धर्म शास्त्र के अनुसार सूर्य की मकर संक्रान्ति बारह माह में विशेष फल प्रदान करती है। उत्तरायण की यह स्थिति देव, ऋषि, पितृ, दिव्य मनुष्य के लिए साधना की दृष्टि से खासा महत्त्व रखती है। सूर्य का अपने पुत्र शनि की मकर राशि में प्रवेश धर्म, आध्यात्म, संस्कृति, यम-नियम, संस्कार दीक्षा, शिक्षा, संन्यास वनगमन आदि के लिए महत्त्वपूर्ण है। सम्पूर्ण वर्ष भर सूर्य के मकर राशि में ये तीस दिन चारों पुरुषार्थों के लिए सिद्ध अनुगमन है।
मेष : अन्न, वस्त्र, गाय को चारे का दान।
वृषभ : भिक्षुकों को भोजन व रोगियों को औषधि का दान।
मिथुन : आश्रम में हरी सब्जियों का दान।
कर्क : श्वेत वस्त्र एवं सफेद तिल का दान।
सिंह : विभिन्न दालें एवं ऊनी वस्त्र का दान।
कन्या : धार्मिक पुस्तकें, कुश आसन का दान।
तुला : पंचपात्र या तांबे के सूर्य का दान।
वृश्चिक : सूती पीला वस्त्र एवं खाद्य वस्तु का दान।
धनु : जौ, तिल, दुग्ध, हरा मंूग, चावल आदि का दान।
मकर : लौह पात्र, लकड़ी से निर्मित आसन, घृत पदार्थ का दान।
कुंभ : वस्त्र, ऊनी वस्त्र, कंबल छाता, पुस्तकें आदि का दान।
मीन : फल, सब्जी, अन्न, दुग्ध वस्त्र आदि का दान।
मकर संक्रान्ति के पुण्यकाल में सफेद तिल मिश्रित जल से तीर्थ या निकट के नदी तट पर शुद्ध मनोभाव से स्नान करें। यदि नदी तट पर जाना संभव नही है तो अपने घर के स्नान घर में पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल, दुर्वा, कच्चादूध मिश्रित जल से स्नान करें। साथ ही समस्त पवित्र नदियों व तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र तथा भगवान भास्कर का ध्यान करें। पूर्व जन्म के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया, आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति के लिए क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें। संक्रान्ति का यह समय पितरों को तृप्त कर उनके आदित्य लोक में गमन करने के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है। इस दृष्टि से पितरों के निमित्त तिल का तर्पण कर तृप्त करते हुए विधिवत तीर्थ श्राद्ध करें।
शुभ संवत 2074 माघ कृष्ण त्रयोदशी रविवार को 14 जनवरी, 2018 को मध्यान्ह 1 बजकर 15 मिनट पर चंद्र नक्षत्र मूल धु्रव योग तात्कालिक वणिज करण धनु राशिस्थ चंद्रमा एवं वृषभ लग्न में भगवान भुवन भास्कर सूर्यनारायण देवता का मकर राशि में प्रवेश होगा। इस बार संक्रान्ति का वाहन महिष है। इसका उपवाहन ऊंट है। वार का नाम घोरा है। जो शासन के द्वारा अन्य तबकों को सहयोग पहुंचाने वाला साबित होगा।
उत्तरायण के सूर्य की प्रतीक्षा करते हुए भरतवंशी भीष्म ने देह का त्याग किया था। उत्तरायण के सूर्य की अनन्य कथाएं प्रचलित है। उनमें से श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए गीतोपदेश में सूर्य की साधना तथा जैविक सफलता एवं आध्यात्मिक रहस्य को समझने के लिए दिशा निर्देशित किया है। यही कारण है कि मकर पर्वकाल में भागवत सप्ताह का पारायण श्रवण करना अत्यन्त पुण्यकारक माना गया है। शास्त्रों में भी उत्तरायण काल को शुभ और मंगलकारी बताया गया है।