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विचार मंथन : विनोद प्रियता की प्रवृत्ति को अपने स्वभाव का अंग बनाकर देखों, विषाद निकट भी नहीं फटकेगा- महात्मा गांधी

विनोद प्रियता की प्रवृत्ति को अपने स्वभाव का अंग बनाकर देखों, विषाद निकट भी नहीं फटकेगा- महात्मा गांधी

भोपालFeb 25, 2019 / 06:56 pm

Shyam

daily thought vichar manthan

विचार मंथन : विनोद प्रियता की प्रवृत्ति को अपने स्वभाव का अंग बनाकर देखों, विषाद निकट भी नहीं फटकेगा- महात्मा गांधी

गम्भीर न रहें, प्रसन्न रहना सीखें

एक शाम पंडित मोतीलाल नेहरू अपने पुत्र जवाहर लाल के साथ गांधीजी से मिलने साबरमती आश्रम पहुंचे । झोंपड़ी में मिट्टी का दीपक जल रहा था और दरवाजे के बाहर लाठी रखी हुई थी । हवा जवाहरलाल से कुछ मजाक करने पर तुली थी, उसने झोंके से दीपक बुझा दिया । अंधेरे में जवाहरलाल लाठी से जा टकराये, उनके घुटने को चोट लगी, वैसे ही जवाहरलाल गर्म मिजाज थे, इस चोट ने उनमें झल्लाहट भर दी । वे गांधी जी से पूछ बैठे ‘बापू आप मुंह से अहिंसा की दुहाई देते हैं और लाठी हाथ में लेकर चलते हैं, आप ऐसा क्यों करते हैं?’ गांधीजी ने हंसकर कहा- ‘तुम जैसे शैतान लड़कों को ठीक करने के लिये ।

 

गांधीजी दूसरे गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंग्लैंड गये । वहां के लोग नहीं माने, उन्हें बालरूम डांस दिखने ले गये । वहां सब अपने-अपने जोड़ों के साथ नाचने लगे । एक अंग्रेज ने उनसे कहा- ‘आप भी अपना पार्टनर चुन लीजिए । गांधीजी ने अपनी लाठी दिखाकर कहा- ‘मेरे साथ मेरा पार्टनर है । यह सुनकर सबको हंसी आ गई । एक दिन की बात है । सेठ जमनालाल बजाज ने गांधीजी से कहा- ‘बापू! यह तो मुझे ज्ञात है कि आपका मुझ पर अपार स्नेह है किन्तु मैं चाहता हूं कि आप मुझे देवीदास की तरह ही अपना पुत्र बना लें ।

 

उनका अभिप्राय गोद लेने से था । यह जानकर गांधीजी ने लम्बे-चौड़े बजाज जी की ओर देखकर कहा- ‘कहते हो सो तो ठीक है, बाप बेटे को गोद लेता है, पर यहां तो स्थिति उल्टी है । बेटा बाप को गोद लेने जैसा दीखता है । विनोद प्रियता की प्रवृत्ति को जरा हम भी अपना स्वभाव का अंग बनाकर देखें, विषाद कभी हमारे निकट आ ही नहीं सकता ।

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