नई दिल्ली। श्री गणेश चालीसा में वर्णित है कि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया। इस तप से प्रसन्न होकर स्वयं श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धर कर पहुंचे और उन्हें यह वरदान दिया कि मां आपको बिना गर्भ धारण किए ही दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी। ऐसा कह कर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक के रूप में लेट गए। भगवान शिव और पार्वती ने विशाल उत्सव रखा। हर तरफ से देवी, देवता, सुर, गंधर्व और ऋषि, मुनि देखने आने लगे। शनि महाराज भी देखने आए। चारों लोक में हर्ष छा गया। माता पार्वती ने उनसे बालक को चलकर देखने और आशीष का आग्रह किया।
शनि महाराज अपनी दृष्टि की वजह से बच्चे को देखने से बच रहे थे। माता पार्वती को बुरा लगा। उन्होंने शनिदेव को उलाहना दिया कि आपको यह उत्सव नहीं भाया, बालक का आगमन भी पसंद नहीं आया। शनि देव सकुचा कर बालक को देखने पहुंचे, लेकिन जैसे ही शनि की किंचित सी दृष्टि बालक पर पड़ी, बालक का सिर आकाश में उड़ गया। उत्सव का माहौल शोक में परिवर्तित हो गया। माता पार्वती मूर्छित हो गई। चारों तरफ हाहाकार मच गया। तुंरत गरूड़ जी को चारों दिशा से उत्तम सिर लाने को कहा गया। गरूड़ जी हाथी का सिर लेकर आए। यह सिर शंकर जी ने बालक के शरीर से जोड़कर प्राण डाले। इस तरह गणेश जी का सिर हाथी का हुआ।
– वराहपुराण के अनुसार भगवान शिव ने गणेशजी को पचंतत्वों से बनाया है। जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तो उन्होंने विशिष्ट और अत्यंत रुपवान रूप पाया। इसके बाद यह खबर देवताओं को मालूम पड़ी। देवताओं को जब गणेश के रूप और विशिष्टता के बारे में पता लगा तो उन्हें इस बात को भय सताने लगा कि कहीं ये सबके आकर्षण का केंद्र ना बन जाए और हमें कोई पूछे ही नहीं। उनके इसी दर को को भगवान शम्भू भी भांप गए, जिसके बाद उन्होंने उनके पेट को बड़ा कर दिया और सिर हाथी का लगा दिया।
– शिवपुराण के अनुसार ये कथा इससे इससे बिलकुल पलट है। इसके मुताबिक माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी लगाई थी, इसके बाद जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी उबटन उतारी तो उससे उन्होंने एक पुतला बना दिया। उस हल्दी उबटन के पुतले में फिर उन्होंने प्राण डाल दिए और जीवन दे दिया। इस तरह से विनायक का जन्म हुआ। इसके बाद माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि तुम मेरे स्नान कक्ष के द्वार पर बैठ जाओ और दरबानी करो, तुम्हें आदेश है कि किसी को भी अंदर आने मत देना।
शिवजी घर आए तो उन्होंने कहा कि मुझे पार्वती से मिलना है। इस पर गणेश जी ने मना कर दिया और उन्हें अंदर जाने से रोका। शिवजी को उनके बारे में कोई आभास नहीं था। दोनों में विवाद हुआ और विवाद युद्ध में बदल गया। गुस्से में शिवजी ने अपना त्रिशूल निकाला और गणेश का सिर काट डाला।
पार्वती सूचना मिली तो वे बाहर आईं और रोते-रोते बताने लगीं कि उन्होंने आपने ही बेटा का सिर काट दिया। शिवजी ने पूछा कि ये हमारा बेटा कैसे हो सकता है? इसके बाद पार्वती ने शिवजी को पूरी कहानी बताई। शिवजी ने पार्वती को मनाते हुए कहा कि ठीक है मैं इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए। इस पर उन्होंने गरूड़ जी से कहा कि उत्तर दिशा में जाएं और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आएं।
गरूड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई मां नहीं मिली क्योंकि हर मां अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के सोती है। अंतत: एक हथिनी दिखाई दी। हथिनी का शरीर का प्रकार ऐसा होता हैं कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती है। गरूड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए। भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया। उसमें प्राणों का संचार कर दिया। उनका नामकरण कर दिया। इस तरह श्रीगणेश को हाथी का सिर लगा।