बच्चों पर हुआ अध्ययन बेल्जियम स्थित लेज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने 7 से 16 साल के 1151 बच्चों पर अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने बच्चों से पूछा कि वे बुजुर्गों के प्रति क्या सोचते हैं और बूढ़ा होने कैसा लगता है। उनसे यह भी पूछा गया कि वे अपने ग्रैंड पेरेंट्स के बारे में क्या सोचते हैं और उनकी सेहत कैसी है। साथ ही यह भी पूछा गया कि वे कितने समय में अपने दादा—दादी से बात करते हैं।
अच्छे रिश्तों ने दी सकारात्मक सोच जो बच्चे ग्रैंड पेरेंट्स के साथ ज्यादा वक्त बिताते हैं, उनके विचार वृद्धों के बारे में बहुत अच्छे थे। दस से 12 साल के जो बच्चे हफ्ते में एक बार अपने दादा—दादी से मिलते थे, उनके विचार वृद्धजनों के पक्ष में थे। यही नहीं, जिन बच्चों ने दादा—दादी के साथ रिश्तों को अच्छा या बहुत अच्छा बताया, वे भी इनके बारे में सकारात्मक विचार रखते थे। दुर्भाग्यवश जिनके दादा—दादी या नाना—नानी का स्वास्थ्य खराब था, वे इनके बारे में नकारात्मक सोच रखते थे।
खराब रिश्ते वाले बच्चे थे नाखुश जिन बच्चों में बुजुर्गों के प्रति खराब व्यवहार देखा गया, उनके अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ रिश्ते भी अच्छे नहीं थे। रिसर्चर्स ने बच्चों से बात करके पाया कि जिन बच्चों का रिश्ता अपने बड़ों से सही नहीं था, वे नाखुश बच्चों के श्रेणी में शामिल थे। चूंकि यह शोध बेल्जियम के बच्चों पर आधारित है, इसलिए दुनिया के सभी बच्चों के लिए सही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। लेकिन एक बात जरूर साफ कर देती है कि अलग-अलग पीढिय़ों के लोगों का साथ समय गुजारना कितना अहम है। ज्यादातर बच्चों के लिए उनके ग्रैंड पेरेंट्स ही उनके संपर्क में आने वाले पहले बुजुर्ग होते हैं और यही वजह है कि वे बच्चों को वृद्धों का अनादर करने से रोक सकते हैं।