माना जाता है कि इस दौरान अपने प्रियजनों से मिलने पितर पितृ लोक से धरती पर आते हैं। ऐसे में पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण सहित कई धार्मिक कार्य किए जाते हैं। जिससे उनकी आत्मा को शांति मिल सके और वे तृप्त होकर वापस लौट सकें।
ऐसे में इस साल दशमी का श्राद्ध आने वाला है, इसे देखते हुए आइए समझते हैं कि दशमी के दिन श्राद्ध किस प्रकार करें, जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो। मान्यताओं के अनुसार इस दिन गया सिर और गया कूप नामक दो वेदियों पर श्राद्धकर्म करना चाहिए।
इस संबंध में मान्यता है कि इस वेदी पर पिंडदान करने से भटक रहे और कष्ट भोग रहे पितरों को स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है। वहीं इस दिन गया कूप में पिंडदान से श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को अश्वमेघ यज्ञ करने का फल मिलता है।
दशमी तिथि: पितरों का श्राद्ध ऐसे करें
इस संबंध में पंडित एके शर्मा का कहना है कि हिंदू ग्रंथों के मुताबिक दशमी तिथि के श्राद्ध के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि बाद भोजन की तैयारी कर लें। फिर भोजन को पांच भागों में विभाजित करने के बाद ब्राह्मण भोज कराएं।
यहां इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि यहां ब्राह्मण भोज से पहले पंचबली भोग अवश्य लगाएं, नहीं तो श्राद्ध कर्म को पूर्ण नहीं माना जाएगा।
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दरअसल पंचबली भोग में गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देव शामिल हैं। इनमें गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी अपने हाथों से भोजन खिलाएं। इनको भोग लगाने के पश्चात ही ब्राह्मण को भोग लगाएं। और फिर ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद सम्मान के साथ विदा करें।
इन सब कार्यों के बाद ही खुद भोजन ग्रहण करें। यहां इस बात का भी ध्यान रखें कि ब्राह्मणों को आदर के साथ बैठाने के बाद ही उनके पैर धोएं, माना जाता है कि ऐसा नहीं करने से पितर नाराज हो जाते हैं।
दशमी श्राद्ध के दिन दान-पुण्य के साथ पितरों के निमित्त भागवत गीता के दसवें अध्याय का पाठ भी जरूर करना चाहिए। श्राद्धकर्म के बाद दस ब्राह्मणों को इस दिन भोजन खिलाना चाहिए। यदि आप 10 ब्राह्मण को भोजन नहीं करा पा रहे हैं, तो कम से कम एक ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं।
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वहीं यदि धन, वस्त्र और अन्न का श्राद्ध करने वाले के पास अभाव हो तो वह गाय को केवल साग भी खिलाएं, तब भी ऐसा करने से भी श्राद्ध कर्म की पूर्ति मानी गई है। इस संबंध में यहां तक माना जाता है कि इस तरह का श्राद्ध-कर्म 1 लाख गुना फल देता है।
वहीं ग्रंथों के अनुसार यदि आपके पास शाक के लिए तक धन नहीं है, तो भी ऐसी स्थिति में आप एक खुले स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथ ऊपर उठाते हुए अपने पितरों से प्रार्थना करते हुए कहें कि ‘हे मेरे सभी पितृों! मेरे पास श्राद्ध के निमित्त न धन है, न धान्य है, आपके लिए मात्र श्रद्धा है, अतः मैं आपको श्रद्धा-वचनों से तृप्त करना चाहता हूं। अत: आप सब कृपया तृप्त हो जाएं।‘ माना जाता है कि यदि आप अपने पितरों से सम्मानपूर्वक ऐसा कहते हैं तो भी श्राद्ध कर्म की पूर्ति हो जाती है।