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धर्म और अध्यात्म

विचार मंथन : पुरुषार्थी बनने की प्रेरणा देता हैं दीपावली पर्व- डॉ. प्रणव पंड्या

पुरुषार्थी बनने की प्रेरणा देता हैं दीपावली पर्व
डॉ. प्रणव पंड्या

भोपालNov 06, 2018 / 01:24 pm

Shyam

Daily Thought Vichar Manthan

विचार मंथन : पुरुषार्थी बनने की प्रेरणा देता हैं दीपावली पर्व- डॉ. प्रणव पंड्या

संस्कारों द्वारा मनुष्यों के अंतःकरण पर जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले उत्तम विचारों की अमिट छाप डालने का प्रयत्न किया जाता है, लेकिन त्यौहार एक देश और जाति की सामूहिक समस्याओं को सुलझाने का माध्यम बनते हैं । इन शुभ अवसरों पर मिल-जुलकर, संगठित रूप से यह विचार-विनिमय किया जाता है कि हमारी अमुक समस्या का समाधान किस प्रकार से किया जा सकता है ? त्यौहारों द्वारा मानव मस्तिष्क पर क्रियात्मक रूप से यह छाप डालने की चेष्टा की जाती है कि हम सब समाज रूपी शरीर के अभिन्न अंग हैं। अपने को समाज से पृथक् मानने और वैसा व्यवहार करने में अपने स्वार्थों का ही हनन करना है और समाज हित का ध्यान रखते हुए तदनुसार व्यवहार करने में सब प्रकार से अपना और समाज का लाभ है ।


दिपावली को छोड़कर अन्य त्यौहारों पर केवल एक देवता या अवतार की ही पूजा की जाती है या उनके साथ धर्मपत्नी की, जैसे- राम के साथ सीता, शंकर के साथ पार्वती की पूजा होती है । दिपावली के त्यौहार की यह विशेषता है कि इसमें दो ऐसे देवी-देवताओं का पूजन होता है, जिनका सीधे रूप मे कोई संबंध नहीं है । लक्ष्मी और गणेश का साथ-साथ पूजन करने का अर्थ यह है कि लक्ष्मी का आह्वान करने के साथ-साथ विचारशीलता का भी समावेश होना चाहिए । धन कमाने के साथ उसका उचित उपयोग भी जानना चाहिए । जिस प्रकार से अग्नि अत्यंत लाभदायक होते हुए भी असावधानी में हानि पहुँचा देती है, उसी प्रकार से धन से सब सुख-सुविधाएँ प्राप्त होते हुए भी यदि उसका दुरुपयोग किया जाए, तो वह जीवन को नाश की ओर ले जाता है ।


दिपावली हमारे लिए कर्मठता और जागरूकता का संदेश लाती है । शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दिन-रात जागरण करके लक्ष्मी जी की पूजा करता है, उसी के घर में लक्ष्मी जी आती हैं और जो आलस्य और प्रमादवश यह पूजन नहीं करता, उसके घर की ओर लक्ष्मी जी ताकती भी नहीं। दिन-रात जागरण का अभिप्राय है- अपने पुरुषार्थ पर आधारित रहना । इसी महाशक्ति द्वारा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । कहा भी है— उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः ।


इसी प्रकार पुरुषार्थ से प्रसन्न होने वाली लक्ष्मी की पूजा करके हम उसका अनुकरण करते हैं । दिपावली पर हमें पुरुषार्थ पर अवलंबित रहने की प्रेरणा मिलती है । कुछ लोगों की यह गलत धारणा है कि इस रात को यदि जुआ खेलने से धन की प्राप्ति हो गई, तो संपूर्ण वर्ष धन-लाभ होता रहेगा । जुआ खेलकर धनप्राप्ति की आशा करने का अर्थ है बिना परिश्रम के धनोपार्जन करना, जो एक प्रकार से चोरों के समान है । अंतर यही है कि जुए को खेल समझा जाता है और चोरी में दुःसाहस किया जाता है । दीपावली का यह संदेश है कि पुरुषार्थी के पास ही लक्ष्मी आती है । जो कम परिश्रम करके अधिक धन की आशा करता है, उसे निराश ही होना पड़ेगा और इसका परिणाम भी प्रायः संतोषजनक नहीं होता । इसलिए दीपावली के शुभ त्यौहार पर जुए की प्रचलित लत को प्रोत्साहन न देना चाहिए, बल्कि इसका विरोध करना चाहिए और लोगों को उससे बचने की प्रेरणा भी देनी चाहिए । जब पांडव और नल जैसी पुण्य आत्माओं पर इसी बुरी लत के कारण विपत्तियों के पहाड़ टूट पड़े, तो साधारण व्यक्ति किस गिनती में हैं ? इन प्रत्यक्ष उदाहरणों से सीख लेकर हमें जुए के त्याग का संकल्प लेना चाहिए ।

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