यदि कोई हमसे पूछे कि हम जीवन में क्या उपलब्ध करना चाहते हैं तो शायद इसका उत्तर दे पाना हमारे लिए आसान नहीं होगा। हम क्या पाना चाहते हैं, क्या बनना चाहते हैं और उसके लिए क्या कर रहे हैं? अनेक भ्रान्तियां हमारे जीवन से जुड़ी नजर आ जाएंगी। जो कुछ हम पाना चाहते हैं और जो कुछ हम कर रहे हैं, उनमें कोई मेल ही दिखाई नहीं पड़ता। इस अभ्यास को करके देख लीजिए। एक कागज पर लिखें कि आप क्या पाना चाहते हैं और दिनचर्या अथवा जीवन-शैली के उन बिन्दुओं को भी उतारें जो उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमारे क्रम से जुड़े हों। अवाक्ï रह जाएंगे आप यह देखकर कि हम कुछ नहीं करते अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। फिर लक्ष्य का उद्देश्य क्या रह जाता है और कैसे हम इस जीवन में उसे प्राप्त कर सकेंगे?
विचारों पर नियंत्रण
हम क्यों भटक जाते हैं? क्यों हमारे भाव और विचार नियन्त्रित नहीं रहते? क्यों हम नित्य नए गन्तव्य की ओर प्रस्थान करने लगते हैं? इसका एक कारण है हमारा मन, जिसमें हर पल नई इच्छा पैदा होती है और दूसरा कारण है हमारी बुद्धि, जो इन इच्छाओं की पूर्ति को लक्षित नहीं कर पाती। जब तक ये स्थिर नहीं हों, कुछ भी स्थाई नहीं हो सकता।
एक कहावत है कि जो पाना चाहते हो उसका प्रयास करो, अन्यथा जो मिलेगा उसी से सन्तोष करना पड़ेगा। हमारी बुद्धि हमें सन्तोष भी नहीं करने देती, मानने भी नहीं देती। इन्द्रियां मन को भटकाती हैं और मन बुद्धि को। हमारा जीवन इसी तरह मूल लक्ष्य से भटकता रहता है।
यदि हमें यह मालूम पड़ जाए कि हमें अब कुछ ही दिन जीना है तो शायद सब कुछ छोडक़र हम इस चिन्तन में उतर सकें!
आज जिन्दगी की भागदौड़ इतनी तेज हो गई है कि व्यक्ति अनजाने भी भाग रहा है और भीड़ के साथ भी भाग रहा है। उसे पता नहीं, वह क्या पाना चाहता है। वह इतना व्यस्त हो रहा है कि अथाह गतिविधियों के जाल में फंसा तनावग्रस्त हो रहा है। उसके विचारों की कड़ी टूटती ही नहीं। वहां अनेक विचार, अनेक विकल्प आ-जा रहे हैं। आवश्यकता है इस दिमाग को समझने की, इसकी गतिविधियों को समझने की। इसके बाद ही नियंत्रण सम्भव है। तभी आप इसकी गुलामी से बाहर निकलकर इसके स्वामी बन सकेंगे। तभी मानव के भीतर का पशु नियंत्रण में आ सकेगा। भय और सन्ताप/चिन्ताओं से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त होगा।
इसका अर्थ है कि जो कुछ हो रहा है, उस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। इस ओर पहला कदम होगा, जो कुछ दिमाग में चल रहा है, उस पर रोक लगाने की जरूरत है। अगले कदम पर दिमाग से अनावश्यक विचारों को खाली करना और तीसरा, दिमाग में आवश्यक विचारों को आकर्षित करना होगा। लक्ष्य के अनुरूप स्व-प्रेरणा बनाए रखना। अनावश्यक विचारों को दबाने की आवश्यकता नहीं है। दबे हुए विचार फिर अवसर पाकर बाहर निकल आते हैं। उन पर चिन्तन करना छोड़ देना तथा उनकी अनदेखी करना ही उनको रोकना है।
दिमाग की सफाई
विचारों को वर्तमान से जोडऩा एक सरलतम मार्ग है। जो कार्य हाथ में है उसी पर पूरा ध्यान बना रहे। कार्य के साथ स्मृति और कल्पना को आश्रय नहीं मिले। केवल इतना करने से ही अनेक परिवर्तन आने लगेंगे। जो कुछ विचार अनायास ही चल पड़ते हैं, उन्हें चलने दें, उन पर रुकने और चिन्तन करने का प्रयास नहीं करें तो विचार स्वत: लोप होते नजर आते हैं। उन्हें स्वीकार करते हुए सहृदयता से नकार दें। उनसे घृणा करने की भी आवश्यकता नहीं है। घृणा हमारा मूल स्वभाव नहीं है।
मानस में प्रेरणा बनी रहे, लक्ष्य के प्रति जागरूकता बनी रहे। शान्त चित्त होकर बैठें, विचारों की तन्द्रा को तोड़ें तो स्वभाव की उग्रता स्वत: ही गल जाएगी, अहंकार भी लोप होता दिखाई देगा। अहंकार पूर्ण समाप्त नहीं होता, उसका स्वरूप जरूर परिवर्तित हो सकता है। भ्रान्तियां दूर होते ही मन के भीतर की शुद्धता प्रकट होने लगेगी। नकारात्मक भाव सूखे पत्तों की तरह झडऩे लग जाएंगे। शरीर के नियंत्रण से इन्द्रियों की क्रियाएं सीमित होती हैं। मन की चंचलता भी इसी से कम होती है। इच्छाओं की सीमा भी इसी से होती है और विचारों की सीमा का भी यही मार्ग है। प्रेरक साहित्य, दर्शन आदि मनोबल को बनाए रखने का कार्य करते हैं। सत्संग गति देता है।
कुछ काल के लिए विशेष अभ्यास भी किए जा सकते हैं। श्वास-दर्शन एक अभ्यास है। श्वास को देखते रहें, उसका विश्लेषण करें। उसके ताप, रंग, गति, व्यवहार का अध्ययन करें। उसके साथ भीतर-बाहर चलकर उसके कार्यों को देखें। इसके साथ ही एक विशेष प्रकार की गहनता आएगी, एक नई अनुभूति होगी। आपको लगेगा कि श्वास भी ऊर्जा के वे सब कार्य कर रहा है जो आप चाहते हैं। वह आपको लक्ष्य की ओर बढ़ा रहा है।
इष्ट के चित्र पर ध्यान टिकाना भी भारतीय दर्शन में एक बड़ा अभ्यास माना गया है। व्यक्ति और इष्ट का एक हो जाना इस अभ्यास का चरम है। इसी तरह विचारों की दिशा बदलने में मंत्र जाप का भी इतना ही बड़ा महत्त्व है, क्योंकि हमारा जीवन स्पन्दनों के आधार पर चलता है और मंत्र भी स्पन्दन है। मंत्र स्पन्दनों को निश्चित दिशा देता है।
एक बार दिमाग की सफाई हो जाए तो सन्ताप-मुक्ति हो जाती है। शान्ति और स्थिरता विकसित होने लगती है।