रतलाम जिले के मेवासा के अंचल के आसपास क्षेत्रों में भदवासा, सीखेड़ी, काडरवासा, अंगेठी बड़ौदा, हतनारा सहिम कई अंचलों में चूल का आयोजन किया गया। ग्रामीण भाषा में अंगारों पर निकलने की आस्था को चूल का नाम दिया गया है। इसमे कोयलों व लकड़ी को जलाया जाता है व इसके उपर से भक्त बड़ी संख्या में निकलते है। इस परंपरा को ही चूल का नाम दिया गया है।
इस तरह होता है आयोजन प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी होली और धुलेटी पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया। गुरुवार को रात्रि में होली दलन हुआ होली दहन के बाद शुक्रवार को सुबह महिला शुद्ध जल से होली को शांत करने के लिए पहुंची। पंडित चंद्रशेखर रावल ने बताया कि होलिका माता जब प्रहलाद को लेकर गोद में बैठी थी तो प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ था, लेकिन होली का अग्नि की आगोश में उसको वरदान होते हुए भी अग्नि में समा गई थी। उसके बाद उससे इतनी ज्वालामुखी की पूरा नगर मानो उसे आगोश में ले लिया किसी उसी अग्नि में शांत करने के लिए महिला सुबह नहा धोकर शुद्ध जल से ले जाकर होली माता का प्रार्थना करती है कि आप शांत हो और ऐसा करने नगर में महामारी का कोई प्रकोप भी नहीं होता है। जब महिलाएं होली पर जल डालती है तब यह प्रार्थना होती है कि गांव से लेकर देश में कोई परेशानी नहीं आए।
बड़ी संख्या में आते है देखने चूल को जब चूल का आयोजन होता है तब इसको देखने बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित रहते है। शहर व अंचल में होने वाले इस आयोजन में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। धधकते अंगारों पर निकली भक्तों की आस्था देखने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुनील पाटीदार सहित नामली पुलिस का दल बड़ी संख्या में आयोजन के दौरान उपस्थित रहा।