आज के दो वर्ग
आज का सम्पूर्ण संसार मोटे तौर पर दो बड़े भागों में विभक्त किया जा सकता है । (1) शोषक अर्थात् वह वर्ग जो आध्यात्मिक नैतिक, ज्ञान-विज्ञान की शक्तियों से शासन का आनन्द भोग रहा है । यह वर्ग हर प्रकार की ऐश-आराम, विलास का जीवन व्यतीत करता है, आज के अन्य सदस्यों द्वारा अर्जित खाद्य पदार्थों, भौतिक साधनों दैनिक व्यवहारों की चीजों की प्रचुरता का आनन्द लेता है । कल कारखाने, वायुयान, रेल, जहाज, लोहे के हथियार और औद्योगिक संस्थाओं, जमींदारों की बागडोर हाथ में है। उसे रुपये का घमण्ड है, विज्ञान द्वारा दिये गये भौतिक आनन्दों, प्रभुता, मद, ज्ञान विज्ञान का अभिमान है, मशीनों पर विश्वास है, एटम की शक्ति है । यह पूँजी पतियों का वर्ग है। इस वर्ग में बड़े बड़े अमीर, सत्ताधारी, ब्रह्मवादी, रूढ़िवादी क्षत्रिय, जागीरदार अमीर वैश्य, मठाधारी, मन्दिरों के पुरोहित, पंचायत के पंच लोग, बड़े अफसर पूँजीवादी राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधि आदि सम्मिलित हैं ।
दूसरा वर्ग शोषितों का है। इस वर्ग में दीन हीन गरीब मजदूर, किसान, मिलों फैक्ट्रियों में मजदूरी करने वाले, शूद्र, भंगी, चाण्डाल, चमार, होटलों, रेस्टोराँ, मोटर, रेल, सिनेमा में काम करने वाले नौकर इत्यादि अनेक प्रकार के व्यक्ति सम्मिलित हैं। पहले वर्ग की अपेक्षा इस वर्ग में अधिक व्यक्ति आते है। इसमें अछूत जातियों के लोग भी सम्मिलित हैं, जिनका कार्य उच्च वर्ग की चाकरी कर पेट पालना है । इन लोगों की गुलामी दो कारणों से हुई है-एक तो ये आर्थिक दृष्टि से दीन हीन हैं, दूसरे धर्म ग्रन्थों की आड़ में शिक्षा और सुविधाएं न देकर तलवार, लाठी, डंडों के बल इन्हें पनपने नहीं दिया गया है। उच्च वर्ग के इन्हें गुलाम बना कर इन्हें नौकरी चाकरी, घरों की सफाई, मल विष्ठा मूत्र से भरी नालियों की सफाई, उनकी स्त्रियों को विलास और मनोरंजन की वस्तु समझ कर सदियों इन्हें पशुत्व की कोटि में रखा है । इस वर्ग का निरन्तर शोषण होता रहा है। इस प्रकार हमारे समाज का आधा अंग पशुवत् अज्ञान, अशिक्षा, रूढ़िवादिता, भेदभाव, अहंकार असमर्थता में पड़ा हुआ शोषित हो रहा है ।
अज्ञानान्धकार का पाप
आज के युग के भौतिक सुखों, आश्चर्यचकित कर देने वाली सुविधाओं, विलास और आराम की वस्तुओं की चर्चा की जाती है । किन्तु खेद है कि इतनी प्रचुरता में भी शोषित वर्ग में गरीबी, दुःख, अज्ञान और भयंकर भुखमरी है, इतने विस्तार और मुक्त वायु के बीच भी रोग, अशुचिता, गंदगी दयनीयता और बेबसी है, इतनी शिक्षा सुविधाओं के मध्य भी रूढ़ि जाति पांति, धर्मान्धता, दुराचार, अपहरण और अज्ञानान्धकार का साम्राज्य फैला हुआ है। हम सब मनुष्य कहलाते हुए भी दूसरे मनुष्य को छूने, प्यासे को पानी पिलाने में भूखे को अन्न देने में, बीमार की सुश्रूषा करने में सकुचाते हैं । बिल्ली, कुत्ते का मुख चूमने में हमें कोई संकोच नहीं होता, किन्तु मनुष्य रूप में करोड़ों भारत संतानों का-शूद्र, चाण्डाल, म्लेच्छ, भंगी, चमार का स्पर्श करते हुए हमारा धर्म नष्ट होने लगता है ।