बताया जाता कि ऐतिहासिक दस्तावेजों में अयोध्या के राम मंदिर का जिक्र सुनकर पांच लोगों ने मंदिर मुक्ति का सपना देखा था। ये पांच लोग गोरखपुर पीठ के महंत दिग्विजय नाथ, अयोध्या के महंत अभिराम दास, बाबा राघव दास, रामचंद्र परमहंस और हनुमान प्रसाद पोद्दार थे। पोद्दार वही हैं जिन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों को सरल भाषा और सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना की। किताबों और पत्रकारों के मुताबिक इन्हीं पांच लोगों ने 22 दिसंबर 1949 की रात सरयू में स्नान कर संबंधित स्थल पर बालस्वरूप श्रीराम की मूर्ति की पूजा कर प्राण प्रतिष्ठा की।
इस सपने को पूरा करने में तीन लोग और जुड़े। इस घटना के समय केके नैयर फैजाबाद के जिलाधिकारी और ठाकुर गुरुदत्त सिंह सिटी मजिस्ट्रेट थे। प्राण प्रतिष्ठा की जानकारी होने पर मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया तो दोनों बतौर प्रशासनिक अधिकारी इस स्थान को कुर्क कर लिया। बाद में गोपाल सिंह विशारद और रामचंद्र परमहंस ने फैजाबाद के सिविल जज के यहां मुकदमा कर मांग की कि दूसरे पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोका जाए। न्यायालय ने पूजा का आदेश दिया। इसके बाद मंदिर तोडऩे के घटनाक्रम की किताब छपवाई और लोगों को बांटी जाती रही। इन पांचों लोगों ने जगह-जगह सभाएं कर लोगों को जगाने की कोशिश शुरू की। इसके बाद लोग जुड़ते रहे और कारवां बनता गया।