नई दिल्ली। अपमान सीधा हमला आत्मविश्वास पर करता है। आत्मविश्वास टूट जाए तो जीवन के एक-एक पल को जीना मुश्किल लगता है। सवाल यह उठता है कि हम क्या करें कि अपमान को अपने जीवन में जगह ही ना लेने दें। कहते हैं वेद-पुराणों से अच्छी शिक्षा कहीं और नहीं मिल सकती तो आइए जानते हैं एक ऐसी कहानी जिसे अगर आप अपने जीवन में उतरेंगे तो अवश्य ही इस दुविधा से दूर हो जाएंगे।
सांझ का समय था। महात्मा बुद्ध एक शिला पर ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे। वह डूबते सूर्य को एकटक निहार रहे थे। तभी उस समय उनका शिष्य वहां आया और गुस्से में बोला, गुरुजी रामजी नाम के जमींदार ने मेरा अपमान किया है। आप तुरंत चलें, उसे उसकी मूर्खता का सबक अवश्य सिखाना होगा। महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले, प्रिय तुम बौद्ध हो, सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती। रामजी ने जो भी तुम्हें कहा तुम उस प्रसंग को भुलाने की कोशिश करो। जब प्रसंग को भूला दोगे, उसके बाद अपमान कहां बचेगा।
बौद्ध बोला गुरूजी लेकिन तथागत, उस धूर्त ने आपके प्रति भी अपशब्दों का प्रयोग किया है। आपको शीघ्र चलना ही होगा। आपको देखते ही वह अवश्य शर्मिंदा हो जाएगा और अपने किए की क्षमा मांगेगा। बस, इतने में मैं संतुष्ट हो जाऊंगा। महात्मा बुद्ध समझ में आ गया कि शिष्य में प्रतिकार की भावना प्रबल हो उठी है। इस पर किसी सदुपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुछ विचार करते हुए बुद्ध बोले, अच्छा वत्स यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य ही रामजी के पास चलूंगा, और उसे समझाने की कोशिश करूंगा। बुद्ध ने कहा, इस प्रसंग की चर्चा हम सुबह चलकर करेंगे।
प्रातःकाल, बात आई-गई हो गई। शिष्य अपने काम में लीन हो गया और महात्मा बुद्ध अपनी साधना में। दूसरे दिन जब दोपहर होने पर भी शिष्य ने बुद्ध से कुछ नहीं कहा तो बुद्ध ने स्वयं ही शिष्य से पूछा आज रामजी के पास चलना है ना? शिष्य बोला नहीं गुरुवर! मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी ही थी। मुझे अपनी गलती पर भारी पश्चाताप है। अब रामजी के पास चलने की कोई आवश्यकता नहीं। तथागत बुद्ध ने हंसते हुए कहा, यदि ऐसी बात है तो अब जरूर ही हमें रामजी महोदय के पास चलना होगा। शिष्य ने पूछा क्यों गुरुवर? बुद्ध ने मुस्काते हुए कहा अपनी भूल की क्षमा याचना नहीं करोगे वत्स।