लिम वोट बड़ा असर रखते है। यदि यहां पर कांगे्रस मुस्लिम वोट को बांध ले तो भाजपा को परेशानी हो सकती है।
भाजपा के संभावित उम्मीदवार
डॉ. राजेंद्र पांडेय- इनको पार्टी ने लगातार चार बार टिकट दिया। अब तक चार चुनाव लड़ चूके है। चार चुनाव में से दो बार जीते व दो बार पराजीत हुए। संगठन में प्रदेश मंत्री, युवा मोर्चा में जिलाध्यक्ष से लेकर प्रदेश तक में पदाधिकारी रहे डॉ. पांडे को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की गुड लिस्ट वाला विधायक माना जाता है। इनके पिता व पार्टी में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे लंबे समय तक सांसद रहे। इसके चलते सत्ता व संगठन में इनकी गहरी पैंठ है। दिग्विजयसिंह सरकार में अनेक विभाग में मंत्री रहे महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को वर्ष 2003 में हराकर डॉ. पांडे चर्चा में आए थे। पेशे से चिकित्सक डॉ. पांडे को मिलनसार के साथ-साथ सर्वसुलभ विधायक माना जाता है। बड़ी बात ये है कि इनकी पकड़ पिछड़ी से लेकर सर्वण जातियों में समान रुप से है।
रुघनाथसिंह आंजना- वर्ष 1990 में मध्यप्रदेश की ढ़ाई वर्ष चली सुंदरलाल पटवा सरकार में आंजना जावरा से विधायक बने थे। पार्टी में राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष हिम्मत कोठारी से लेकर पटवा गुट से जुडे़ आंजना माऊखेड़ी में रहते है। जाति के आधार पर देखें तो पाटीदार, धाकड़ समाज में इनकी बेहतर पकड़ है। गांव में रहने वाले अंाजना की जीवनशैली भी ग्रामीण है, इसलिए वे 1990 के बाद से हुए हर चुनाव में दावेदारी करते है।
प्रकाश मेहरा- रतलाम जिले में अगर सहकारिता के क्षेत्र में लंबे समय तक कोई अध्यक्ष भाजपा की तरफ से रहा तो वो प्रकाश मेहरा है। संगठन में विभिन्न पद पर रहे मेहरा को मुख्यमंत्री शिवराजङ्क्षसह चौहान भी सीधे तोर पर जानते है। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान रथ लेकर निकले मुख्यमंत्री ने अपने एक तरफ डॉ. राजेंद्र पांडे को तो दूसरी तरफ मेहरा को खड़ा रखा था। इनके बेटे पिंकेश युवा मोर्चा में प्रदेश पदाधिकारी रहे है। पिछड़ी जाति में अगर चेहरे का चुनाव हुआ तो पेशे से अभिभाषक पिता या बेटे में से मेहरा सबसे अधिक मजबूत दोवदार रहेंगे। इसके अलावा आरक्षित सीट आलोट से भी मेहरा की दावेदारी मजबूत है।
डॉ. दिलीप शाकल्य- भाजपा में संगठन में अनेक पदों पर रहे डॉ. शाकल्य की पत्नी नमिता शाकल्य जनपद में अध्यक्ष रह चुकी है। इसके अलावा डॉ. शाकल्य नगर पालिका से लेकर जनपद में चुनाव लड़ चूके है। नरेंद्र मोदी सरकार में ताकतवर मंत्री थावरचंद गेहलोत व मध्यप्रदेश में संगठन व सत्ता में अनेक पदों पर रहे मेघराज जैन के करीबी डॉ. शाकल्य ने वर्ष 2008 व 2013 के चुनाव में दावेदारी की थी। हालाकि इनके परिवार के सदस्यों का व्यापाम मामले में नाम आने के बाद ये वर्ष 2013-14 में अधिक चर्चा में आए थे। डॉ. पांडेय को अगर पार्टी टिकट नहीं देती है तो गेहलोत व जैन को साधकर ये टिकट हासिल कर सकते है।
भेरूलाल पाटीदार- पार्टी में कभी जिले में उपाध्यक्ष तो कभी महामंत्री जैसे अनेक पद पर भेरूलाल पाटीदार रहे है। संघ के करीबी, जिला योजना समिति के पूर्व सदस्य, महिला आयोग की सदस्य कविता पाटीदार के करीबी अदि ये है। वर्ष 2013 के चुनाव में इन्होंने टिकट की दावेदारी की थी। पाटीदार व धाकड़ समाज में इनकी गहरी पेठ है। आर्थिक रुप से मजबूत पाटीदार का नाम डॉ. पांडे का खुलकर विरोध करने वालों में आता है।
निर्मला हाड़ा- जावरा नगर पालिका में निर्मला हाड़ा पहली महिला रही जो नगर पालिका की अध्यक्ष बनी। महिला मोर्चा में जिलाध्यक्ष रहने के अलावा संघ से लेकर पार्टी के श्रेष्ठी नेताओं में इनकी पकड़ है। इनका परिवार विशेषकर पति प्रहलाद हाड़ा संघ से लंबे समय से जुडे़ हुए है। पार्टी के विभिन्न आंदोलन से लेकर कार्यक्रमों में सक्रियता से हाड़ा भाग लेती है। यदि तमाम दावेदारों के बीच महिला को टिकट देने की बात हुई तो निर्मला की दावेदारी सबसे अधिक मजबूत रहेगी। इनके समर्थन में बेहतर बात ये है कि पांच वर्ष तक नगर पालिका में अध्यक्ष रहने के बाद भी इनके उपर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा।
अनिल दसेड़ा- वर्तमान में नगर पालिका अध्यक्ष है। भाजपा से जब अध्यक्ष के लिए टिकट नहीं मिला तो बगावत की। इस बगावत के बाद मुख्यमंत्री शिवराजङ्क्षसह चौहान खुद पार्टी के प्रत्याशी के समर्थन में रोड शो करने आए, इसके बाद भी दसेड़ा ने भाजपा व कांगे्रस के प्रत्याशी को पराजीत करके चुनाव जीता। बड़ी बात ये है कि चुनाव प्रचार के दौरान पुलिस ने इनको जेल भेज दिया था। नगर पालिका के उपचुनाव के दौरान भी कुछ समय के लिए ये पूर्व में अध्यक्ष बने थे। पार्षद से लेकर अध्यक्ष तक की राजनीति में दसेड़ा 20 वर्षो में भाजपा में अनेक पद पर रहे है। मंडी की राजनीति में सक्रिय रहने वाले दसेड़ मंत्री पारस जैन व राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष चेतन्य काश्यप के करीबी है। जैन समाज के वोट का प्रतिशत को देखकर टिकट का वितरण हुआ तो दसेड़ा की दावेदारी सबसे अधिक मजबूत है।
श्याम बिहारी पटेल- ये जावरा विधानसभा अंतर्गत आने वाली पिपलोदा नगर परिषद के अध्यक्ष है। इनके पूर्व इनकी पत्नी उपमा पटेल भी ्रपरिषद में अध्यक्ष रही है। वर्ष 2013 के चुनाव के समय भी इन्होंने दावेदारी की थी। अब भी ये दो वर्षो से खुलकर दावेदारी कर रहे है। दर्जी समाज के प्रतिनिधि पटेल को संगठन के वरिष्ठ नेताओं से संबंधों का लाभ होने की उम्मीद है।
कानसिंह चौहान- वर्तमान में भाजपा के जिलाध्यक्ष हैं, लेकिन लंबे समय से भारतीय मजदूर संघ में काम करने के साथ ही संघ का काम कर रहे हैं। पिछले चुनाव में भी टिकट की पैनल में अंतिम समय तक नाम था और पार्टी के अंदर ही अंदर टिकट की दावेदारी के साथ चुनावी तैयारी इन्होंने शुरू कर दी है।
प्रदीप चौधरी- वर्तमान में सांसद प्रतिनिधि है और सांसद के करीबी है। सांसद के साथ संबंध बल पर भाजपा संगठन के नेताओं से संपर्क से टिकट की दावेदार कर चुके है। पिछले तीन सालों से पूरी विधानसभा में सक्रिय है। अर्थिक स्थिति बेहतर है। पार्टी में ये कोषाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर है। राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष चेतन्य काश्यप के ये करीबी है।
कांग्रेस के दावेदार युसुफ कड़पा – अल्पसंख्यक वोट बैंक देखते हुए कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेता है।वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडे़ थे। इससे पहले दो बार जावरा नगर पालिका अध्यक्ष रहे। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव है और सीधे एहमद पटेल व कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव से संपर्क में होकर उन्हीं के गुट के माने जाते हैं। अल्पसंख्यक को देखकर टिकट दिया जाता है तो इनकी दावेदारी मजबूत है।
डॉ. एचएस राठौर – कांग्रेस में सत्ता व संगठन में अनेक पदों पर रही गिरिजा व्यास के करीबी माने जाते हैं। इसके अलावा अजयसिंह के करीबी होकर सक्रिय होकर दावेदार जता चुके है। पिछली बार भी कांग्रेस की टिकट पैनल में नाम था। इस बार भी चुनाव लडने की तैयारी कर रहे हैं। राजपुत वोट बैंक साथ होने का इनका दावा है।
भारतसिंह -मध्यप्रदेश की अर्जुनसिंह सरकार में उद्योग व गृह विभाग के मंत्री रहे और अर्जुनसिंह गुट के है और अजयसिंह के करीबी माने जाते हैं। राजपूत समाज का क्षेत्र में बड़ा वोट बैंक है, ऐसे में इस बार दावेदारी जता रहे है। साथ ही इनके पुत्र नीतिराज के लिए भी लगे हुए है। दोनों में किसी एक के टिकट लाने की कोशिश में लगे है।
केके सिंह कालूखेड़ा – ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट से संपर्क है और पूर्व मंत्री महेंद्रसिंह कालूखेड़ा के छोटे भाई है। लंबे समय तक शिक्षा, कृषि व अन्य विभागों के मंत्री रहने के साथ कालूखेड़ा जावरा के विधायक रहे। सिंधिया के सपोर्ट से टिकट लाकर उनकी राजनीति बिछात पर आगे बढऩे की तैयारी में लगे है, गांवों में लंबे समय से सक्रिय है। राजपुत वोट इनकी सबसे बड़ी ताकत है।
डीपी धाकड़ – इस समय में जिला पंचायत उपाध्यक्ष है, लेकिन लंबे समय से जावरा में सक्रिय है। किसान आंदोलन में जेल जाने के बाद से सुर्खियों में आए धाकड़ कमलनाथ, सिंधिया से लेकर दिग्विजयसिंह के संपर्क में है और जावरा में धाकड़ समाज का बड़ा वोट बैंक है। ऐसे में जावरा में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडने की तैयारी कर रहे है और हाईकमान को अवगत करा चुके है। धाकड़ समाज पिछले कुछ समय से जावरा में भाजपा से नाराज चल रहा है। इसका फायदा उठाने की जुगत में लगे है।
रामनिवास धाकड़- वर्तमान में जनपद पंचायत के अध्यक्ष है और प्रेमचंद गुड्डू गुट के है। इसके अलावा जावरा में धाकड़ वोट बैंक को देखते हुए सििक्रयता दिखा रहे है और चुनाव लडने की इच्छा के साथ टिकट के लिए कोशिश ये पूर्व में 2013 के चुनाव के समय भी कर चुके है।
सुजानमल दसेड़ा- लंबे समय से कांग्रेस की राजनीति कर रहे है और विभिन्न पदों पर रहे है। कई सालों की राजनीति को देखते हुए इस बार जावरा में चुनाव की दावेदार जता रहे है। प्रदेश के नेताओं से मिलकर अपनी इच्छा जाहिर कर चुके है। जावरा को जिला बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत इन्होंने ही की है।
हिम्मतसिंह श्रीमाल -ंलंबे समय से महेंद्रसिंह कालूखेड़ा के साथ थे, लेकिन पिछले चुनाव से उनसे अलग होकर दूसरे गुट में चले गए। इस बार चुनाव लडने की तैयारी कर है और दावेदारी जता चुके है। वर्ष 2013 में भी इन्होंने टिकट की दावेदारी की थी।
दोनों पांच साल तक रहे सक्रिय पांच वर्षो तक दोनों आमजन के बीच सक्रिय रहे। डॉ. पांडे जहां विधानसभा में प्रदेश में दूसरे नंबर पर सर्वाधिक सवाल करने वाले विधायक बने वही सरकार की विभिन्न योजनाओं के शिलान्यास, भूमिपूजन के साथ-साथ अस्पताल की दुर्दशा पर सक्रिय रहे। दूसरी तरफ कड़पा भले चुनाव में पराजीत हुए, लेकिन इसके बाद भी संगठन ने इनको प्रदेश संगठन में सचिव बनाया व अल्पसंख्यक मोर्चे सहित अन्य जवाबदेही दी। कड़पा ने कांगे्रस के हुए उन सभी आंदोलन में समर्थकों सहित भाग लिया, जो वरिष्ठ कार्यालय से निर्देश आए।
पहला लक्ष्य चुनाव जीतना कांग्रेस का पहला लक्ष्य चुनाव जीतना है। टिकट किसी को भी मिले, संगठन में सभी मिलकर उस व्यक्ति को चुनाव जिताएंगे। दावेदारी लोकतंत्र में सभी को करने का हक है।
– निमिष व्यास, प्रभारी जावरा, चुनाव अभियान समिति संगठन तय करता है भाजपा में लोकतंत्र है। सभी से राय लेकर प्रत्याशी का चयन होता है। दावेदारी सभी को करने का अधिकार है।
– चंद्रप्रकाश ओस्तवाल, भाजपा जावरा चुनाव प्रभारी