वट सावित्री व्रत का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन ही बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा यमराज से की थी। उसी दिन से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं। माना जाता है कि वट वृक्ष के मूल भाग में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्र भाग में भोलेनाथ का वास होता है। इसलिए जो महिला इस दिन विधि-विधान और सच्चे मन से वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती है उसे अखंड सौभाग्य तथा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
वट सावित्री व्रत पूजा सामग्री: रोली, चावल, सवा मीटर कपड़ा, श्रृंगार की वस्तुएं, नारियल, कलावा, कच्चा सूत, बांस का पंखा, भीगे हुए चने, जल से भरा लोटा, सुपारी, पान, पुष्प, 5 तरह के फल, धूप, मिट्टी का दीपक, घर के बने पकवान आदि।
पूजा विधि:
व्रत वाले दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर अपने काम और स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा सोलह श्रृंगार करें। इसके बाद पूजा की सभी सामग्री थाली में सजाकर बरगद के पेड़ के नीचे जाएं। इसके बाद बरगद के पेड़ के नीचे यमराज के साथ सावित्री और सत्यवान की तस्वीर भी रखें। फिर रोली, चावल, भीगे हुए चने, कलावा, फल, लाल वस्त्र आदि चीजें अर्पित करें।
तत्पश्चात बांस के पंखे से तस्वीरों पर हवा करें। फिर वट वृक्ष की 5 या 11 परिक्रमा लगाते हुए कच्चा सूत बांधे। परिक्रमा के बाद वट सावित्री व्रत की कहानी सुनें और फिर पेड़ में जल अर्पित करें। पूजा पूर्ण होने के बाद महिलाएं हाथ जोड़ कर मन में अपनी पति की दीर्घायु की कामना करें। फिर पूजा के बचे हुए चनों को सबको प्रसाद रूप में बांटें।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)