scriptविचार मंथन : श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वज पितरों को श्रद्धा दें-वे शक्ति देंगे- डॉ प्रणव पंड्या | daily thought vichar manthan dr. pranav pandya | Patrika News
धर्म और अध्यात्म

विचार मंथन : श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वज पितरों को श्रद्धा दें-वे शक्ति देंगे- डॉ प्रणव पंड्या

श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वज पितरों को श्रद्धा दें-वे शक्ति देंगे-
डॉ प्रणव पंड्या

Sep 20, 2018 / 06:19 pm

Shyam

vichar manthan

विचार मंथन : श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वज पितरों को श्रद्धा दें-वे शक्ति देंगे- डॉ प्रणव पंड्या

 

पितरों को श्रद्धा दें-वे शक्ति देंगे

ऋषियों ने मनुष्य जीवन का आज तक जितना गहन अध्ययन किया है, शायद ही किसी ने किया होगा । अपने गहन विश्लेषण एवं अध्ययन के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मृत्यु के बाद शरीर के साथ-साथ आत्मा समाप्त नहीं हो जाती; क्योंकि आत्मा अजर, अमर, सत्य और शाश्वत है। जब जीवात्मा अपना एक जीवन पूरा करके दूसरे जीवन की ओर उन्मुख होती है, तब जीव की उस स्थिति को भी एक विशेष संस्कार के माध्यम से बाँधा गया है, जिसे मरणोत्तर संस्कार या श्राद्ध कर्म कहा जाता है ।


श्राद्ध की महत्ता को भली भाँति जानकर ही भारतीय संस्कृति में हमारे ऋषि-मनीषियों ने नित्य संध्योपासना के साथ-साथ तर्पण को जोड़ा है । वास्तव में श्राद्ध का मुख्य उद्देश्य दिवगंत जीव को, पितरों को अपने भविष्य की तैयारी में लगने के लिए और वर्तमान कुटुम्ब से मोह-ममता छोड़ने के लिए प्रेरणा देना है। यह मोह-ममता ही पितरों की भावी प्रगति में बाधा उत्पन्न करती है, कष्टदायक होती है । इस मोह ममता एवं कष्ट से छुटकारा दिलाने तथा पितरों की सहायता करने का प्रयोजन श्राद्ध-तर्पण संस्कार से पूरा होता है ।


श्राद्ध में तर्पण के अन्तर्गत अलग-अलग दिशाओं की तरफ मुख करके विभिन्न मुद्राओं द्वारा जल की अंजली श्रद्धा एवं भक्तिभाव के साथ समर्पित की जाती है । मनुष्य की अँगुलियों की विभिन्न मुद्राओं से विशिष्ट प्रकार की जैव विद्युत निःसृत होती रहती है, इसके साथ तर्पण करने वाले यजमान की जब प्रगाढ़ श्रद्धा की भाव तरंगें जुड़ जाती हैं, तो वे और अधिक शक्तिशाली बन जाती हैं । यह शक्तिशाली सूक्ष्म भाव तरंगें उन पितरों के लिए तृप्तिकारक और आनन्ददायक होती हैं, जिनके लिए विशेष रूप से श्राद्ध-तर्पण किया जाता है । इस वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के कारण ही संसार के लगभग सभी धर्मों, सम्प्रदायों और पंथों के लोग अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार श्राद्ध-कर्म सम्पन्न करते हैं ।


देवपूजन व तर्पण के पश्चात् पितरों के शांति-सद्गगति तथा कल्याणार्थ पंचयज्ञ करने का विधान बताया गया है । जिसमें ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतयज्ञ एवं मनुष्य यज्ञ सम्पन्न किये जाते हैं । ब्रह्मयज्ञ के अंतर्गत जहाँ मानसिक जप, अनुष्ठान करने का विधान है, वहीं देवयज्ञ में परमार्थपरक गतिविधियों को निश्चित समय तक अपनाने का संकल्प लिया जाता है । पितृयज्ञ में पिण्डदान के रूप में हविष्यान्न के माध्यम से पितरों के प्रति श्रद्धाभिव्यक्ति की जाती है । विभिन्न योनियों में संव्याप्त जीव-चेतना के तृष्टि हेतु पंचबलि यज्ञ किया जाता है। जिसमें पाँच स्थानों पर भोज्य पदार्थ रखे जाते हैं । गोबलि- अर्थात् पवित्रता की प्रतीक गऊ के निमित्त, कुक्करबलि-कर्त्तव्यनिष्ठा के प्रतीक श्वान के निमित्त, काकबलि-मलीनता निवारक काक के निमित्त, देवादिबलि-देवत्व संवर्धन के निमित्त, पिपीलिकादि बलि- श्रमनिष्ठा एवं सामूहिकता की प्रतीक चीटियों के निमित्त। इस प्रकार पंचबलि यज्ञ सम्पन्न किया जाता है।


श्राद्ध के अंतिम चरण में मनुष्य यज्ञ या श्राद्ध के संकल्प का क्रम आता है, जिसमें पितरों के कल्याणार्थ दान देने का प्रावधान है । उपरोक्त सभी प्रकार के यज्ञों से जो पुण्य फल मिलता है, उसको पितरों के कल्याणार्थ लगाया जाता है। दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस पुण्य को भी पितरों के कल्याणार्थ लगाया जाता है। दान के सम्बन्ध में युगऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है कि विश्वमंगल के उच्च आदर्शों की पूर्ति हेतु सत्पात्रों के हाथों जो धन दिया जाता है, उसे दान कहा जाता है । अतः श्राद्ध के अवसर पर कोई ऐसे शुभ कार्य भी आरंभ किये जा सकते हैं, जिनसे समाज का स्थायी हित हो सके और उस हित का पुण्य चिरकाल तक पितरों को मिलता रहे । जिसके बदले में श्राद्ध करने वाले को पितरों का अनुदान-वरदान प्राप्त होता रहेगा। उन से शक्ति प्राप्त होती रहेगी । इसीलिए कहाँ गया है, पितरों को श्रद्धा दें, वे हमें शक्ति देंगे ।

Home / Astrology and Spirituality / Religion and Spirituality / विचार मंथन : श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वज पितरों को श्रद्धा दें-वे शक्ति देंगे- डॉ प्रणव पंड्या

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो