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विचार मंथन : मंदिर का पुजारी सिर्फ पूजा पाठ वाला ही नहीं. उसे तो भगवान जैसा ही होना चाहिए- आचार्य श्रीराम शर्मा

locationभोपालPublished: Mar 16, 2019 12:09:37 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

धर्मतंत्र का दुरुपयोग रुके, पुजारी तो भगवान जैसा ही होना चाहिए- आचार्य श्रीराम शर्मा

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विचार मंथन : मंदिर का पुजारी सिर्फ पूजा पाठ वाला ही नहीं. उसे तो भगवान जैसा ही होना चाहिए- आचार्य श्रीराम शर्मा

मित्रों, समर्थ गुरु रामदास ने छत्रपति शिवाजी के सिर पर हाथ रखा और कहा कि भारतीय स्वाधीनता के लिए, भारतीय धर्म की रक्षा करने के लिए तुम्हें बढ़ चढ़कर काम करना चाहिए । शिवाजी ने कहा कि मेरे पास वैसी साधन सामग्री कहाँ है? मैं तो छोटे से गाँव का एक अकेला लड़का, इतने बड़े काम को कैसे कर सकता हूँ । समर्थ गुरु रामदास ने कहा, “मैंने पहले से ही उसकी व्यवस्था सात सौ गाँवों में महावीर मंदिर के रूप में बनाकर के रखी है । जहाँ जनता में काम करने वाले को प्रकाण्ड, समझदार एवं मनस्वी लोग काम करते हैं ।” पुजारी पद का अर्थ मरा हुआ आदमी, बीमार, बुड्ढा, निकम्मा, बेकार और नशेबाज आदमी नहीं है । पुजारी का अर्थ-जिसे भगवान का नुमाइन्दा या भगवान का प्रतिनिधि कहा जा सके । जहाँ ऐसे समर्थ व्यक्ति हों, समझना चाहिए, वहाँ पुजारी की आवश्यकता पूरी हो गई ।

 

किसी आदमी को खाना दिया जाए और वह भी आधा-अधूरा, सड़ा-बुसा हुआ दिया जाए, तो उससे खाने वाले को भी नफरत होगी और उसके स्वास्थ्य की रक्षा भी नहीं होगी । इसी तरीके से भगवान की सेवा करने के लिए लँगड़ा-लूला, काना-कुबड़ा, मरा, अंधा, बिना पढा, जाहिल-जलील, गंदा आदमी रख दिया जाए, तो वह क्या कोई पुजारी है? पुजारी तो भगवान जैसा ही होना चाहिए । भगवान राम के पुजारी कौन थे? हनुमान जी थे। अतः कुछ इस तरह का पुजारी हो, तो कुछ बात भी बने। इसी तरह के पुजारी समर्थ गुरु रामदास ने सारे-के-सारे महाराष्ट्र में रखे थे। इन सात सौ समर्थ पुजारियों ने उस इलाके में जो फिजा, वो परिस्थितियाँ पैदा कीं कि छत्रपति शिवाजी के लिए जब सेना की आवश्यकता पड़ी, तो उन्हीं सात सौ इलाकों से बराबर उनकी सेना की आवश्यकता पूरी को जाती रही ।

 

इसी प्रकार जब उनको पैसे की आवश्यकता पड़ी, तो उन छोटे से देहातों से, जिनमें कि महावीर मंदिर स्थापित किए गए थे, वहाँ से पैसे की आवश्यकता को पूरा किया गया । अनाज भी वहाँ से आया । उसी इलाके में जो लोहार रहते थे, उन्होंने हथियार बनाए । इस तरह जगह-जगह छिटपुट हथियार बनते रहे। अगर एक जगह पर हथियार बनाने की बड़ी फैक्ट्री होती, तो शायद विरोधियों को पता चल जाता और उन्होंने उस स्थान को रोका होता । वे सावधान हो गए होते, मिलिट्री एक ही जगह रखी गई होती, तो विरोधियों को पता चल जाता और उसे रोकने की कोशिश की गई होती, लेकिन सात सौ गाँवों में पुजारियों के रूप में एक अलग तरह की छावनियाँ पड़ी हुई थीं । हर जगह इन सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती थी । हर जगह इन छावनियों में 10-20 वालंटियर आते थे और वही से पैसा धन व अनाज आता था । इस तरीके से मंदिरों के माध्यम से समर्थ गुरु रामदास ने छत्रपति शिवाजी के आगे करके इतना बड़ा काम कर दिखाया ।

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