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श्री गणेश को बुधवार के दिन ऐसे करें प्रसन्न और पाएं मनचाहा आशीर्वाद

भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य देव…

भोपालApr 05, 2021 / 02:23 pm

दीपेश तिवारी

How to please Shri Ganesh ji and get blessings

How to please Shri Ganesh ji and get blessings

सनातन हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य देव माना गया है। वहीं आदि पंच देवों में भी ये एक प्रमुख देव माने गए हैं। हनुमान जी की ही तरह श्री गणेश को भी कलयुग का प्रमुख देवता माना जाता है, ऐसे में हर कोई श्री गणेश जी को प्रसन्न कर उनसे मनचाहा वरदान मांगना चाहता है।

ज्योतिष के अनुसार ग्रहों में श्री गणेश को बुध का स्वामित्व प्राप्त है। बुध को बुद्धि का कारक माना गया है, वहीं श्री गणेश रिद्धि सिद्धि के दाता माने गए हैं। ऐसे में सप्ताह के वारों में इन्हें बुधवार का कारक देव माना गया है, मान्यता है कि इस दिन श्री गणेश अत्यंत आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।

दरअसल एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, कैलाश पर्वत पर जिस समय माता पार्वती के द्वारा गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी, तो उस समय बुध देव भी वहां उपस्थित थे। इसलिए तभी से बुध को गणेशजी का प्रमुख वार माना गया। ऐसे में आज हम आपको बुधवार के दिन श्री गणेश की पूजा कैसे करें, इस संबंध में बता रहे हैं।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूज्य व विघ्नों को हरने वाले हैं। वहीं श्री गणेश की पूजा के लिए बुधवार का दिन सबसे उचित माना जाता है।


Ganesh Puja Vidhi : श्री गणेश की पूजा विधि…
– श्री गणेश के पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। इसके साथ ही पूजन सामग्री को जैसे पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर लें।
इसके बाद सामने श्री गणेश के लिए एक चौकी स्थापित करें, जिस पर लाला कपड़ा बिछा दें। उस पर श्री गणेश की प्रतिमा यानि मूर्ति विराजमान कर दे। यदि मूर्ति नहीं है तो एक पात्र में (छोटी प्लेट) सुपारी पर लाल कलावा लपेटकर चावलों के उपर स्थापित कर दें, बस भगवान श्री गणेश यहां साकार रूप में उपस्थिति हो गए।

: पूजा करते समय गणेशजी को उनके प्रिय बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।

भोग लगाते समय : मंत्र…
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू,
ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम्,
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च,
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद।

: घर में क्लेश आदि हो तो गणेशजी की सफेद प्रतिमा स्थापित करें और सफेद मोदक का भोग लगाएं।

– पूजन शुरू करने से पहले घी का दीपक जलाकर उसे चौकी के दाहिने भाग में थोड़े से चावलों के उपर रख दें। ॐ दीपज्योतिषे नम: कहकर दीपक पर रोली का छींटा देकर एक पुष्प चढ़ा दें और मन में प्रार्थना करें कि हे दीप! आप देव रूप मेरी पूजा के साक्षी हों, जब तक मेरी पूजा समाप्त न हो जाए, तब तक आप यहीं स्थिर रहना।

दीपक प्रज्वलित करते समय : मंत्र…
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया,
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्,
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने,
त्राहि मां निरयाद् घोरद्दीपज्योत।

: ध्यान रहे भगवान श्रीगणेश शुद्ध स्थान से चुनी हुई दुर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए। इन्हें कभी भी तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।

– अब हाथ में पुष्प, दूर्वा व अक्षत लेकर श्री गणेश जी का ध्यान करें-

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।।

फूल व पुष्पमाला अर्पित करते समय : मंत्र…
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो,
मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः।

इसके बाद श्री गणेश के विभिन्न नामों के साथ सभी सामग्री उन्हें अर्पित करें। इससे पूजा के साथ श्री गणेश के विभिन्न नामों के उच्चारण का फल भी मिलेगा।

: मान्यता के अनुसार श्रीगणेश के दिव्य मंत्र ॐ श्री गं गणपतये नम: का 108 बार जप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
– हे सुमुख! मै आपका स्मरण करता हूं, आपको बुलाता हूं, आपको नमस्कार करता हूं। आप यह आसन स्वीकार करें। इस प्रकार की भावना करके हाथ का पुष्प व अक्षत श्री गणेश के आगे चढ़ा दें।
इसके बाद यदि श्री गणेश की मूर्ति मिट्टी की है तो स्नान आदि केवल जल के छीटें देकर ही करें। वहीं यदि धातु की मूर्ति है तो उनका स्नान विधिपूर्वक करें, इसके तहत धातु की मूर्ति को एक थाली या कटोरे में रख लें।
गणेशजी की पूजा के समय पढ़ें जाने वाले विशेष मंत्र….

यज्ञोपवीत अर्पित करते समय : मंत्र…
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्,
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।

– इसके बाद मंत्र जप के साथ श्री गणेश की पूजा करें। वहीं पूजा के उपरांत सभी देवी-देवताओं का स्मरण करें। हो सके तो जय-जयकार करें। अपराध क्षमा प्रार्थना करें।

ये हैं नियम:
: ध्यान रहे इस पूजा के समय श्रीगणेश सहित प्रभु शिव व गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि से करना चाहिए। इसके अलावा व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध व गुस्सा न करें। श्रीगणेश का ध्यान करते हुए शुद्ध व सात्विक चित्त से प्रसन्न रहना चाहिए।

साथ ही पूजा कराने वाले ब्राह्मण को संतुष्ट कर यथा विधि पारिश्रामिक (दान) आदि दें, उन्हें प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें, मान्यता है ऐसा करने से व्यक्ति दीर्घायु, आरोग्यता, सुख, समृद्धि, धन-ऐश्वर्य आदि को प्राप्त करता है।


गणेश जी को प्रसन्‍न करने के लिए :

1. श्री गणेश को मोदक का भोग-
गणेश जी को खाना खाना बहुत पसंद है और खाने में उन्हें मीठी चीज़े खाना बहुत पसंद आता है मोदक बूंदी का मुलायम लड्डू होता है जिसे खाने में आसानी होती है और वह मीठा भी होता है गणपति के एक दन्त है इसीलिए वह इसे आराम से खा सकते हैं। तो आप गणेश जी की पूजा करते समय उनके ऊपर मोदक का भोग अवश्य लगाएं।

2. शमी की पूजा-
गणेश भगवान को शमी का वृक्ष अतिप्रिय है इसीलिए उनके भक्त उनकी पूजा के लिए शमी का वृक्ष का प्रयोग करते हुए शमी के वृक्ष की भी पूजा करें।

3. मंत्रो का करें जप-
माना जाता है कि मंत्रो का जप करने से गणपति जी जल्दी खुश हो जाते है अत: श्री गणेश जी की पूजा के दौरान उनके मंत्रो का जप करें। और साफ़ मन से गणेश जी की आराधना करें।

4. गणेश जी की पूजा में दूर्वा-
श्री गणेश को खुश करने के लिए दूर्वा का प्रयोग करें। दूर्वा घास को पूजा के दौरान उन्हें अर्पित करें।

5. सिन्दूर से पूजा-
गणपति बप्पा को खुश करने के लिए उनके मस्तिष्क पर तिलक सिन्दूर से लगाया जाता है। ऐसे में आप उनके ऊपर लाल रंग के सिंदूर का चोला चढ़ा सकते हैं।यानि सिन्दूर से उनकी पूजा कर सकते हैं।
सिंदूर अर्पण करते समय: मंत्र…
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्,
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।


श्री गणेश के कुछ अन्य खास मंत्र :

विघ्नों को दूर करने के लिए-
‘गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌’
बिगड़े काम सुधारने के लिए-
‘त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।।’

ग्रह दोष से रक्षा के लिए-
‘णपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।’

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