यह बात अखिल भारतीय सौधर्मवृहत तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्वेताम्बर श्रीसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वाघजीभाई वोहरा ने पिपलौदा में कही। वे अहमदाबाद,जावरा, राणापुर व रतलाम श्रीसंघ के प्रतिनिधियों ने गच्छाधिपति श्री व साधु-साध्वी भगवंत का आशीर्वाद लेने व सामूहिक क्षमायाचना करने आए थे।
वोहरा ने कहा कि पिपलौदा वही धरती है जहां पुण्य सम्राट ने पूरे मध्यप्रदेश की अंतिम प्रतिष्ठा एवं थराद में हुए आत्मोद्धार प्रथम के करीब 12 दीक्षार्थियों को मुहूर्त प्रदान किया था। मैंने जीवन में कभी पिपलौदा नहीं देखा था। जब चातुर्मास की घोषणा हुई तो हर संघ संशय में था कि छोटे से गांव में चातुर्मास कैसे होगा किन्तु पिपलौदा श्रीसंघ की व्यवस्थाओं को देखकर ये अहसास हुआ कि जो निर्णय गच्छाधिपति श्री ने लिया वो बिल्कुल सोचसमझकर लिया है।
वोहरा ने कहा कि पिपलौदा वही धरती है जहां पुण्य सम्राट ने पूरे मध्यप्रदेश की अंतिम प्रतिष्ठा एवं थराद में हुए आत्मोद्धार प्रथम के करीब 12 दीक्षार्थियों को मुहूर्त प्रदान किया था। मैंने जीवन में कभी पिपलौदा नहीं देखा था। जब चातुर्मास की घोषणा हुई तो हर संघ संशय में था कि छोटे से गांव में चातुर्मास कैसे होगा किन्तु पिपलौदा श्रीसंघ की व्यवस्थाओं को देखकर ये अहसास हुआ कि जो निर्णय गच्छाधिपति श्री ने लिया वो बिल्कुल सोचसमझकर लिया है।
ये चातुर्मास केवल पिपलौदा का नहीं होकर पूरे त्रिस्तुतिक जैन संघ का है? ये सभी श्री संघ को मानना चाहिए एवं यहां चल रही तप आराधना, नमस्कार महामंत्र, स्वाध्याय ध्यान,उपधान, तप, विभिन्न सामाजिक व पारमार्थिक आयोजनों से पिपलौदा का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।
गच्छाधिपति श्री ने कहा कि योग आया उसका प्रयोग कर मानव उच्च श्रेणी में आगे बढ़ जाता है बचपन जवानी व बुढ़ापा हर मानव के पीछे लगा है हर उम्र में धर्म आराधना साधना कर धर्म की प्रभावना करना चाहिए । मुनिराज सिद्धरत्न विजय व मुनिराज विद्वदरत्न विजय मसा.ने सभी श्री संघ को समाज सुधार व संगठित रहने के साथ ही पुण्य सम्राट की भांति बड़े ऐसे कार्य करने की सलाह दी। मुनिराज तारकरत्न विजय मसा द्वारा आत्म भावना प्रार्थना करवाई गई । मुनिराज प्रशमसेन विजय मसा,मुनिराज निर्भयरत्न विजय मसा, साध्वी भाग्यकला श्रीजी म.सा. आदि ठाणा उपस्थित थे।