न्यायालय में दी गई दलील में यह भी बताया गया कि मध्यप्रदेश की पुलिस निजी वाहन से ही उदयपुर आई थी, जिसके बारे में वहां के उच्चाधिकारियों को जानकारी थी। सभी ने अपनी आमद भी सूरजपोल थाने में करवाई थी। घटना के वक्त गोगुंदा थाना के पुलिसकर्मी लाल रंग की बिना नंबर की गाड़ी में सादे वस्त्रों में थे। लोक अभियोजक राजेंद्रसिंह राठौड़ ने कहा कि आरोपी पुलिसकर्मियों को देखकर यूटर्न होते हुए भागे थे। पुलिस को अंदेशा होने पर उनका पीछा किया था। इस दौरान आरोपियों ने पुलिस पर फ ायर भी किया। इस कारण इन्हें जमानत पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
जिला एवं सेशन न्यायालय के पीठासीन अधिकारी रवींद्र कुमार माहेश्वरी ने सुनवाई के बाद माना कि 30 मार्च की रात को एसआई वीरेंद्रसिंह, एसआई अमित शर्मा, प्रधान आरक्षक शिवनारायण नामदेव, आरक्षक हिम्मतसिंह, जुझार सिंह व मनमोहन शर्मा उदयपुर आए थे। सभी ने सूरजपोल थाने में आमद करवाई थी। घटना के बाद कंट्रोल रूम को एसआई अमित शर्मा ने कॉल कर सूचना दी थी। अदालत ने कहा कि पुलिसकर्मी निजी वाहन से चालक के साथ उदयपुर आए थे और इसकी जानकारी उच्चाधिकारियों को दी थी। न्यायालय ने सुनवाई के बाद जमानत याचिका को स्वीकार किया।
एसआई बंदवार व उसके साथी दीपक अग्रवाल ने 30 मार्च को पुलिस की नाकाबंदी देखकर गाड़ी को यू टर्न कर गलत दिशा में दौड़ा दी थी। पुलिस ने पीछा किया तो एसआई बंदवार ने पुलिस फ ायर कर दिया था। इसमें गोली गोगुंदा थाने के आरक्षक हंसराज मीणा के पैर में लगी थी। उसके बाद भी इनके द्वारा गाड़ी नहीं रोकी गई थी। पुलिस ने जब घेराबंदी कर उन्हे पकड़ा तो एसआई बंदवार व गोगुंदा थाना पुलिस में गुत्थमगुत्थी हुई और एसआई बंदवार ने छूटने का प्रयास किया। इसमें गोगुंदा थानाधिकारी धनपतसिंह को चोटें आई थी। पुलिस ने बंदवार व दीपक के खिलाफ जानलेवा हमले का मामला दर्ज किया था।