तब पांडवो ने स्वयं महामुन को भोजन के लिए निमंत्रण दिया! परन्तु ऋषि सुपच ने शर्त रखी की वे तब ही जायेंगे जब उन्हें 100 अश्वमेघ यज्ञों का फल मिलेगा पांडव परेशान हो कर वापिस आ गए सारी बात “भगवान् श्रीकृष्ण” जी को बताई। जब ये बात द्रौपदी को पता लगी तो द्रौपदी ने कहा ये मेरे ऊपर छोड दो! तब द्रौपदी ने नंगे पैर कुए से पानी लाकर खाना पकाया और नंगे पैर चल कर ऋषि सुपच को बुलाने के लिए गई वहा ऋषि सुपच ने फिर वही शर्त बताई तो द्रौपदी ने कहा की मैंने आप जैसे किसी साधू से सुना है की..
जब कोई नंगे पैर आप जैसे किसी महान संत के दर्शन करने जाता है तो उसका एक एक कदम एक एक अश्वमेघ यज्ञ के बराबर है इस तरह आप अपने १०० अश्वमेघ यज्ञ का फल लेकर बाकि मुझे दे दे! इस तरह मुनि सुपच जी द्रौपदी की बात सुनकर द्रोपदी के साथ आ गए जब उनको खाना परोसा गया तो उन्होंने पांडवो और सारी रानियों द्वारा बनाये गए खाने को मिला लिया और खाना शुरू कर दिया, ये सब देखकर द्रौपदी के मन आया की अगर एक एक करके खाते तो द्रौपदी द्वारा बनाये गए खाने के स्वाद का भी पता लगता की कितना स्वादिष्ट बना है!
इस दोरान ऋषि ने खाना समाप्त कर दिया परन्तु घंटा फिर भी नहीं बजा! तो पांडवो ने “भगवान् श्रीकृष्ण” जी से पूछा की अब क्या कमी रह गई? “भगवान् श्रीकृष्ण” ने कहा की ये तो सुपच जी ही बतायेगे! इस पर ऋषिसुपच ने उन्हे जवाब दिया की ये तो द्रौपदी से पूछ लो की घंटा क्यों नहीं बजा! इस तरह जब द्रौपदी को इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने सुपच जी से अपने अहंकार के लिए माफ़ी मांगी तो असमान में घंटा बजा और उनका यज्ञ पूरा हुआ!